History

शाहजहां का इतिहास

शाहजहां का इतिहास

शाहजहां का जन्म

 शाहजहां का जन्म 5 जनवरी 1592 ईस्वी को लाहौर में हुआ था इनके बचपन का नाम खुर्रम था इनकी माता जी का नाम जगत गोसाई था और वह राजा उदय सिंह की बेटी थी इनके पिता जी का नाम जहांगीर था खुर्रम अपनी पितामह अर्थात सम्राट अकबर का अत्यंत ही प्रिय था खुर्रम कि दक्षिणी विजय से प्रसन्न होकर जहांगीर ने उसे शाहजहां की उपाधि से सम्मानित किया था

शाहजहां बचपन में अध्ययन में काफी निपुण था अतः उसकी शिक्षा का उचित प्रबंध किया गया था उसे फारसी भाषा तथा साहित्य का अच्छा ज्ञान था उसने भूगोल, अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति व धर्म शास्त्र विषयों का अध्ययन किया था इसके साथ ही अस्त्र एवं शस्त्र चलाने में निपुण था और खुर्रम को घुड़सवारी भी करने का बहुत ही शौक था

शाहजहां का विवाह

 भारतीय इतिहास में शाहजहां का एक विवाह शाहजहां और मुमताज महल का विवाह बहुत ही प्रसिद्ध है शाहजहां का विवाह आ सफखान की पुत्री अरजूमंद बानो बेगम से 1612 ईस्वी में हुआ था और उसके विवाह के समय शाहजहां की उम्र 20 वर्ष की थी यही अरजूमंद बानो बेगम आगे चलकर इतिहास में मुमताज महल के नाम से प्रसिद्ध हुई थी अर्थात मुमताज महल के बचपन का नाम अरजूमंद बानो बेगम था

शाहजहां का राज्याभिषेक

 जहांगीर की मृत्यु के बाद शाहजहां राजगद्दी पर बैठा उनका राज्याभिषेक 1628 ईस्वी को आगरा में हुआ था शाहजहां ने राजगद्दी पर बैठने के बाद राजपूत सरदारों को हटाकर नए मुसलमान सरदारों को पदोन्नति दे दी थे  और उन्हें पारितोषिक प्रदान किए गए थे शाहजहां बहुत ही  कट्टर शासक था

शाहजहां द्वारा किए गए आक्रमण

 शाहजहां ने राजगद्दी पर बैठने के बाद उसने खान जहां लोधी एवं नूरपुर के जमीदार जगत सिंह के विद्रोह का अंत किया शाहजहां ने पुर्तगालियों के साथ युद्ध किया इस युद्ध में पुर्तगालियों को बहुत ही हानि हुई थी इस युद्ध में 10000 पुर्तगालि सैनिक मारे गए और 440 सैनिक बंदी बनाए गए थे शाहजहां ने पुर्तगालियों को आदेश दिया कि या तो वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले या फिर आजीवन कारावास का दंड भुगतने के लिए तैयार रहें इस युद्ध में मुगलों की बहुत ही कम हानि हुई थी उनके करीब 1000 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे

शाहजहां ने पुर्तगालियों को युद्ध में पराजित किया और अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए गोलकुंडा, बीजापुर ,अहमदनगर पर आक्रमण  किया था जहांगीर एवं अकबर की अपेक्षा वह बहुत ही निर्दई शासक था उसने पहला कार्य सोरों वर्ष का प्रयोग बंद करके चंद्र वर्ष तथा हिजरी संवत के प्रयोग की आज्ञा दी और उसके इस कार्य से कट्टर मुसलमान अत्यंत प्रसन्न हुए इसके बाद शाहजहां ने अकबर और जहांगीर के समय में प्रचलित सीचिता प्रथा को बंद करा दिया एवं उसके स्थान पर जमी बोस का नियम लागू कर दिया था

हिंदुओं की नीतियों में शाहजहां ने कई फेरबदल किए थे शाहजहां ने स्वयं को  इस्लाम का रक्षक बतलाया और उन्होंने मुगलों की इस नीति को दोहराया है कि हिंदुओं के पुराने पूजा स्थानों एवं मंदिरों की मरम्मत करवाई जा सकती है परंतु नए मंदिरों एवं पूजा का निर्माण नहीं किया जा सकता है शाहजहां ने जहांगीर के काल में बने अनेक मंदिरों को नष्ट करवा दिया था परंतु पुराने हिंदू मंदिरों में किए जाने वाले दान जारी रहे थे अपने शासन के अंतिम समय में शाहजहां ने हिंदुओं के प्रति उदारवादी नीति अपनाई और उसने वेदों के साथ-साथ कई हिंदू धर्म ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करवाया था

जब 1630 ईसवी में देश में भयंकर अकाल पड़ा जिसमें बहु संख्या में लोग मारे गए अकाल इतना भीषण था कि सड़के लाशों  से भर गई थी जिसमें शाहजहां ने विषम परिस्थिति में पीड़ित प्रजा को भोजन प्रदान करने के लिए भोजनालय खुलवाएं जिसमें लोगों को निशुल्क भोजन देने की व्यवस्था की और मालगुजारी का एक तिहाई भाग माफ कर दिया गया इस अकाल ने कई गांव के गांव बर्बाद करके रख दिए थे

शाहजहां द्वारा बनवाई गई इमारतें

 शाहजहां को भवन निर्माण एवं स्थापत्य कला में विशेष रूचि थी उसने आगरा में अपनी चहेती पत्नी मुमताज महल की स्मृति में ताजमहल का निर्माण कराया था इसके अतिरिक्त आगरा में मोती मस्जिद, दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद आदि इमारतों का  निर्माण भी कराया था ताजमहल को बनाने वाला कलाकार उस्ताद अहमद लाहौरी था शाहजहां और उनकी पुत्री जहांआरा को आगरा के किले में कैद रखा गया था और वहां पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी और दोनों को लगभग 8 वर्ष तक बंदी बनाकर आगरा में रखा गया था

उसने कारागृह से अपने आप को छुड़ाने के लिए बहुत सारे प्रयत्न किए थे परंतु यह सारे प्रयत्न उसके असफल रहे  और उसके सभी शत्रु और अधिक सचेत  हो गए थे और जैसे ही उनके दुश्मनों को उसके इन प्रयासों का पता चला तो उन्होंने उसको और ज्यादा दुख और यातनाएं देना प्रारंभ कर दिया उस समय सबसे बड़ा शत्रु कोई और नहीं उसका अपना बेटा औरंगजेब ही था

शाहजहां की मृत्यु

कारागृह में साधारण सुविधाओं के ना मिलने के कारण शाहजहां 1666 ईस्वी में काफी बीमार पड़ गया उसकी पुत्री ने उसकी खूब सेवा की परंतु उसका कोई लाभ नहीं हुआ और अंत में 22 जनवरी 1666 में शाहजहां की मृत्यु आगरा के किले में हो गई उसकी मृत्यु के बाद उसकी पुत्री चाहती थी कि धूमधाम से  उनका जनाजा निकाला जाए परंतु औरंगजेब ने ऐसा नहीं करने दिया था

शाहजहां ने आगरा निवासियों के लिए बहुत ही सराहनीय कार्य किए थे और उसकी मृत्यु से आगरा निवासियों को बड़ा ही दुख हुआ आगरा निवासी बादशाह शाहजहां का गुणगान करने लगे और उसके महान कार्यों का प्रचार एवं प्रसार भी होने लगा उस समय पूरे आगरा में शाहजहां की मृत्यु का शोक मनाया गया था और इस समय जहांआरा की दशा अत्यंत ही दयनीय थी शाहजहां की मृत्यु के बाद जहांआरा दिल्ली चली गई और वहां 1681 में उसकी मृत्यु हो गई

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