गुरु अर्जुन देव का इतिहास, गुरु अर्जुन देव का जन्म, आदि ग्रंथ की रचना , अर्जुन देव के खिलाफ षड्यंत्र, गुरु अर्जुन देव को यातनाएं , गुरु अर्जुन देव की मृत्यु
गुरु अर्जुन देव का जन्म
गुरु अर्जुन देव का जन्म 15 अप्रैल 1563 ईस्वी को पंजाब के गोइंदवाल गांव में हुआ यह सिखों के पांचवें गुरु थे इनके पिता जी का नाम गुरु “रामदास’ और इनकी माता जी का नाम भानी देवी था इनके पिताजी सिक्खों के चौथे गुरु थे इन्होंने अपने विनम्र स्वभाव से सभी को अपनी और आकर्षित किया इनका बचपन इनके5 नाना जी अमर दास जी की देखरेख में गुजरा था इन्होंने अपने नाना जी से गुरुमुखी का ज्ञान प्राप्त किया था इसके अतिरिक्त इन्होंने संस्कृत, देवनागरी,और गणित का भी ज्ञान हासिल किया था इसके बाद 19 जून 1579 ईसवी को माता गंगा जी के साथ विवाह के बंधन में बंध गए थे ‘पृथ्वी चंद’ अर्जुन देव जी के बड़े भाई थे वे चाहते थे कि बड़े पुत्र होने के कारण गुरु गद्दी उन्हें मिलनी चाहिए लेकिन गुरु रामदास जी ने अर्जुन देव जी के अंदर सभी गुणों को देखते हुए उन्हें ही गुरु गद्दी पर विराजमान कर दिया जिससे पृथ्वी चंद्र अपने छोटे भाई अर्जुन देव से मन ही मन ईर्ष्या करने लगे | गुरु अर्जुन देव का इतिहास |
आदि ग्रंथ की रचना
गुरु गद्दी संभालने के बाद अर्जुन देव जी ने समाज कल्याण के काम शुरु करवा दिए उन्होंने ‘मंदर साहेब’ बनवाया और तरंग तार गुरुद्वारे की नीव रखवाई तथा सरोवर बनवाए इन्होंने आदि ग्रंथ की रचना की थी उस समय मुगल बादशाह अकबर का शासन था गुरु जी द्वारा लिखा गया आदि ग्रंथ पढ़कर कई मुस्लिम उनके अनुयाई बन गए थे गुरु अर्जुन देव जी की समाज में बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर जी के कान भरने शुरू कर दिए उन्होंने अखबार से कहा कि गुरु जी द्वारा लिखा गया आदि ग्रंथ में इस्लाम धर्म की निंदा की गई है ऐसा सुनकर अकबर गुरु जी के दरबार में पहुंचे और उन्होंने आदि ग्रंथ में अलग-अलग अंग सुनने की इच्छा की
आदि ग्रंथ सुनने के बाद अकबर को कहीं पर भी ऐसा एहसास नहीं हुआ कि इस्लाम धर्म की निंदा की गई है बल्कि सभी धर्मों को बराबर दर्जा दिया गया था इसके बाद अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उन्होंने गुरु अर्जुन देव की वाणी पर शक किया वह पश्चाताप के लिए हरमंदर साहिब पहुंचे और 51 स्वर्ण मुद्राएं भेंट की और अपनी गलती की क्षमा कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों को अकबर की यह बात अच्छी नहीं लगी अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर को दिल्ली का शासक बनाया गया और कट्टरपंथी मुसलमानों ने जहांगीर को कहा कि यदि तुम पूरे भारत पर शासन करना चाहते हो तो मुस्लिम धर्म को फैलाना होगा कूटनीति और शास्त्रों के बल पर ही भारत पर शासन किया जा सकता है | गुरु अर्जुन देव का इतिहास |
अर्जुन देव के खिलाफ षड्यंत्र
जहांगीर के दरबार में ‘चंदूसा’ नाम का एक ब्राह्मण था जो कि जहांगीर का खास सलाहकार था चंदू की बेटी विवाह योग्य हो चुकी थी लेकिन चंदू को उसके पंडित जी ने अर्जुन देव के बेटे हरगोविंद सिंह से विवाह करने की पेशकश रखी इसके बाद चंदू ने उस रिश्ते के लिए इंकार कर दिया और कहा कि गुरु अर्जुन देव तो लोगों के दान से अपना घर चलाते हैं तुम मेरी बेटी ऐसे घर में कैसे सुखी रह सकती है अपनी बेटी की बढ़ती हुई आयु को देखते हुए वह कुछ सालों बाद अर्जुन देव के बेटे हरगोविंद सिंह से रिश्ता करने के लिए पहुंच गए गुरु अर्जुन देव जी चंदूसा के बारे में अच्छी तरह से जानते थे इसलिए उन्होंने रिश्ता करने से साफ मना कर दिया
इस बात से चंदूसा के स्वाभिमान को ठेस पहुंची और उसके मन में गुरु अर्जुन देव के प्रति नफरत पैदा हो चुकी थी और उनका विरोधी बन गया जहांगीर की नीतियां अपने पिता अकबर से बिलकुल ही विपरीत थी वह एक कट्टरपंथी शासक था गुरु अर्जुन देव के भाई पृथ्वी चंद जहांगीर को अपने भाई की सारी बातें बताया करता था पृथ्वी चंद ने अपने भाई से बदला लेने के लिए और गुरु गद्दी लेने के लिए मुसलमानों के साथ हाथ मिला लिया जहांगीर गुरु अर्जुन देव का सबसे बड़ा विरोधी बन गया था
इसके बाद जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी को पत्र भेजने शुरू कर दिए इस बात से गुरु गोविंद सिंह समझ गए थे कि यह संकेत अच्छे नहीं है इसलिए उन्होंने अपने बेटे हरगोविंद सिंह को गुरु गद्दी पर बैठा दिया और वह जहांगीर के दरबार में उपस्थित हुए जहांगीर ने गुरु को आदेश दिया कि आपके द्वारा लिखा गया आदि ग्रंथ से हिंदू और मुसलमान की सारी बातें हटानी होगी और फिर से आदि ग्रंथ लिखना होगा इसके बाद गुरु अर्जुन देव जी ने जहांगीर की बात को अस्वीकार कर दिया जिससे जहांगीर ने उन्हें बंदी बना लिया | गुरु अर्जुन देव का इतिहास |
गुरु अर्जुन देव को यातनाएं
चंदू सा जो गुरुदेव से सबसे अधिक नफरत करता था वह जहांगीर से इजाजत लेकर उन्हें अपने घर लाहौर ले गया घर ले जाने के बाद उसने गुरु जी को बहुत यातनाएं देनी शुरू कर दी पहले दिन उन्हें भूखा रखकर बहुत ही यातनाएं दी गई दूसरे दिन उसने गुरु जी को उबलते पानी के अंदर बैठा दिया गुरुजी की चिल्लाने की आवाज को सुनने के लिए चंदूसा उनके पास आया तो उसे सुनाई दिया “सतनाम श्री वाहेगुरु” उस समय गुरु जी परमात्मा की भक्ति में लीन थे उस समय बहुत अधिक गर्मी हुआ करती थी गर्म पानी में बढ़ने के कारण उनका पूरा शरीर छालों से भर गया था
तीसरे दिन चंदूसा ने गुरुजी को गर्म तवे पर बैठा दिया और मैं गुरु जी से बोला यदि आपने मेरी बेटी का रिश्ता ठुकराया नहीं होता तो आपकी यह दशा नहीं होती इन लोगों ने अपनी सारी इंसानियत खत्म कर कर गुरुजी के बालों में गर्म रेत डाल दी यह खबर पूरे लाहौर शहर में आग की तरह फैल गई इसके बाद उनका प्यारा भगत मियां मीर वहां पहुंचा जब उसने गुरु जी की ऐसी दशा देखी तो अपनी आंखों पर हाथ रख लिया तो गुरु जी ने कहा देखो तुम्हारे शहर लाहौर में मेरा कितना सम्मान किया जा रहा है यह सुनकर मियां मीर फूट-फूट कर रोने लगे और वह गुरुजी के पास आकर बोले कि मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं इन दुष्टों को जड़ से ही खत्म कर दूं तब गुरुजी ने उनसे कहा कि रब के हुकुम को स्वीकार करना चाहिए इसके बाद गुरु अर्जुन देव ने कहा कि मैं यह सारी अपना इसलिए सेंड कर रहा हूं कि आने वाली पीढ़ी को यह संदेश दे सकूं की दुख के समय प्रभु के खिलाफ नहीं जाना चाहिए उनकी इन बातों को सुनकर मियां मीर उनकी प्रशंसा के गीत गाने लगे गुरुजी यात्रा सहन करते हुए भी कहते रहे-
“तेरा भाणा मीठा लागे, हरनाम पदार्थ नानक मांगे”
उनके सारे भगत उनकी यह दशा देखकर तड़प रहे थे अगले दिन चंदू सा ने गुरुजी को और अधिक कठिन यातना देने की सूची और उन्होंने अपने सेवकों को गाय की चमड़ी लाने के लिए कहा ताकि गुरु जी का मुंह चमड़ी में लपेटकर उनका दम घोट दिया जाए उसी समय गुरुजी ने रावी नदी में स्नान करने की इच्छा उनके सामने प्रकट की
गुरु अर्जुन देव की मृत्यु
इसके बाद चंदूसा ने सोचा कि गुरु जी के छालों पर पानी पड़ने से उन्हें और अधिक पीड़ा होगी इसलिए उसने उन्हें स्नान करने की आज्ञा दे दी कहा जाता है कि 30 मई 1606 श्री को गुरु जी के भक्तों ने उन्हें रावी नदी के अंदर उतरते हुए देखा था और रावी नदी में डुबकी लगाने के बाद वह सदा के लिए नदी में समा गए गुरुजी ने पूरी दुनिया के सामने यह साबित किया कि सिख सच के लिए कुर्बान होना निरंकार का हुकुम समझता है और उसे स्वीकार करता है | गुरु अर्जुन देव का इतिहास |