गंगेश्वर मंदिर का इतिहास, गंगेश्वर मंदिर का निर्माण, गंगेश्वर मंदिर की विशेषता , पौराणिक कथा
गंगेश्वर मंदिर का इतिहास
गंगेश्वर महादेव मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग महाभारत काल के हैं जो पांडवों द्वारा बनाए गए थे इस मंदिर में 5 शिवलिंग है इसलिए यह मंदिर 5 शिवलिंग के लिए भी जाना जाता है इस मंदिर का नाम गुजरात के प्राचीन शिव मंदिरों में आता है इस मंदिर का वातावरण अत्यंत पवित्र और निर्मल है जो कि हर समय समुंदर की लहरों की आवाजों को सुना जा सकता है इसलिए इस मंदिर से एक शक्तिशाली ऊर्जा का संचार होता है
जिसको देखने में महसूस करने के लिए दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं यह मंदिर अपनी शांति और सुंदरता के कारण भगवान शिव की पूजा करने के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना गया है गंगेश्वर मंदिर में शिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है इस दौरान लाखों श्रद्धालु महादेव के दर्शन के लिए आते हैं | गंगेश्वर मंदिर का इतिहास |
गंगेश्वर मंदिर का निर्माण
इस मंदिर का निर्माण 5000 साल पहले महाभारत काल के समय पांडवों द्वारा किया गया था यह मंदिर एक छोटे से द्वीप दीव में स्थित है जो एक छोटा सा द्वीप है जो गुजरात के सौराष्ट्र प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित है महादेव शिव को समर्पित गंगेश्वर मंदिर ‘फूदम’ गांव में है जो दीव से 3 किलोमीटर दूर है गंगेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में बहुत ही अद्भुत मंदिर है ऐसा इसलिए क्योंकि यह मंदिर समुद्र तट पर है और बार-बार समुंदर की लहरें शिवलिंग पर आती रहती है गंगेश्वर शब्द का अर्थ भगवान शिव से है जो अपने बालों में गंगा को समेटे हुए हैं भगवान शिव को धरती पर प्रवाहित होने वाली गंगा का स्वामी माना जाता है
गंगेश्वर मंदिर मूल रूप से गुफा मंदिर है जो समुद्र तट पर चट्टानों के बीच स्थित है इस मंदिर में 5 शिवलिंग है जो स्वयं अरब सागर के पानी से धूलते रहते हैं इसी वजह से यहां का नजारा बहुत ही खास होता है जिसकी वजह से दूर-दूर से श्रद्धालु इस नजारे को देखने के लिए यहां आते रहते हैं लोग पैदल चल कर ही इस मंदिर में दर्शन करने जाते हैं इसके लिए उन्हें जवार के उतरने का इंतजार करना पड़ता है भारी जवार के वक्त केवल मंदिर की पताका और खंभा ही नजर आता है जिसे देख कर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि पानी के नीचे समुंदर में महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है यहां पर शिव जी के पांच “स्वयंभू शिवलिंग” है | गंगेश्वर मंदिर का इतिहास |
पौराणिक कथा
इस मंदिर को पांच पांडवों ने मिलकर बनाया था जिन्होंने अपने निर्वासन के दौरान पूरी दुनिया में इसी हिस्से को चुना था और अपने दैनिक पूजा के लिए यहां शिवलिंग को स्थापित किया था यह मंदिर महाभारत काल से बना हुआ है महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को मारकर युद्ध जीता लेकिन युद्ध समाप्ति के पश्चात पांडव यह जानकर बड़ी दुखी हुए कि उन्हें अपने ही सगे संबंधियों की हत्या का पाप लगा है इस पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्री कृष्ण से मिले पाप से मुक्ति के लिए श्री कृष्ण ने पांडवों को एक काला ध्वज और एक काली गाय सौंपी और पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा तथा बताया कि जब ध्वजा और गाय दोनों का रंग काले से सफेद हो जाए तो समझ लेना कि तुम्हें पाप से मुक्ति मिल गई है
साथ ही श्रीकृष्ण ने उनसे यह भी कहा कि जिस जगह ऐसा हो वहां पर तुम सब भगवान शिव की तपस्या भी करना इसके बाद पांचों भाई काली धजा हाथ में लिए काली गाय का अनुसरण करने लगे इस क्रम में वह सब कई दिनों तक अलग-अलग जगह गए लेकिन गाय और ध्वजा का रंग नहीं बदला लेकिन जब वह वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफेद हो गया इससे पांचों भाई बहुत खुश हुए और वहीं पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे इसके बाद भगवान भोलेनाथ उनकी तपस्या से खुश हुए और पांचों भाइयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए थे यह पांचों शिवलिंग आज भी यहां मौजूद है इन शिवलिंगो के सामने नंदी की प्रतिमा भी स्थापित है यह पांचवा शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर स्थित है इस चबूतरे पर एक पानी का छोटा सा तालाब भी मौजूद है जिसे पांडव तालाब कहा जाता है
यहां पर आए हुए श्रद्धालु इस तालाब में अपने हाथ पैर धोते हैं और शिवलिंग की आराधना करते हैं क्योंकि यहां पर आकर पांडवों को अपने भाइयों की मृत्यु के कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे “निष्कलंक महादेव” का मंदिर भी कहा जाता है “भाद्रपद की अमावस्या” को यहां पर मेला लगता है अमावस्या के दिन इस मंदिर में भक्तों की बहुत अधिक भीड़ रहती है इस मंदिर में भगवान शिव को राख, दूध और नारियल चढ़ाया जाता है ऐसा माना जाता है कि यदि हम अपने किसी मरे हुए परिजन की राख शिवलिंग पर चढ़ा कर उसे जल में प्रवाहित करते हैं तो उसे मोक्ष की प्राप्ति मिलती है | गंगेश्वर मंदिर का इतिहास |
गंगेश्वर मंदिर की विशेषता
एक बार तीर्थयात्री गुफा में प्रवेश करते हैं तो उन्हें भगवान गणेश, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के दर्शन होते हैं समुंदर के पानी के बीच में विभिन्न आकारों में 5 शिवलिंग दिखाई दे सकते हैं यह मंदिर की बहुत महत्वपूर्ण विशेषता है और चट्टान के ऊपर शिवलिंग से सेना को शिवलिंग के लिए बाहर देखने के लिए तरस आ गया था यह लिंक आमतौर पर उच्च ज्वार के दौरान समुद्र में डूबे होते हैं यह मंदिर के उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित है जैसा मंदिर के नाम से पता चलता है कि यहां आने पर भक्तों को उलझन से मुक्ति मिलती है इस मंदिर में शिवलिंग के अलावा हनुमान जी, शिव पार्वती, संतोषी मां, राधाकृष्ण ,विश्वकर्मा भगवान का मंदिर भी है यहां महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर जनमानस की अपार भीड़ देखने को मिलती है यह मंदिर “सीशोर मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शिवलिंग समुंदर के किनारे पर स्थित है सालाना प्रमुख मेला “भावनगर” के महाराजा के वंशजो द्वारा मंदिर की पताका फहराने से शुरू हुआ है और यह बता का मंदिर पर 1 साल तक लहराती रहती है जब 2001 में यहां पर भयंकर भूकंप आया उस समय 50हजार लोग मारे गए थे लेकिन इस मंदिर की पताका को कोई भी नुकसान नहीं हुआ था यह वैसी की वैसी बनी रही थी | गंगेश्वर मंदिर का इतिहास |