बनभौरी माता का इतिहास, बनभौरी का मंदिर, बनभौरी धाम इतिहास, बनभौरी धाम इतिहास
बनभौरी माता का इतिहास
पूर्व समय की बात है एक अरुणा सर नाम का दैत्य था उसने भगवान ब्रह्मा की बहुत कठोर तपस्या की थी उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मदेव प्रकट हुए भगवान ब्रह्मदेव ने अरुण राक्षस से पूछा कि तुम क्या मांगना चाहते हो तब उसने कहा कि मुझे अमरता का वरदान दीजिए इस पर ब्रह्मदेव ने कहा कि यह संभव नहीं है इस पृथ्वी पर जिसने जन्म लिया है उसका मरना निश्चित है अमर होना संभव नहीं है इसलिए मैं तुम्हें यह वरदान नहीं दे सकता इसके बाद ब्रह्मदेव ने कहा कि तुम कुछ और वरदान मांग लो तब अरुण राक्षस ने कहा कि आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए की ना तो मुझे कोई पुरुष या कोई स्त्री मार सके, ना कोई दो पैरों वाला या चार पैर वाला मार सके
इसके बाद ब्रह्मदेव ने उनको यह वरदान दे दिया यह वरदान पाकर अरुण राक्षस अहंकार से भर गया वह सोचने लगा कि इस संसार में अब मुझे कोई नहीं मार सकता क्योंकि इस संसार में या तो दो पैर के जीव है या चार पैर के जीव है अहंकार से भरने के बाद अरुण राक्षस संत महात्माओं और जो समाज में अच्छे लोग थे उन पर अत्याचार करने लगा वह लोगों से कहने लगा कि मेरी नगरी में कोई भी परमात्मा का नाम नहीं लेगा यदि कोई भगवान को मानेगा तो वह सिर्फ मेरे को भगवान मानेगा मेरी पूजा करेगा इस संसार का मैं ही राजा हूं और मैं ही भगवान हूं इस प्रकार वह लोगों पर अत्याचार करने लगा वह देवताओं पर विजय हासिल कर देवलोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया था इसके बाद सभी देवता घबराकर भगवान शिव के पास गए और उनसे अपनी मदद के लिए आग्रह किया
उन्होंने महादेव से अपनी रक्षा के लिए निवेदन किया उन्होंने महादेव से सारी घटना के बारे में बताया और कहा कि अरुण राक्षस ने देवलोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया है उसी समय आकाश से आकाशवाणी हुई कि इस समस्या का हल “मां भगवती” ही कर सकती है उस राक्षस का वध मां भगवती ही अपने किसी रूप से कर सकती है उसने कहा कि जिस प्रकार का वरदान अरुण राक्षस ने मांग रखा है उसके आधार पर ब्रह्मा ,विष्णु, महेश भी उसका वध नहीं कर सकते इसके बाद सभी देवता मिलकर मां भगवती की आराधना करने लगे देवताओं की कठोर तपस्या के बाद माता भगवती प्रकट हुई जो माता भगवती प्रकट हुई उस समय उनके छह पैर थे और उनके चारों तरफ भंवरों का झुंड मंडरा रहा था
उनके हाथ में भी भंवरे ही भंवरे थे जिसके कारण देवताओं ने उनका नाम भ्रमरी माता रख दिया इसके बाद देवताओं ने उन्हें भ्रमरी नाम से संबोधित किया इसके बाद देवताओं ने बनभौरी माता को अरुण राक्षस के बारे में बताया कि किस प्रकार उसने ब्रह्मदेव से वरदान पाकर उत्पात मचाया हुआ है उन्होंने भ्रमरी माता से कहा कि अब आप ही हमारी रक्षा कर सकती हो इसके बाद भ्रमरी माता ने कहा कि आप लोग चिंता मत कीजिए उस राक्षस को उसके पापों का फल जरूर मिलेगा इसके बाद भ्रमरी माता ने अपने भंवरों को आदेश दिया कि दैत्य अरुण का वध कर के आओ इसके बाद पूरे ब्रह्मांड में भंवरे ही भंवरे छा गए
भंवरों का झुंड अरुण राक्षस को घेर लेता है और उसके चिपक जाते हैं अरुण राक्षस चिल्लाने लगता है उसके शरीर को चारों तरफ से भंवरों ने काटना शुरू कर दिया इस प्रकार भंवरों ने अरुण राक्षस को नींद की मौत सुला दिया इसके बाद सभी देवता बहुत खुश हुए और उन्होंने मां भ्रमरी को धन्यवाद किया इसके बाद माता बनभौरी ने कहा कि मैं महामृत्यु मंडल पर इसी रूप में स्थापित रहूंगी और जो भी मेरी पूजा आराधना करेगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण करूंगी | बनभौरी माता का इतिहास |
बनभौरी का मंदिर
यह मंदिर हरियाणा के हिसार जिले में है माता हरियाणा में भ्रमरी देवी के रूप में स्थापित है यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है यह मंदिर बनभौरी गांव में स्थित है इस मंदिर की मान्यता देश विदेश में फैली हुई है माना जाता है कि माता भ्रमरी वह अष्टभुजी माता महिषासुर वर्धनी की मूर्तियां धरती से ही प्रकट हुई थी माता के दरबार में आकर श्रद्धालु बड़ी ही श्रद्धा के साथ धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं मन्नत पूरी होने पर माता के दरबार में हाजिरी लगाते हैं यहां पर श्रद्धालु अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी करवाते हैं नवविवाहित जोड़ों के द्वारा माता का आशीर्वाद लेने की परंपरा यहां वर्षों से पुरानी है
यहां पर यह माना जाता है कि सच्चे मन से धागा बांधकर जो मन्नत मांगी जाती है वह अवश्य पूरी होती है माता भ्रमरी सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी करती है यहां मंदिर में साक्षात माता विराजमान है माता भगवती का ही एक अवतार है भ्रमरी देवी इस मंदिर में 24 घंटे अखंड ज्योत जलती रहती है नवरात्रों में यहां पर बहुत ही भव्य मेला लगता है जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु अपनी मन्नत मांगने के लिए आते हैं इस मेले में बहुत अधिक भीड़ होती है मंदिर में धरती से प्रकट हुई मूर्तियों के अलावा भी अन्य मूर्तियां स्थापित की गई है इसमें मां काली, भैरव बाबा ,राधा कृष्ण ,हनुमान व शिव परिवार शामिल है | बनभौरी माता का इतिहास |