गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय

गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय

गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय 

गगनेंद्रनाथ टैगोर का जन्म 17 सितंबर सन 1867 को ब्रिटिश कालीन भारत में कोलकाता में जोड़ासाँको के ठाकुर परिवार में हुआ था बड़े भाई और रविंद्र नाथ टैगोर के भतीजे थे इनके पिता जी का नाम गुनेंद्र नाथ टैगोर था इनकी माता का नाम ‘सुहासिनी देवी’ था जब गगनेंद्रनाथ 14 वर्ष के थे तब इनके पिता की मृत्यु  हो गई थी इनकी माता ने इनका पालन पोषण किया था

इस परिवार की सृजनशीलता ने पूरे बंगाल की संस्कृति को नया रूप दिया गगनेंद्रनाथ टैगोर और उनके भाई अवनींद्र नाथ भारत के आधुनिक कलाकारों में अग्रणी थे गगनेंद्रनाथ ने किसी प्रकार की स्कूली शिक्षा नहीं ली थी और न ही उन्होंने किसी गुनी, ज्ञानी जैसी पढ़ाई की, लेकिन जल छविकार “हरिनारायण बंदोपाध्याय” से उन्हें प्रशिक्षण मिला इसके बाद वे कला में परिपक्व होते गए सन 1907 में अपने भाई अवनींद्र नाथ के साथ मिलकर गगनेंद्रनाथ टैगोर ने ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट’ की स्थापना की थी इसके बाद उनकी एक पत्रिका “रूपम” प्रकाशित हुई जो लोगों को अच्छी लगी

इसके बाद 1906 से 1910 के बीच गगनेंद्रनाथ टैगोर ने जापानी ब्रूस तकनीक व अपने काम में सुदूर पूर्वी कला के प्रभाव का अध्ययन किया कुछ सीखने की जिज्ञासा ने उन्हें विशेष ज्ञान दिलाया विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी ‘जीवन स्मृति’ से उनके कुछ कर दिखाने की जिद व सीखने की चाह ने उन्हें शिखर पर पहुंचा दिया इसके बाद गगनेंद्रनाथ टैगोर ने अपनी दिशा बदल ली और व्यंग्यात्मक संसार की ओर कदम बढ़ा दिया

1917 में “मॉडर्म रिव्यू” में गगनेंद्रनाथ टैगोर के कुछ व्यंग्य चित्र प्रकाशित हुए यह उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ था जोड़ासाँको थिएटर की स्थापना का श्रेय भी उन्हीं को जाता है वे डिजाइनिंग मंच स्थापना एवं विभिन्न नाटकों के लिए वेशभूषा को डिजाइन करने में सक्रिय रूप से सलंगन रहे थे |गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय 

गगनेंद्रनाथ टैगोर की चित्र शैली 

गगनेंद्रनाथ टैगोर ने कुछ राजनीतिक व्यंग्य चित्र भी बनाए उनकी सामाजिक व्यंग में इतनी सच्चाई होती थी कि व्यंग्य के तीरों से कोई भी अन्याय अत्याचारी घायल हो जाता था वह समाज की सड़ी गली रीतियो का व्यंगात्मक तरीके से वर्णन करते थे उस समय समाज में जो कुरीतियां चल रही थी उन्हीं को गगनेंद्र नाथ टैगोर ने अपने चित्रों के माध्यम से दर्शाया है 1940 के दशक से पहले भी अकेले भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने भाषा का इस्तेमाल बड़े ही रोचक ढंग से किया था

उनके कार्टून के साथ शब्दों की युगलबंदी नासूर का काम करती थी किताब ‘नाट्यशाला’ के साथ उनका रिश्ता बहुत ही गहरा एवं बेहद अटूट था गगनेंद्रनाथ के मन में बच्चों के लिए अपार श्रद्धा और स्नेह था इसलिए उन्होंने बच्चों के लिए वोदर बहादुर नामक पुस्तक की रचना भी कर डाली थी गगनेंद्रनाथ टैगोर ने शुरुआती दौर में चौड़े तूलिकाघातो का प्रयोग किया किंतु धीरे-धीरे यह तूलिकाघात छोटे होते गए गगनेंद्रनाथ भारतीय कार्टून जगत के अग्रदूतो में एक थे 1915 से लेकर 1922 तक गगनेंद्रनाथ के सर्वश्रेष्ठ कार्टूनों का निर्देशन पूरी दुनिया को देखने को मिला उनके कार्टूनों में उस समय की विडंबनाओं का अत्यधिक चित्र अंकित था

पंजाब के दर्दनाक जलियांवाला बाग के हत्याकांड पर आधारित उनकी कार्टून ‘पीस रीडस्टोर्ट’ इन पंजाब एक कार्टून कलाकार का अतुल्य साहस था गगनेंद्रनाथ टैगोर कार्टून सीरीज “दी स्ट्रीम” मील का पत्थर है गगनेंद्रनाथ  एक और जापानी वास तकनीक और दूसरी ओर यूरोपीय कला अभ्यासो के आयाम चित्रवाद, भविष्य वादी और अभिव्यक्ति वाद से प्रेरित थे ‘डॉक्टर स्टेला क्रामरीश’ ने सर्वप्रथम गगनेंद्रनाथ ठाकुर को घनवादी चित्रकार कहा था गगनेंद्रनाथ टैगोर घनवाद के अतिरिक्त प्रभाववाद से भी प्रभावित थे |गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय 

गगनेंद्रनाथ टैगोर के प्रमुख चित्र 

गगनेंद्रनाथ टैगोर ने गगनेंद्रनाथ टैगोर ने वास शैली में चैतन्य चरित माल का चित्रण किया चैतन्य चरित माला में चैतन्य के देह त्याग से जन्म तक के 21 चित्र सम्मिलित है गगनेंद्रनाथ ने प्रभाववादी चित्र भी बनाए जैसे कि कांग्रेस को संबोधित करते कवि रविंद्र ,जंगल की आग, रॉयल जैकलिनडा, बसंत, रांची में सूर्यास्त ,डिपार्चर ऑफ चैतन्य, दी कमिंग ऑफ प्रिंसेज, देसोलेट हाउस,स्क्रिप्ट  ऑफ नाइट आदि इन्होंने हिमालय के भी अनेकों चित्र बनाए हैं “प्रकाश की प्रथम किरण” इनका प्रसिद्ध चित्र है जिसमें हिमालय के शिखर को हल्का गुलाबी तथा बैंगनी अभावों से रंजीत करती सूर्य की प्रथम रश्मियों का चित्रण हुआ है

1914 में पेरिस में भारतीय चित्रों की प्रदर्शनी में इनके भी 6 चित्र सम्मिलित हुए थे 1923 में बर्लिन में भारतीय आधुनिक चित्रकला की प्रदर्शनी में गगनेंद्रनाथ की कृतियां शामिल हुई थी गगनेंद्रनाथ ने वॉच तकनीक, तेल रंग, जल रंग, टेंपरा पद्धति को अपनाया था गगनेंद्रनाथ की पिकासो ,बराक, पोल कली आदि पाश्चात्य कलाकारों से समानता की जाती है गगनेंद्रनाथ के पास राजपूत और मुगल शैली की चित्रावली या का संग्रह था |गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय 

गगनेंद्रनाथ टैगोर की मृत्यु 

गगनेंद्रनाथ टैगोर का निधन 1938 में हुआ था वह पक्षाघात के शिकार हुए थे भारतीय डाक और टेलीग्राफ विभाग ने उनकी 101 वीं जयंती पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था उनके चित्र और रेखा चित्र में अब भी उनकी समृद्धि और समाज से सामाजिक गंदगी दूर करने की ललक साफ-साफ दिखाई पड़ती है उनकी मृत्यु के कई साल बीत जाने के बावजूद आज भी वह प्रमाणिक प्रयोगवादी चित्रकार माने जाते हैं

उन्होंने भारतीय चित्रकला की महफिल में विदेशी रंग भर कर उसे घर घर में परिचित करवाया था गगनेंद्रनाथ के चित्र प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम मुंबई, जगमोहन पैलेस मैसूर, श्री चित्रा लियम त्रिवेंद्रम, आशुतोष म्यूजियम ऑफ इंडियन आर्ट कोलकाता आदि में सुरक्षित है गगनेंद्रनाथ का गोल्ड तथा इंडियन इंक से बना प्रसिद्ध चित्र ‘फेयरी लैंड’ है| गगनेंद्रनाथ टैगोर(ठाकुर) का जीवन परिचय 

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