राजपूत वीरमदेव का इतिहास 

राजपूत वीरमदेव का इतिहास, अलाउद्दीन खिलजी का षड्यंत्र, वीरमदेव और फिरोजा का प्रेम, जालौर किले पर आक्रमण

राजपूत वीरमदेव का इतिहास 

जब अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा की हत्या कर के दिल्ली की सल्तनत पर बैठ गया तब उसने अपने राज्य का तेजी से विस्तार किया जब उसे गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर की संपत्ति के बारे में पता चला तब उसने साल 1299 में एक बहुत बड़ी फौज के साथ अपने सरदारों को सौराष्ट्र गुजरात में भेज दिया

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सरदारों को यह आदेश दिया था कि सोमनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग को उखाड़ कर यहां दिल्ली में लेकर आओ ताकि मैं इस्लाम का वर्चस्व दुनिया को दिखाने के लिए उस शिवलिंग को मैं दिल्ली में तोडूंगा इसके बाद किसी बवंडर के समान खिलजी की फौज सौराष्ट्र में घुस गई खिलजी की फौज ने सौराष्ट्र के छोटे-छोटे राजाओं को परास्त कर दिया सुल्तान की फौज के द्वारा कई सारे घिनौने अत्याचार किए गए थे

सौराष्ट्र को बुरी तरह से लूटा गया हजारों स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाया गया था सौराष्ट्र सोमनाथ मंदिर की अकूत संपत्ति और शिवलिंग को लूट कर सुल्तान की फौज दिल्ली की ओर निकल पड़ी थी रास्ते में जालौर में चौहान वंश का एक छोटा सा राज्य था वह राज्य केवल 15- 20हजार राजपूतों का ही था जालौर का किला बहुत ही मजबूत किला था और यह एक पहाड़ी पर बना हुआ था जब जालौर के राजा “कान्हड़देव” को इस बारे में पता चला कि भगवान सोमनाथ का पवित्र शिवलिंग तोड़ने के लिए दिल्ली ले जाया जा रहा है

तब उन्होंने उस शिवलिंग को चुराने का निर्णय लिया और साथ ही बंदी बनाए गए हजारों महिलाओं और बच्चों को छुड़ाने का भी निश्चय किया कान्हड़देव के बंधु मालदेव और उनके पुत्र वीरमदेव बहुत ही प्रतापी थे राजकुमार वीरमदेव तलवारबाज में बहुत ही कुशल थे वह एक साहसी व्यक्ति थे और साथ ही बहुत अच्छे पहलवान थे 20 वर्ष राजकुमार वीरमदेव को सौंदर्य की कुदरत देन थी बहुत सारी राजकुमारियां भगवान से यह मन्नत मांगती थी कि उन्हें पति के रूप में वीरमदेव जैसे व्यक्ति प्राप्त हो

उनके पूरे राज्य में वीरमदेव के प्रति बहुत ही आदर की भावना थी कहा जाता है कि माता पार्वती ने कान्हड़देव  के सपने में आकर उन्हें यह कहा था कि तुम भगवान शिव के पवित्र शिवलिंग को सुल्तान की फौज से छुड़ा लो गुलाम बनाने जा रही महिलाओं और बच्चों को आजाद करवा लो इसके बाद वीरमदेव, मालदेव और कान्हड़देव अपने 15000 राजपूतों के साथ लड़ने के लिए तैयार हुए इसके बाद उन्होंने सुल्तान की सेना पर एक बहुत बड़ा हमला कर दिया

उन्होंने सुल्तान की फौज को परास्त कर शिवलिंग को छुड़ा लिया और जालौर के किले में उस पवित्र शिवलिंग को ले गए हजारों महिलाओं और बच्चों को आजाद करवा कर उन्हें भी अपने किले में आश्रय दिया सुल्तान की फौज की यह बहुत बड़ी शर्मनाक हार हुई थी इस हार की खबर सुनकर अलाउद्दीन खिलजी बहुत ही क्रोधित हुआ उस समय परिस्थितियां कुछ ऐसी थी कि अलाउद्दीन खिलजी से बहुत से हिंदू राजा नाराज थे इसके बाद अलादीन खिलजी ने कुछ समय के लिए शांति का रास्ता अपनाना सही समझा | राजपूत वीरमदेव का इतिहास |

अलाउद्दीन खिलजी का षड्यंत्र 

अलाउद्दीन खिलजी ने राजनीतिक चाल चलते हुए कान्हड़देव के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण दिया इधर जालौर में बड़े सम्मान के साथ सोमनाथ के शिवलिंग की राजा कान्हड़देव ने स्थापना की अलाउद्दीन खिलजी ने उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तब उन्होंने उसकी दोस्ती को स्वीकार कर लिया क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी की सेना उन से 3 गुना ज्यादा थी उसकी तुलना में कान्हड़देव का राजा बहुत ही छोटा था और उनके पास राजपूतों की केवल 15-20हजार फौज थी 

इसके बाद कान्हड़देव ने अपने पुत्र वीरमदेव को दिल्ली भेजा उनके दिल्ली पहुंचने से पहले ही उनके पराक्रम के चर्चे दिल्ली तक पहुंच चुके थे उनकी सुंदरता को देखने के लिए औरतें अपने घर की छतों पर खड़ी हो गई थी अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी हार का बदला लेने के लिए एक योजना बनाई उन्हें पता था कि वीरमदेव को कुश्ती का बहुत शौक है इसलिए उन्होंने अपने पहलवान को वीरमदेव के साथ कुश्ती के लिए तैयार किया इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने वीरमदेव को कुश्ती के लिए चुनौती दे दी यदि वीरमदेव उस चुनौती को स्वीकार नहीं करते तो उनकी प्रतिष्ठा को धब्बा लग जाता इसलिए उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली में फैल रही वीरमदेव की कृति से बहुत ही जल रहा था उसने अपने पहलवान पूंजू से कहा कि तुम इसे अखाड़े में ही मार डालना इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने कुश्ती का ऐलान कर दिया इस कुश्ती को देखने के लिए लोगों में सनसनी फैल गई अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फिरोजा भी यह कुश्ती देख रही थी इस कुश्ती में वीरमदेव ने सुल्तान के सबसे ताकतवर पहलवान पूंजू को मौत के घाट उतार दिया था इसके बाद पूरा मैदान वीरमदेव के नारों से गूंज उठा था | राजपूत वीरमदेव का इतिहास |

वीरमदेव और फिरोजा का प्रेम

 यह कुश्ती देखते समय अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फिरोजा वीरमदेव पर फिदा हो गई थी फिरोजा भी एक सुंदर लड़की थी वह शस्त्र चलाने में भी निपुण थी वह अपने पिता की इकलौती संतान थी और साथ ही वह बहुत ही जिद्दी करती थी फिरोजा ने वीरमदेव को मन ही मन में अपना पति स्वीकार कर लिया था उसी दिन शाम के समय फिरोजा ने वीरमदेव के साथ भेंट की और उनके सामने अपने प्यार का प्रस्ताव रखा

इसके बाद वीरमदेव ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कहा कि यदि मैं किसी तुर्किंन से विवाह करता हूं तो इससे चौहान वंश को ठेस पहुंचती है मैं अपने कुल को लज्जित नहीं कर सकता इसके बाद फिरोजा अपने पिता अलाउद्दीन खिलजी के पास गई और उन्होंने कहा कि यदि वह विवाह करेगी तो वीरमदेव से ही करेगी वरना कुंवारी ही मर जाएगी इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने वीरमदेव के सामने खुद का दामाद और इस्लाम को कबूल करने का प्रस्ताव रख दिया

इसके बाद वीरमदेव ने सोचा यदि मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करूंगा तो अलाउद्दीन खिलजी मुझे मौत के घाट उतार देगा इसलिए उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और कहा कि मैं एक बार इस प्रस्ताव के बारे में अपने पिताजी से प्रत्यक्ष रूप से बात करना चाहता हूं इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने वीरमदेव को सम्मान के साथ जालौर वापस भेज दिया

जालौर जाने के बाद वीरमदेव को बहुत समय बीत गया लेकिन उनकी तरफ से कोई भी जवाब नहीं आया था तब अलाउद्दीन खिलजी ने उनके पास एक पत्र भेजा और पूछा कि आपने मेरे प्रस्ताव का जवाब नहीं दिया इसके बाद ब्रह्मदेव ने बहुत ही विनम्र भाव से उस  पत्र का जवाब दिया कि यदि मैं तुम्हारी बेटी से विवाह करता हूं तो मानो सूरज का पश्चिम से उगने जैसा होगा इस बात का अपमान समझते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सरदार नुसरत खान के नेतृत्व में एक लाख की फौज जालौर में भेज दी इसके बाद उसने जालौर के किले पर चारों तरफ से घेरा डाल दिया | राजपूत वीरमदेव का इतिहास |

जालौर किले पर आक्रमण 

 अलाउद्दीन खिलजी की फौज 6 महीने तक जालौर के किले पर घेरा डालकर बैठी रही क्योंकि किले के अंदर प्रवेश करना बहुत ही कठिन था किले की बहुत ही ऊंची और मजबूत दीवारें थी 1 साल बीत जाने के बाद वीरमदेव ने उनकी फौज का डटकर सामना किया और नुसरत खान को मौत के घाट उतार दिया जिसके कारण सुल्तान की फौज में राजपूतों के प्रति और अधिक डर बैठ गया था

इसके बाद सुल्तान की फौज वापिस दिल्ली की ओर भागने लगी थी अपने सरदार नुसरत की मौत और अपनी फौज की हार का समाचार सुनकर अलाउद्दीन खिलजी और अधिक क्रोधित हो गया और वह जुलाई 1301 में अपनी एक बहुत बड़ी फौज के साथ जालौर की ओर रवाना हुआ जालोर पहुंचने पर अलाउद्दीन खिलजी भी बहुत निराश हुआ क्योंकि वह भी उस किले में प्रवेश नहीं कर सका क्योंकि वह किला बहुत ही मजबूत था

इसके बाद अलादीन खिलजी ने छल कपट से एक राजपूत सरदार को रिश्वत देकर खरीद लिया और उससे जालौर किले का एक दरवाजा खुलवा लिया किले के दरवाजे खुलते ही सुल्तान की सारी फौज अंदर घुस गई फिर भी राजपूतों ने हार ना मानते हुए केसरिया रंग  की पगड़ी पहनी और अंतिम बलिदान के लिए तैयार हुए और महिलाएं भी “जोहर” करने के लिए तैयार हो गई

इस युद्ध में सुल्तान की फौज का बहुत ही नुकसान हुआ था क्योंकि सुल्तान की बहुत सी फौज मारी गई थी लेकिन सुल्तान की फौज संख्या में और अधिक थी सुल्तान की समुंदर जैसी विशाल सेना के आगे सभी राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए इस युद्ध में वीरमदेव की वीरगति को प्राप्त हुए थे और महिलाओं ने अपने आप को अग्नि के हवाले कर दिया था गुस्से से भरे हुए अलाउद्दीन खिलजी ने वीरमदेव के सिर को उनकी धड़ से अलग कर दिया और वीरमदेव के कटे हुए सिर को एक थाली में सजाकर अपनी बेटी फिरोजा के पास ले गया

उसने सोचा कि उसकी बेटी उसके बाप का अपमान करने वाले वीरमदेव के सिर को देखकर बहुत ही खुश होगी परंतु जब फिरोजा ने वीरमदेव के कटे हुए सिर को देखा तो वहीं पर बेहोश हो गई जब फिरोजा होश में आए तब उसने वीरमदेव के कटे हुए सिर को अपनी छाती से लगा लिया इसके बाद फिरोजा ने वीरमदेव के सिर का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया और खुद ने यमुना नदी में छलांग लगाकर जान दे दी | राजपूत वीरमदेव का इतिहास |

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