पांच बावरी वीरों का इतिहास, पांच बावरियों का जन्म, माता रानी का चमत्कार, खरकड़ी गांव की दुर्घटना, खरकड़ी गांव की दुर्घटना , मुगलों के साथ युद्ध
पांच बावरी वीरों का इतिहास
पांच बावरियों का इतिहास सैकड़ों पुराना है जब खरकड़ी नामक स्थान राजस्थान में 989 वर्ग में विशाल कबीला फैला हुआ था और संयुक्त कबीला बहुत ही खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था इस खुशहाल कबीले के राजा का नाम हेमराज बावरी था जो एक न्याय प्रिय राजा थे और भाई दूसरों की मदद करने वाले व्यक्ति थे लेकिन इतना खुशहाल राज्य होते हुए भी खरकड़ी के राजा “हेमराज” हमेशा चिंतित रहते थे क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी हेमराज बावरी की पत्नी माता “कपूरी” बहुत बड़ी शिव भगत थी वह अपनी नगरी में आए हुए सभी साधु-संतों और गरीब प्रजा की मदद करने में लीन रहती थी
उसी समय एक चमत्कार हुआ खरकड़ी गांव में एक साधु अपनी मंडली के साथ आकर डेरा लगाया और वह धूना लगाकर वहां पर बैठ गए जब इस बात का पता महारानी कपूरी को लगा तो वह इनकी शरण में आई और इन जोगियों की मंडली की सेवा पूरी श्रद्धा के साथ की जब माता कपूरी इन नाथ की सेवा कर के वापस जा रही थी तब उनकी आंखों में आंसू आ गए तब साधु ने माता का पूरी को दुखी होने का कारण पूछा तब माता कपूरी ने कहा कि इतना विशाल और खुशहाल राज्य होते हुए भी हमारे कोई संतान नहीं है
इसके बाद उस साधु ने माता को पूरी को वरदान दिया कि तुम्हारे दो पुत्र होंगे और साथ ही उन्होंने शर्त रखी कि तुम्हें तुम्हारे एक पुत्र को धूने पर चढ़ाना होगा इसके बाद माता कपूरी को 9 महीने बाद 2 पुत्र प्राप्त हुए तब माता कपूरी अपने एक पुत्र और अपने पति हेमराज को लेकर उस नाथ जी के पास गई तब साधु ने माता को पूरी को आदेश दिया कि तुम अपने पुत्र को हमारे धुणे में चढ़ा दो इसके बाद जोगी की यह बात सुनकर माता कपूरी की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने अपना वचन याद किया और अपने पुत्र को धुणे में डाल दिया
माता को पूरी का यह त्याग देकर नागेबाबा बहुत ही प्रसन्न हुए और जगते हुए धुणे से उस बच्चे को वापस निकाल कर माता कपूरी को दे दिया था नागेबाबा की शक्तियों के कारण उस बच्चे को आंच भी नहीं लगी परंतु उस बच्चे का रंग सांवला हो गया था हेमराज ने अपने इस पुत्र का नाम शेर सिंह रखा था परंतु नागेबाबा ने अपनी शक्तियों और उसके सांवले रंग के कारण उस बच्चे का नाम “सांवर सिंह बावरी’ रख दिया था | पांच बावरी वीरों का इतिहास |
पांच बावरियों का जन्म
इसके बाद नागेबाबा ने माता कपूरी और राजा हेमराज को उनकी सरदा से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया कि तुम्हारी कोख से 3 पुत्र और एक पुत्री का जन्म भी होगा और नागे बाबा ने उन पुत्रों का नामकरण भी किया उन्होंने कहा कि तुम्हारे बड़े पुत्र का नाम “हरी सिंह बावरी” रखना और दूसरे पुत्र का नाम “केसरमल” रखना और तीसरे पुत्र का नाम “जीतमल” रखना और चौथे पुत्र का नाम “नथमन” रखना और लड़की का नाम “शैडो” रखना और यह वरदान भी दिया कि तुम्हारे यह पांचो बावरी जग के कल्याण के लिए जन्म लेंगे और जो भी इनके दर पर कुछ मन्नत मांगेंगे
वह उन्हें जरूर पूरी करेंगे और उन्होंने यह भी कहा कि संसार में रहते हुए यह बहुत ही शक्तियों को प्राप्त करने के बाद संसार में अमर हो जाएंगे इसके बाद नागेबाबा मुरथन की तरफ रवाना हो गए इसके बाद नागे बाबा के वरदान के कारण माता कपूरी की कोख से 3 पुत्र और एक पुत्री ने जन्म लिया कुछ समय के बाद पांचों भाई जवान हो गए और उनकी बहन भी जवान हो गई थी इन पांचो बावरियों में जो इन का सबसे बड़ा भाई हरि सिंह था वह मनसा देवी का भगत था जब हेमराज अपने वृद्धावस्था में आ गए तब उन्होंने अपना राजपाट अपने सबसे बड़े पुत्र हरी सिंह को सौंप दिया
माता रानी का चमत्कार
हरी सिंह बावरी को गद्दी संभाले हुए कुछ ही समय हुआ था कि उनके छोटे भाई सागर सिंह और केसरमल ने उनसे शिकार खेलने की आज्ञा मांगी इसके बाद हरि सिंह से आज्ञा लेकर दोनों भाई शिकार के लिए जंगल की ओर रवाना हो गए जब यह दोनों भाई शिकार खेलने के लिए जा रहे थे तब इन रास्ते में माता मनसा का मंदिर दिखाई देता है और यह हाथ जोड़कर माता से मन्नत मांगते हैं कि है माता रानी हम आपको कलश की भेंट चढ़ाएंगे यदि आज हमें शिकार मिल जाए तो जब वह जंगल में जाते हैं
तब इन्हें वहां पर कोई भी शिकार नहीं मिलता और यह माता रानी से नाराज हो जाते हैं और आते समय माता रानी के मंदिर के ऊपर लगा हुआ कलश उतारने लगते हैं इसके बाद माता रानी ने अपनी शक्तियों से इन दोनों भाइयों को पत्थर का बना दिया था जब इस बात का पता है इनके भाई हरि सिंह को लगा तब वह माता रानी के मंदिर में आकर इन से क्षमा मांगी लेकिन माता रानी ने उनकी क्षमा स्वीकार नहीं की तब हरि सिंह बावरी ने अपना शीश काटकर माता रानी को भेंट चढ़ा दिया था तब मनसा रानी ने प्रसन्न होकर हरि सिंह को पुनर्जीवित किया और सांवर सिंह बावरी और केसरमल बावरी को पहले जैसा बना दिया और उनकी क्षमा को स्वीकार किया इसके बाद माता मनसा रानी ने इन पांचों भाइयों को दिव्य शक्ति का वरदान दे दिया था | पांच बावरी वीरों का इतिहास |
खरकड़ी गांव की दुर्घटना
फिर इस राज्य में एक दुर्घटना घटी भूकंप आने के कारण पूरा राज्य तहस-नहस हो गया था और इस राज्य के साथ-साथ माता कपूरी और राजा हेमराज भी चल बसे थे इस राज्य में कुछ नागरिक और वह 5 भाई और उनकी बहन ही शेष बचे थे कुदरत के इस आपदा को देखकर पांचों भाइयों ने खरकड़ी राज्य छोड़ने का फैसला बना लिया इसके बाद पांचों भाई और उनकी बहन दिल्ली आकर जमुना किनारे एक झोपड़ी बनाकर रहने लगे जब यह पांचों भाई दिल्ली में आए थे उस समय वहां का शासक ‘नोरंग बादशाह’ था वह बहुत ही क्रूर राजा था इन पांचों भाइयों को दिल्ली में रहते हुए थोड़ा ही समय हुआ था कि इन्हें एक खून से भरा हुआ पत्थर मिलता है और उसमें लिखा था कि मैं हिंदू लड़की हूं और यह बादशाह मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता है
क्या कोई ऐसा शूरवीर है जो मेरी इज्जत को बचा सकता है इस पत्र को पढ़ने के बाद उन पांचों भाइयों को बहुत गुस्सा आया और वह उसी समय चक बेंगलूर की तरफ उस राजा को मारने के लिए निकल पड़े इसके बाद उस राजा को मारकर उस लड़की को छुड़ा लाए और उसे अपनी धर्म की बहन बना लिया पांच बावरियों का इतिहास उस समय का है जब गोगा जी ने अपने दो भाइयों का वध कर दिया था उनकी धडे रणभूमि में और उनके सिर राजमहल में गिरे थे गोगाजी के दोनों भाई धोखेबाज थे इन दोनों ने दिल्ली के बादशाह के साथ मिलकर गोगाजी के ऊपर चढ़ाई कर दी थी इस युद्ध में समर सिंह बावरी और केसरमल बावरी ने गोगाजी का साथ दिया था गोगा जी अपने भाइयों का अंतिम संस्कार करना चाहते थे परंतु उनकी माता बाछल बहुत ही गुस्सा थी
और गोगा जी को उन्होंने महलों में आने से इंकार कर दिया था इसके बाद गोगा जी ने सांवर बावरी और केसरमल बावरी को अपने भाइयों का शीश लाने का आदेश दिया उन दोनों भाइयों ने जोड़ जोगन की शक्ति से अदृश्य होकर उनके भाइयों का शीश लाकर गोगा जी को दे दिया इसके बाद गोगा जी ने अपने भाइयों का अंतिम संस्कार किया गोगाजी अवतारी व्यक्ति थे इसके बाद गोगा जी ने साबर सिंह बावरी और केसरमल बावरी से प्रसन्न होकर उन्हें 56 कल्पो की शक्ति का वरदान दिया और साथ ही उन्हें यह वचन भी दिया कि धर्म की रास्ते पर चलते हुए यदि तुम में से किसी भी भाई को शीश कट जाए तो मुझे याद कर लेना मैं फिर से तुम्हें सर्जित कर दूंगा | पांच बावरी वीरों का इतिहास |
मुगलों के साथ युद्ध
जिस लड़की को उन्होंने धर्म की बहन बनाया था उसने उन पांच बावरियों को बताया कि बादशाह अपने चारपाई के नीचे सोने की ईंट रखकर सोता है और वह कहता है कि जो भी इन ईटों को चुरा लेगा मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा और उससे अपनी बेटी की शादी कर दूंगा इसके बाद नथमल और जीतमल दिल्ली की ओर रवाना हो गए और माता रानी के आशीर्वाद से उन्होंने बादशाह के नीचे से वह सोने की ईंटें चुरा ली जब इस बात का पता बादशाह को चला तो उसने अपनी सेना की एक टुकड़ी को मुरथल की ओर रवाना कर दी उस समय बावरियों की बहन से शैडो कुवे से पानी भरने के लिए बाहर गई हुई थी
तब मुगलों की सेना ने बावरियों की बहन की इज्जत पर हाथ डाला और जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने बादशाह की कुछ टुकड़ी को मार गिराया और कुछ भाग गए इसके बाद बादशाह अपने सभी सैनिकों को लेकर बावरियों से युद्ध करने के लिए आ गया कुछ दिनों के युद्ध के बाद बावरियों के पास हथियार खत्म हो जाते हैं तभी उनकी नजर धुणे पर बैठे हुए एक साधु पर पड़ी यह वही साधु थे जिसके वरदान से इन पांचो बावरियों का जन्म हुआ था साधु बाबा उन बावरियों को पहचान लेते हैं इसके बाद उन्हें बताते हैं कि तलाई में पड़ी हुई मिट्टी की छोटी-छोटी गोलियों को तुम अपनी राइफल में भर लेना और वही बारूद का काम करेगी गोलियों से वह मुगलों से काफी दिन तक मुकाबला करते रहे परंतु मुगलों की सेना अधिक होने के कारण वह ज्यादा देर तक उनका मुकाबला नहीं कर सके
इसके बाद उन्होंने नागे बाबा के वरदान को याद किया उन्होंने कहा था कि अपनी बहन बेटियों कि इन मुगलों के हाथ कभी भी इज्जत मत जाने देना इसके बाद उन्होंने सबसे पहले अपनी बहन का शीश धड़ से अलग किया इसके बाद ध्यान नथिया का शीश काट दिया और इसके बाद पांचों भाइयों ने भी अपना शीश काट लिया बावरियों के पांचों शीश मुरथल में ही रह गए थे और उनकी धड़े लड़ते-लड़ते अस्तबली के पास पहुंच गई थी इसके बाद अस्तबली पीर ने पांच बावरियों की वीरता को देखते हुए उनकी धड़ों को शांत किया और उनको अपनी शरण में रखा शीश कट जाने के बाद भी पांचों भाई अमरता को प्राप्त हुए थे
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