खाटू श्याम का इतिहास, सूरजगढ़ की निशान यात्रा, खाटू श्याम की पौराणिक कथा
खाटू श्याम का इतिहास
खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के खाटू नगरी में स्थित है यहां पर हर वर्ष फाल्गुन के महीने में मेला लगता है और यहां पर निशान यात्रा निकाली जाती है बर्बरीक की तपस्या से भगवान श्री कृष्ण बहुत ही खुश थे जब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनके शीश का दान मांगा तो उन्होंने हंसते हुए अपना शीश काटकर भगवान श्री कृष्ण को दे दिया
तब भगवान श्रीकृष्ण ने देवी भगवती से निवेदन किया कि आप बर्बरीक के शीश को अमृत प्रदान करें इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की इच्छा के अनुसार मां भगवती ने बर्बरीक को अमृत प्रदान किया जैसे ही बर्बरीक को अमृत का पान मिला तो वह फिर से जीवित हो उठे इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे यानी कि श्याम नाम से जाने जाओगे और बर्बरीक से पूछा कि क्या तुम्हारी कोई इच्छा है
तब बर्बरीक ने कहा कि हे श्री कृष्ण मुझे महाभारत का युद्ध देखना है बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि मुझे कुछ ऐसी शक्ति दीजिए जिससे मैं महाभारत का युद्ध देख सकूं और मेरी देह को स्वयं अपने हाथों से अग्नि प्रदान करें यह इच्छा बर्बरीक ने प्रकट की थी तब भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर अपनी सारी शक्तियों बर्बरीक को प्रदान की थी इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि माता के आशीर्वाद से तुम हारने वालों का साथ देने के लिए आए हो इसलिए हमेशा हारे हुए का सहारा बनना 1 दिन खाटू नगरी में चमत्कार हुआ और खाटू श्याम का शीश प्रकट हुआ | खाटू श्याम का इतिहास |
सूरजगढ़ की निशान यात्रा
रींगस नगरी से खाटू नगरी तक श्री श्याम के ध्वज को हाथ में लेकर पैदल यात्रा को निशान यात्रा कहते हैं इस यात्रा में श्याम भगत श्याम के ध्वज को अपने हाथों में उठा कर पैदल खाटू श्याम तक जाते हैं यह 20 किलोमीटर की पैदल यात्रा है माना जाता है कि निशान यात्रा करने वाले भक्तों की हर मनोकामना श्याम बाबा पूर्ण करते हैं श्याम बाबा के निशान हरे, लाल, केसरिया रंग के होते हैं इन झंडो पर श्याम बाबा के जयकारे लगे होते हैं कुछ लोग निशान पर नारियल और मोरपंखी भी लगाते हैं कई लोग सोने और चांदी का निशान भी श्याम बाबा को अर्पित करते हैं
निशान यात्रा शुरू करने से पहले निशान की पूजा की जाती है सूर्य उदय से पहले निशान यात्रा शुरू करना उत्तम माना जाता है इसके बाद धूप, चंदन, पुष्प से निशान की पूजा की जाती है श्याम बाबा पर मोगरे का इत्र अर्पित किया जाता है खाटू श्याम में सबसे प्राचीन निशान सूरजगढ़ का निशान चढ़ता है यह निशान बाबा श्याम के शिखर तक जाता है यह निशान फाल्गुन के द्वादशी को चढ़ाया जाता है
सूरजगढ़ के निशान का इतिहास 372 वर्ष पुराना है 1702 ईसवी में “तुलसाराम जी” के द्वारा सबसे पहले यह निशान बाबा खाटू श्याम को अर्पित किया गया था यह निशान बिल्कुल सफेद होता है और इसमें बाबा श्याम को घोड़े पर बैठे हुए दर्शाया गया है सफेद रंग यानी कि शांति का प्रतीक होता है और यह निशान पदयात्रा शांतिपूर्वक निकाली जाती है सूरजगढ़ से खाटू श्याम तक की यह यात्रा 152 किलोमीटर है यात्रा से आते समय सूरजगढ़ के लोग नाचते गाते हुए आते हैं यह यात्रा 4 दिन में पूरी होती है | खाटू श्याम का इतिहास |
खाटू श्याम की पौराणिक कथा
प्राचीन समय की बात है की एक गाय खाटू नगरी में घास के मैदानों में घास खाने के लिए जाया करती थी और वह उस घास के मैदान में एक भाग पर जाकर खड़ी हो जाती थी गाय एक निश्चित स्थान पर जाकर खड़ी होती थी तो उससे दूध की धारा अपने आप ही बहने लगती थी वह दूध की धार लगातार बहती और जमीन में समा जाती थी ऐसा लगता था जैसे कोई जमीन के अंदर से उस गाय का दूध पी रहा हो जब वह गाय घास खाकर वापस घर जाती तो उसका मालिक दूध निकालने की कोशिश करता था तो दूध नहीं निकलता था तो दूध नहीं निकलता था ऐसा कई दिनों तक चलता रहा
तब गाय के मालिक ने सोचा कि कुछ तो गड़बड़ है कोई इस गाय का दूध निकाल लेता है 1 दिन उस गाय के मालिक ने सोचा कि मैं गाय का पीछा कर कर यह देख लूंगा कि कौन इस का दूध निकालता है और वह गाय का पीछा करने लगा संध्या तक उसने गाय का पीछा किया जैसे ही और अधिक संध्या हुई तो वह गाय अपने निश्चित स्थान पर गई और दूध अपने आप ही निकलने लगा और धरती में समाने लगा जब गाय के मालिक ने यह नजारा देखा तो वे हैरान रह गया इसके बाद वह मालिक जुड़ा हुआ राजा के पास गया और उसने राजा को सारी घटना के बारे में बताया गाय के मालिक की यह बात सुनकर राजा और उसकी सभा को उस पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ
उसके बार-बार बताने पर राजा की भी इच्छा हुई वह नजारा देखने की अगले दिन राजा भी अपने मंत्रियों के साथ उस गाय के पीछे पीछे गया इसके बाद जैसे ही संध्या हुई वह गाय अपने निश्चित स्थान पर जाकर खड़ी हो गई और हर रोज की तरह गाय के थन से अपने आप ही दूध निकलने लगा इसके बाद राजा को विश्वास हो गया और उसने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि जहां पर गाय हर रोज जाकर खड़ी होती है जमीन का वह हिस्सा खोद डालो इसके बाद जमीन का वह भाग खोदा गया जैसे ही जमीन को खोजने लगे तो उसके अंदर से आवाज आने लगी कि जमीन को धीरे-धीरे खोदिए अंदर मेरा शीश है
उसी रात राजा को स्वप्न आया था और उनके सपने में खाटू श्याम ने उन्हें दर्शन दिए थे और उन्होंने राजा को बताया कि मेरे शीश का अवतरित होने का समय आ गया है मैं महाभारत काल में वीर बर्बरीक के नाम से जाना जाता था और मैंने भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश दान में दिया था और उसी के फलस्वरूप मुझे कलयुग में पूजे जाने का वरदान मिला है और जहां पर तुमने खुदाई जारी की है वहीं पर मेरा शीश दबा हुआ है उस खुदाई में तुम्हें मेरा शीश मिलेगा मेरे शीश को खाटू नगर में स्थापित कर देना सुबह जब राजा उठा तो उसने सपने की बात को याद रख कर खुद ने खुदाई शुरू की थोड़ी ही देर में खुदाई के बाद बाबा श्याम का शीश उस धरती से प्रकट हो गया इसके बाद राजा ने उस शीश को खाटू में मंदिर बना कर उसे स्थापित कर दिया | खाटू श्याम का इतिहास |