अब्दुल गफ्फार खान का जीवन परिचय, अब्दुल गफ्फार खान का जन्म, लाल कुर्ती आंदोलन की स्थापना, अंग्रेजों और मुसलमानों के बीच लड़ाई, अब्दुल गफ्फार खान को मिला अवार्ड, अब्दुल गफ्फार खान की मृत्यु
अब्दुल गफ्फार खान का जीवन परिचय
यह 6 फीट के पठान जिन्होंने अंग्रेजों की ईट से ईट बजा डाली थी इन्होंने गांधी के साथ मिलकर भारत को आजाद कराया था जिनकी अहिंसा वादी सोच की गूंज आज भी पूरे भारत में गूंजती है वह है ‘खान अब्दुल खान’ इस मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी को सरहदी गांधी के नाम से भी जाना जाता है अब्दुल गफ्फार खान 1934 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने थे इनके मन में राष्ट्रवादी और मानवतावादी भावना थी
अब्दुल गफ्फार खान का जन्म
अब्दुल गफ्फार खान का जन्म पाकिस्तान के पेशावर में 6 फरवरी 1890 में हुआ था अब्दुल गफ्फार खान के पिताजी का नाम “बहराम खान” था वह अपने इलाके के एक समृद्ध जमीदार थे और स्थानीय पठानों के विरोध के बावजूद उन्होंने अपने दोनों बेटों को अंग्रेजों द्वारा संचालित ‘मिशन स्कूल’ में पढ़ाया अब्दुल गफ्फार खान पठानों की ऐसी कोम से संबंध रखते थे जो कि हर वक्त लड़ाई झगड़े में उलझे रहते थे
अब्दुल गफ्फार खान को “बादशाह खान” के नाम से भी जाना जाता था अब्दुल गफ्फार खान के दादा परदादा ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी इन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए बादशाह खान ने भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने की कसम खाई थी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अब्दुल गफ्फार खान ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की थी बादशाह खान हमेशा ही अंग्रेजों से नफरत करते थे
उस समय अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार से पूरा भारत परेशान था बादशाह खान अंग्रेजों को देश से निकाल फेंकना चाहते थे साल 1919 में पेशावर में जब अंग्रेजी हुकूमत ने मार्शल लॉ कानून लागू किया तब बादशाह खान ने इसका बहुत ही विरोध किया था और शांति का प्रस्ताव भी रखा परंतु अंग्रेजों को बादशाह खान बिल्कुल भी पसंद नहीं थे इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने बादशाह खान पर राजद्रोह का विरोध लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया था इसके बाद अंग्रेजों ने बादशाह खान के खिलाफ अपने ही कुछ गवाह तैयार कर लिए जो कि यह कह सके कि बादशाह खान ने जनता को अंग्रेजो के खिलाफ भड़काया था परंतु कोई भी ऐसी झूठी गवाही के लिए तैयार नहीं हुआ
लाल कुर्ती आंदोलन की स्थापना
अंग्रेजी हुकूमत ने बादशाह खान को 6 महीने बिना किसी जुर्म के जेल में रखा था इसी दौरान बादशाह खान की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई बादशाह खान “दीन ए इस्लाम” पर चलने वाले पक्के मुसलमान थे कुरान की शिक्षा से वह अहिंसा वादी बने थे इसके बाद 1920 में बादशाह खान ‘खिलाफत आंदोलन’ में शामिल हो गये और अंग्रेजो के खिलाफ बगावत को और अधिक बढ़ा दिया 1929 में अब्दुल गफ्फार खान ने “खुदाई खिदमतगार” आंदोलन शुरू किया जो ब्रिटिश के खिलाफ अहिंसक संघर्ष था जब अंग्रेजों का जुल्म हद से ज्यादा बढ़ने लगा तो बादशाह खान ने 1930 में लाल कुर्ती आंदोलन की स्थापना की
इस आंदोलन के दौरान बादशाह खान ने उन पठानों को भी जो हर समय लड़ाई के लिए तैयार रहते थे उनको भी अहिंसा वादी बनाकर इस आंदोलन में शामिल कर लिया 1930 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए “नमक आंदोलन” में अब्दुल गफ्फार खान शामिल हुए और उन्होंने एक बार फिर से अंग्रेजो के खिलाफ बगावत कर दी लेकिन फिर से अंग्रेजी हुकूमत ने अब्दुल गफ्फार खान को अपनी हिरासत में ले लिया अब्दुल गफ्फार खान वह मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने देश के लिए अपनी आधी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे बिताई थी
कई साल गांधी के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ते रहे अब्दुल गफ्फार खान ने मुसलमानों से कहा था कि मैं तुम्हें एक ऐसा हथियार देने वाला हूं जिसके सामने ना तो अंग्रेजी पुलिस खड़ी हो सकती है और ना ही अंग्रेजी फौज खड़ी हो सकती है और वह था अहिंसा का हथियार जब अंग्रेजी हुकूमत ने अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार किया तब उनके संगठन के लोगों से यह सहन नहीं हुआ मुसलमानों ने बादशाह की रिहाई के लिए पूरे देश में जगह जगह शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए जिसके कारण अंग्रेजी हुकूमत बहुत ही डर गई थी
अंग्रेजों और मुसलमानों के बीच लड़ाई
अंग्रेजों के लगातार जुल्म के बावजूद भी मुसलमानों ने हथियार नहीं उठाए इसके बाद 23 अप्रैल 1930 को इसके बाद 23 अप्रैल 1930 को मुसलमानों और पठानों ने मिलकर पेशावर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना जारी कर दिया यह प्रदर्शन पेशावर की गलियों से होकर किस्सा खानी बाजार तक पहुंचा यहां पर अंग्रेजी सेना हथियारों के साथ पहले से खड़ी थी
अंग्रेजी सेना में सबसे आगे गढ़वाल रेजीमेंट के सैनिक थे शांतिपूर्ण प्रदर्शन में बच्चे, नौजवान, बूढ़े ,महिलाएं ,शामिल थे अचानक अंग्रेजी सरकार ने गढ़वाल सैनिकों को प्रदर्शन कर्ताओ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया परंतु गढ़वाल सैनिकों ने गोली चलाने से इनकार कर दिया क्योंकि वह खुद भारतीय थे और उन्होंने कहा कि निहत्थे लोगों पर हम गोली नहीं चलाएंगे इसके बाद उन सभी ने अपनी-अपनी बंदूके फेंक दी
इससे अंग्रेजी अफसरों को बहुत ही अधिक गुस्सा आया और उन्होंने अंग्रेजी सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया इसके बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों और पठानों पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी गोलियां चलाने के बावजूद भी मुसलमानों ने ना तो हथियार उठाए और ना ही पीठ दिखाकर मैदान से भागे मुसलमानों की हिम्मत को देखकर अंग्रेजी अधिकारी डरने लगे और फिर उन्होंने खुद ने गोलियां चलानी शुरू कर दी निर्दई अंग्रेज मुसलमानों की लाशों पर पैर रखकर आगे बढ़ रहे थे इस लड़ाई में 500 से अधिक भारतीय शहीद हो गए थे भारतीय इतिहास की इस दर्दनाक घटना ने अंग्रेजों को और अधिक कमजोर कर दिया तथा पूरे देश में आजादी के आंदोलन को और अधिक मजबूत कर दिया था
राजनीतिक समझौता
साल 1931 को लंदन में हुए द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी और अंग्रेजी वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक राजनीतिक समझौता हुआ इस समझौते के बाद अब्दुल गफ्फार खान को जेल से रिहा किया गया अगस्त 1942 में हुए आंदोलन के दौरान फिर से अंग्रेजों ने बादशाह खान को गिरफ्तार कर लिया गया ताकि बादशाह खान की आवाज को दबाया जा सके इसके बाद 1947 में अब्दुल गफ्फार खान को रिहा किया गया जब देश आजाद हुआ तब भारत देश का बंटवारा हो गया अब्दुल गफ्फार खान इस बंटवारे से बहुत ही दुखी हुए दुर्भाग्य से अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तान में रह गए परंतु फिर भी वह पाकिस्तानी हुकूमत से लड़ते रहे पाकिस्तानी सरकार ने अब्दुल गफ्फार खान को जेल में ही रखा और उन्हें पाकिस्तान का गद्दार घोषित कर दिया आज भी पाकिस्तान में अब्दुल गफ्फार खान को गद्दार समझा जाता है
अब्दुल गफ्फार खान को मिला अवार्ड
1970 में अब्दुल गफ्फार खान भारत घूमने आए तब उन्होंने कहा था कि भारत ने मुझे भेडियो के सामने फेंक दिया है मुझे भारत से जो उम्मीदें थी वह एक भी पूरी नहीं हुई 1987 में अब्दुल गफ्फार खान को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया
अब्दुल गफ्फार खान की मृत्यु
साल1988 में फिर से पाकिस्तानी हुकूमत ने उन्हें उनके घर में नजरबंद कर दिया और फिर 20 जनवरी 1988 को उनकी मृत्यु हो गई थी
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