History

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

 

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास जगन्नाथ मंदिर की विशेषताएं क्या है, जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कैसे हुआ, जगन्नाथ भगवान की मौसी कौन है , जगन्नाथ मंदिर की छाया क्यों नहीं है

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास 

जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा के पुणे में स्थित है यहां हर वर्ष देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं यहां पर हर वर्ष बड़ी धूमधाम से मंगलवार 23 जून को रथयात्रा निकाली जाती है बहुत समय पहले मध्य भारत में मालवा नाम का एक राज्य हुआ करता था जिसके राजा इंद्रद्युम्न थे इनके पिता जी का नाम भरत और इनकी माता जी का नाम सुमति था

राजा इंद्र देव भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे उनके मन में हमेशा यह इच्छा रहती थी कि उन्हें भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हो जाए तो उनका जीवन सफल हो जाएगा एक समय की बात है कि राजा के महल में एक ज्ञानी ऋषि पहुंचे और उन्होंने राजा जी से पूछा कि आप भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त हैं क्या आप उड़ीसा में पूजे जाने वाले भगवान विष्णु के रूप को जानते हो ऋषि के मुख से ऐसी बातें सुनकर राजा बोले कि मैं तो इस विषय में अब तक अज्ञानी रहा हूं इसके बाद राजा ऋषि से बोले कि कृपया करके मुझे बताइए कि मेरे आराध्य देव भगवान विष्णु को उड़ीसा में कहां पूजा जाता है इसके बाद ऋषि बोले कि इस विषय में मुझे भी कुछ नहीं पता इसलिए मैं आपसे पूछ रहा हूं इसके बाद राजा ने अपने मुख्य पुजारी के भाई विधिवती को यह आदेश दिया कि वह उड़ीसा जाए और इस बात का पता लगाए कि भगवान विष्णु के दिव्य रूप नीलमाधव की पूजा कहां की जाती है

राजा का आदेश मिलते ही विद्यावती उड़ीसा के लिए निकल पड़े ,कुछ दिनों की यात्रा के बाद वह उड़ीसा पहुंचे तो उन्हें गुप्तचरों से यह पता चला कि सबर कबीले के लोग भगवान विष्णु के इस रूप की पूजा करते हैं इसके बाद वह कबीले के मुखिया विश्ववासु के  पहुंच पास पहुंचे और उन से विनती करी की वह उन्हें उस जगह लेकर चले जहां पर भगवान विष्णु के नीलमाधव रूप की पूजा की जाती है इसके बाद विश्वासु ने विद्यावति को वहां ले जाने से मना कर दिया इसके बाद विद्यावती चिंता में पड़ गए इसके बाद उन्होंने मन में ठान लिया कि वह नीलमाधव के दिव्य स्थान के दर्शन कर के ही जाएंगे इसके बाद विद्यावती जी वहां पर कुछ समय के लिए ठहरे और वहां पर ठहरने के बाद उन्हें इस बात का पता चला कि सब्र कबीले का मुखिया ही नीलमाधव का उपासक है और उन्होंने भगवान विष्णु की मूर्ति को किसी गुफा में छुपा कर रखा है इसके बाद सबर कबीले के मुखिया की बेटी से विद्यावती को प्रेम हो गया और उन्होंने उनकी बेटी से विवाह कर लिया इस प्रकार विद्यावती जी के वहां पर कई दिन बीत चुके थे

एक दिन विद्यापति ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम अपने पिताजी से बोलो कि वह मुझे नील माधव के दर्शन करा दें इसके बाद उनकी पत्नी ने अपने पति धर्म को निभाते हुए अपने पिता विश्ववासु से कहा कि वह उन्हें नीलमाधव के दर्शन करवा दे इसके बाद अपनी बेटी की विनती सुन कर विश्ववासु तैयार हो गए परंतु उन्होंने उनके सामने एक शर्त रखी कि विद्यावती को आंखों पर पट्टी बांधकर वहां ले जाया जाएगा इसके बाद विद्यावती ने यह शर्त मंजूर कर ली शर्त के अनुसार अगले दिन विश्वासु विद्यावती को आंखों पर पट्टी बांधकर नीलमाधव के दर्शन कराने के लिए उन्हें वह लेकर गया

परंतु विद्यावती बहुत ही चालाक थे वह रास्ता याद रखने के लिए रास्ते में छोटे-छोटे कंकर फेंकते चला गया और दर्शन करने के बाद वह वापस लौट आया अगले दिन विद्यावती छोटे-छोटे कंकड़ की मदद से उस गुफा तक पहुंच गया और उन्होंने गुफा से नीलमाधव की मूर्ति को चुरा लिया और राजा के पास लेकर आ गए इसके बाद जब विश्ववासु को इस बात का पता चला कि उनके भगवान की मूर्ति चोरी हो गई है तो वह बहुत ही दुखी हुए और उनके दुख को देखकर भगवान भी दुखी हो गए और वह वापस गुफा में लौट आए इसके साथ ही भगवान विष्णु ने राजा को साक्षात दर्शन दिए और उन्हें यह वचन दिया कि वह एक दिन वापस जरूर लौट कर आएंगे ,

परंतु  पहले वह एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाएं इसके बाद राजा ने एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था इसके बाद राजा ने भगवान विष्णु को मंदिर में विराजमान होने के लिए प्रार्थना की इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि मेरी मूर्ति को विराजमान करने के लिए पहले तुम समुंदर से एक बड़ी लकड़ी का टुकड़ा उठा कर लेकर आओ इसके बाद राजा ने अपने सैनिकों को यह कार्य करने का आदेश दिया जब उनके सैनिकों ने समुंदर में जा कर इस लकड़ी के टुकड़े को उन सभी सैनिकों ने मिलकर उठाने की कोशिश की तो वह नाकाम रहे राजा यह देख कर अचंभित हुए और उन्होंने सोचा कि इस कार्य के लिए विश्ववासु की सहायता लेनी पड़ेगी इसके बाद राजा कबीले के मुखिया के पास गए और उनसे विनती की कि वह लकड़ी के टुकड़े को उठाने में उनकी मदद करें इसके बाद विश्वासु ने अकेले भारी लकड़ी के टुकड़े को उठा लिया यह देखकर राजा बहुत ही आश्चर्य चकित रह गए इसके बाद राजा ने उस लकड़ी के टुकड़े को कारीगरों को सौंपा और कहा कि इस टुकड़े से भगवान विष्णु की मूर्ति बनाएं

परंतु वह सभी कारीगर उस लकड़ी में एक भी कील नहीं लगा पाए इसके बाद भगवान विश्वकर्मा एक कारीगर का रूप लेकर वहां पर आए और उन्होंने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह नीलमाधव की मूर्ति 21 दिन में बनाएंगे कोई भी उन्हें मूर्ति बनाते हुए नहीं देखेगा इसके बाद राजा ने यह बात मान ली थी कुछ समय तक मंदिर से हथोड़ा और छिनी की आवाज आती रही 15 दिन के बाद जब राजा की रानी अपने आप को नहीं रोक पाए और वह मंदिर के पास चली गई जब वह मंदिर के पास पहुंची तो उन्हें कोई भी आवाज नहीं आई उन्होंने सोचा कि शायद बूढा कारीगर मर चुका है इसके बाद रानी ने राजा इंद्रद्युम्न को यह सूचना दी कि अंदर से कोई भी आवाज नहीं आ रही है तो राजा ने शर्त का उल्लंघन करते हुए दरवाजा खोलने का आदेश दे दिया

जैसे ही दरवाजा खुला तो बुड्ढा कारीगर उस कमरे से गायब था और तीन अधूरी मूर्तियां पड़ी मिली थी उन तीनों मूर्तियों में नील माधव के भाई के हाथ नहीं बने हुए थे और उनकी बहन सुभद्रा का हाथ पैर दोनों ही नहीं बने हुए थे इसके बाद राजा ने उन तीनों अधूरी मूर्तियों को स्थापित करने का फैसला ले लिया और तब से लेकर आज तक तीनों भाई-बहन इसी रूप में जगन्नाथ पुरी के मंदिर में विराजमान है ऐसा माना जाता है कि आज भी नीलमाधव की मूर्ति में दिल धड़कता है | जगन्नाथ मंदिर का इतिहास |

जगन्नाथ मंदिर का रहस्य

1. मंदिर के शिखर पर लगी हुई ध्वज हमेशा विपरीत दिशा में लहर आती है और इस ध्वज को हर रोज बदला जाता है और बदलने वाला उल्टा चढ़कर शिखर तक पहुंचता है

2.मंदिर के शिखर पर लगा हुआ सुदर्शन चक्र जिसे नील चक्कर भी कहा जाता है यह चक्कर यदि हम किसी भी कोने में खड़े होकर इस चक्र को देखेंगे तो यह हमेशा सीधा ही नजर आता है 

3.इस मंदिर के शिखर के ऊपर से ना तो कभी कोई विमान गुजरता है और ना ही इसके ऊपर कभी कोई पक्षी बैठता है या उड़ता है 

4.इस मंदिर की दिन के समय किसी भी प्रकार की परछाई नजर नहीं आती 

5.इस मंदिर में कदम रखने के बाद समुंदर की लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती 

| जगन्नाथ मंदिर का इतिहास |

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