मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, मैथिलीशरण गुप्त का जन्म, राष्ट्रीयता की भावना, मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय, मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय
मैथिलीशरण गुप्त एक कवि, राजनेता, नाटककार थे 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में “कनकलता” नामक रचना आरंभ की थी इनका प्रथम काव्य संग्रह ‘रंग में भंग’ था महात्मा गांधी ने इन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की संज्ञा दी थी इन्हें आगरा विश्वविद्यालय से डि.लीट. से सम्मानित किया गया मैथिलीशरण गुप्त 1952 से 1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए इन्होंने अपनी रचना और ग्रंथों को छापने के लिए 1911 में “साहित्य सदन” नाम से प्रेस शुरू किया
गुप्त जी का काव्य क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है यह समन्वयवादी कवि है इन्होंने मानव प्रेम, भक्ति भावना और राष्ट्रीयता के स्वरों के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों और संप्रदायों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है इन्होंने सभ्यता संस्कृति एवं राष्ट्रीयता को विशेष स्थान दिया है भाव एवं कला पक्ष दोनों दृष्टि से इनका काव्य गरिमा पूर्ण है| मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय |
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर 3 अगस्त 1886 ईसवी में हुआ था इनके पिता रामचरण गुप्त को हिंदी साहित्य से बहुत ही प्रेम था इनके पिताजी का इनके ऊपर बहुत ही प्रभाव पड़ा था इनकी माता जी का नाम काशीबाई था मैथिलीशरण गुप्त जयशंकर प्रसाद के समकालीन थे इनकी प्राथमिक शिक्षा चिरगांव और माध्यमिक शिक्षा झांसी में हुई थी
गुप्तजी को प्रारंभ में अंग्रेजी पढ़ने के लिए झांसी भेजा गया परंतु वहां इनका मन न लगा तो घर पर ही इनकी शिक्षा का प्रबंध किया गया इन्होंने स्वाध्याय से अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था इनकी प्रारंभिक रचनाएं ‘वैश्योपकारक’ में छपती थी बाद में यह महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और उन्हें अपना गुरु मानने लगे थे
महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रेरणा पाकर इन्होंने खड़ी बोली में “भारत- भारती” की रचना की भारत सरकार ने इन्हें1954में पदम भूषण से सम्मानित किया था और महात्मा गांधी ने इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि प्रदान की थी मैथिलीशरण गुप्त ने “असहयोग आंदोलन” में भी हिस्सा लिया था जिसके कारण इन्हें जेल जाना पड़ा था मैथिलीशरण गुप्त कबीर दास जी के भक्त थे | मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय |
मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीयता की भावना
राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर गुप्तजी गांधीवादी एवं राष्ट्रवादी थे उनके हृदय में देश और जाति के प्रति अपरिमित सम्मान की भावना थी तो बुलाओ तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के उद्धार के लिए उनके सुदृढ़ संकल्प विद्यमान था उनके अन्य कृतियों में राष्ट्रीय भावना का यथोचित उद्गार व्यक्त हुआ है उन्होंने कभी भी और कहीं भी सामाजिक भावना की अवहेलना नहीं की है इनके राष्ट्रप्रेम की प्रारंभिक भावनाएं सर्वप्रथम भारत भारती में उपलब्ध होती है पर बाद में उनका विकसित रूप सभी जने दिखाई देने लगता है जनता को उनके काव्य के माध्यम से अपना अतीत इतना प्रिय लगा था कि उसके समक्ष उसे पाश्चात्य संस्कृति बिल्कुल हेय प्रतीत होने लगी थी
मैथिलीशरण गुप्त का प्रकृति चित्रण
गुप्तजी ने अपने काव्य में प्रकृति चित्रण का परंपरागत रूप नहीं अपनाया बल्कि प्रकृति के यथा तथ्य वर्णन की ओर ध्यान दिया वे प्रकृति के चतुर चितेरे हैं उन्होंने प्रकृति का अनेक रूप में अंकन किया है उन्होंने कहीं-कहीं प्रकृति के माध्यम से नैतिक उपदेश देने की भी चेष्टा की है वे पूर्ण रूप से प्रकृति के रहस्य का उद्घाटन नहीं कर पाए हैं ऐसा लगता है कि प्रकृति के ऊपरी रूप की झलक मात्र से संतुष्ट थे
उन्होंने प्रकृति चित्रण संबंधित कुछ फुटकर कविताएं भी लिखी थी गुप्ता जी को अपने काव्य के माध्यम से भारत के अतीत और सांस्कृतिक उच्चता कि प्रतिष्ठा करना प्रिय था उन्हें इस बात का अहसास था कि ऐसे किए बिना भारत वासियों के हृदय में हीनता के भाव दूर नहीं हो पाएंगे गुप्तजी ने प्राचीनतम की सुंदर व्याख्या करके अपने युग को आदर्श में बनाना चाहा था मैथिलीशरण गुप्त मानवतावाद के उपासक थे और मानव मात्र का सुख चाहते थे जाति पति के भेद में उनका विश्वास नहीं था | मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय |
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय
गुप्तजी भारत के राष्ट्रपति थे गुप्तजी ने खड़ी बोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास से अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया इनकी कविताओं का मुख्य स्वर राष्ट्रप्रेम है गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं इन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का सुंदर वर्णन किया उन्होंने ऐसे समय में लोगों में राष्ट्रीय चेतना का स्वर फूंका जब हमारा देश परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था
इन्होंने बहुत सी रचनाएं लिखी जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण है जैसे कि- साकेत, यशोधरा, द्वापर, भारत भारती, किसान आदि खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है इन्होंने प्रबंध शैली के साथ-साथ मुक्तक शैली और गीती शैली में अनेक सफल रचनाएं की है “साकेत” महाकाव्य के लिए इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मंगला प्रसाद पारितोषित से सम्मानित किया गया
मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु
मैथिलीशरण गुप्त बहुत ही विनम्र, हंसमुख और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे 12 दिसंबर 1964 को मां भारती का सच्चा सपूत पंचतत्व में विलीन हो गया मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से युक्त रचनाओं के कारण हिंदी साहित्य में इनका विशेष स्थान रहा है इन्हें युग प्रतिनिधि कवि के रूप में स्वीकार किया गया है इनकी जयंती 3 अगस्त को हर वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाई जाती है | मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय |