राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय, रामनरेश त्रिपाठी का जन्म, रामनरेश त्रिपाठी की रचनाएं , रामनरेश त्रिपाठी की भाषा शैली, रामनरेश त्रिपाठी की मृत्यु
राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय
रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने स्वाध्याय से हिंदी अंग्रेजी बांग्ला और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया था इन्होंने उस समय के कवियों के प्रिय विषय समाज सुधार के स्थान पर प्रेम को कविता का विषय बनाया था इनकी कविताओं में देश प्रेम और वैयक्तिक प्रेम दोनों मौजूद है लेकिन देश प्रेम को ही विशेष स्थान दिया गया है
‘कविता कौमुदी’ में इन्होंने हिंदी ,उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन किया है जिसके 8 भाग हैं इसी के अखंड में “ग्राम गीत” संकलित है जिसे उन्होंने गांव-गांव घूमकर एकत्रित किया था लोक साहित्य के संरक्षण की दृष्टि से हिंदी में यह उनका मौलिक कार्य था रामनरेश त्रिपाठी हिंदी में बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं इन्होंने कई वर्षों तक बानर नामक बाल पत्रिका का संपादन किया जिसमें मौलिक एवं शिक्षाप्रद कहानियां, प्रेरक प्रसंग आदि प्रकाशित होते थे कविता के अलावा इन्होंने नाटक, उपन्यास, आलोचना, संस्मरण आदि अन्य विधाओं में भी रचना की है | राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय |
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 ईसवी को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कोइरीपुर गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था इनके पिता जी का नाम ‘पंडित रामदत्त त्रिपाठी’ था इनके पिता जी ईश्वर में आस्था रखने वाले ब्राह्मण थे इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई थी कनिष्ठ कक्षा उत्तीर्ण कर हाईस्कूल व निकटवर्ती जौनपुर जिले में पढ़ने गए मगर दसवीं की शिक्षा पूरी नहीं कर सके थे बाद में इन्होंने स्वतंत्र रूप से हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला तथा गुजराती का गहन अध्ययन किया तथा साहित्य सेवा को अपना लक्ष्य बनाया था
इन्होंने ‘हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए”, जैसी बेजोड़ रचना कर डाली जो आज भी अनेक विद्यालय में प्रार्थना के रूप में गाई जाती है द्विवेदी युग के सभी प्रमुख प्रवृतियां इनकी कविताओं में मिलती है 1915 में पंडित त्रिपाठी ज्ञान एवं अनुभव की संचित पूंजी लेकर पुण्य तीर्थ एवं ज्ञान तीर्थ प्रयाग गए और उसी क्षेत्र को उन्होंने अपने कर्म स्थली बनाया था गांधी के निर्देश पर वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिंदी जगत के दूत बनकर दक्षिण भारत गए थे वह पक्के गांधीवादी देश भगत और राष्ट्र सेवक के स्वाधीनता संग्राम और किसान आंदोलनों में भाग लेकर वह जेल भी गए थे| राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय |
रामनरेश त्रिपाठी की रचनाएं
उनके गृह जनपद सुल्तानपुर जिले में एकमात्र सभागार पंडित राम नरेश त्रिपाठी सभागार स्थापित है जो उनकी स्मृतियों को ताजा करता है इन्होंने वर्ष 1920 में 21 दिनों में हिंदी के प्रथम एवं सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय खंडकाव्य “पथिक” की रचना की थी इसके अतिरिक्त “मिलन” और “स्वपन” भी उनके प्रसिद्ध मौलिक खंडकाव्य में शामिल है सपनों के चित्र उनका पहला कहानी संग्रह है उन्होंने गांव गांव घूम कर सोहर और विवाह गीतों को चुन चुन कर लगभग 16 वर्षो के अथक परिश्रम से कविता कौमुदी संकलन तैयार किया था जिसके भाग उन्होंने 1917 से लेकर 1933 तक प्रकाशित किए थे रामनरेश त्रिपाठी की चार काव्य कृतियां मुख्य है जैसे- मिलन 1918, पथिक 1920, मानसी 1927, स्वपन 1929 इसके लिए उन्हें “हिंदुस्तान अकादमी” का पुरस्कार भी मिला था
मुक्तक- मारवाड़ी मनोरंजन आर्य संगीत शतक, कविता विनोद, क्या होमरूल लोगे, मानसी
काव्य – प्रबंध मिलन, पथिक, स्वपन
कहानी संग्रह – तरकस, आंखों देखी कहानियां, सपनों के चित्र, उन बच्चों का क्या हुआ अन्य कहानियां
उपन्यास – वीरांगना, वीरबाला, मारवाड़ी और पिशाचिनी, सुभद्रा और लक्ष्मी
नाटक – जयंत, प्रेमलोक, वफाती चाचा, अजनबी, पैसा परमेश्वर,बा और बाबू, कन्या का तपोवन
व्यंग्य- दिमाग की अय्याशी, स्वप्नों के चित्र
अनुवाद – इतना तो जानो, कौन जानता है
रामनरेश त्रिपाठी की भाषा शैली
त्रिपाठी जी की भाषा भावनाकूल,प्रवाह पूर्ण, सरल खड़ी बोली है संस्कृत के तत्सम शब्दों एवं सामाजिक पदों की भाषा में अधिकता है शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रभावपूर्ण है मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशआत्मक शैली का प्रयोग किया है इनके प्रकृति चित्रण वर्णनात्मक शैली पर आधारित है छंद का बंधन इन्होंने स्वीकार नहीं किया है इन्होंने प्राचीन और आधुनिक दोनों ही छंदों में काव्य रचना की है इन्होंने श्रृंगार, शांत और करुण रस का प्रयोग किया है इन्होंने अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का भी प्रयोग किया है | राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय |
रामनरेश त्रिपाठी की मृत्यु
16 जनवरी 1965 को रामनरेश त्रिपाठी की प्रयाग में मृत्यु हो गई थी त्रिपाठी जी मननशील, विद्वान और परिश्रमी थे हिंदी के प्रचार-प्रसार और साहित्य सेवा की भावना से प्रेरित होकर इन्होंने ‘हिंदी मंदि’र की स्थापना भी करवाई थी अपनी कृतियों का प्रकाशन भी इन्होंने स्वयं ही किया यह द्विवेदी युग के उन साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने द्विवेदी मंडल के प्रभाव से पृथक रहकर अपनी मौलिक प्रतिभा से साहित्य के क्षेत्र में कई कार्य किए राष्ट्रीयता देश प्रेम सेवा त्याग आदि भावना प्रधान विषयो पर इन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना की थी | राम नरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय |