शनि देव का इतिहास , शनिदेव का जन्म, शनि देव का विवाह, शनिदेव और हनुमान की मित्रता , शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है
शनि देव का इतिहास
शनिदेव का जन्म सौराष्ट्र के शिंगणापुर में माना गया है शिंगणापुर में “जेष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या” को शनिदेव का जन्म मनाया जाता है भगवान हनुमान को शनिदेव का मित्र माना जाता है शनिदेव का वाहन कोवा है दक्ष की पुत्री संध्या का विवाह सूर्य देव के साथ हुआ था सूर्य देव का तेज बहुत ही अधिक था इसलिए वह सहन नहीं कर पाती थी इसलिए उसने तपस्या करने का निश्चय किया था यमराज शनिदेव के भाई हैं
शनिदेव का जन्म
शनि सूर्य देव और छाया के पुत्र थे वह अत्यधिक क्रोधी स्वभाव के थे सूर्य देव की पहली पत्नी संध्या सूर्य देव का तेज सहन नहीं कर पाती थी इसलिए एक दिन वह अपने जैसा स्वरूप एक मूर्ति को देकर तपस्या करने चली गई वहीं मूर्ति शनि की माता छाया थी जाते समय संध्या छाया को आदेश देकर गई कि यह बात सूर्य देव को पता नहीं चलनी चाहिए संध्या और सूर्यदेव के दो बच्चे थे यम और यमी छाया उन दोनों बच्चों का पालन पोषण अपने बच्चे की तरह करने लगी इधर सूर्य देव छाया को संध्या ही समझते थे और उन्होंने छाया को अपने पास आने को मजबूर किया इसके कुछ समय बाद ‘शनि’ का जन्म हुआ
जब यह बात संध्या को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुई इसके बाद संध्या छाया और शनि से नफरत करने लगी कुछ समय के बाद संध्या तपस्या खत्म करके वापस सूर्य लोक आ गई वापस आने के बाद वह अपने बच्चे का ध्यान रखती थी और शनि से नफरत करती थी एक बार सब भोजन कर रहे थे तो शनि ने भी संध्या से भोजन मांगा लेकिन संध्या ने कहा मैं पहले यम और यमी को भोजन करा दूं बाद में तुम्हें दे दूंगी और शनि को भला बुरा कहने लगी यह सुनकर शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने संध्या के पेट पर लात मार दी जिससे संध्या को ओर अधिक क्रोध आ गया और संध्या ने शनि को श्राप दिया कि जा जिस तरह से तुमने मुझे मारा है
वह पैर टूट जाए यह सुनकर शनि अत्यंत दुखी हुए इसके बाद शनि का वह पैर टूट गया फिर सूर्यदेव ने अपने पुत्र शनि की हालत देखकर कहा कि मैं संध्या का श्राप तो वापस नहीं ले सकता परंतु तुम्हारा पैर जोड़ सकता हूं लेकिन तुम सदैव लंगड़ा कर ही चलोगे तभी से शनि की चाल टेडी हो गई और शनि ने अपनी गलतियों से सबक लेकर यह प्रण किया कि कलयुग में कोई भी झूठ बोलेगा या अन्याय करेगा वह मेरे कोप का शिकार होगा यही वजह है कि शनि की टेढ़ी चाल उनके सभी भक्तों को अधर्म और अन्याय करने से रोकती है कहते हैं कि शनि की दृष्टि बकरी है उनकी नजर मिलाने मात्र से ही दुखों से जीवन गिर जाता है | शनि देव का इतिहास |
शनि देव का विवाह
शनिदेव विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन उनके पिता के कहने पर उन्हें विवाह करना पड़ा शनि की पत्नी गंधर्व कन्या थी उनका नाम “दामिनी”था दामिनी बिना किसी शिकायत के शनि साथ रहने लगी दामिनी की कुंडली में मंगल दोष था 1 दिन दामिनी ने शनि से कहा कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं मुझे भी वह सम्मान चाहिए जो हर पत्नी चाहती है मैं भी चाहती हूं कि मुझे पुत्र प्राप्ति हो यह सुनकर शनि को गुस्सा आ गया और गुस्से में कहा की कौन सी पत्नी हो,यह सुनते ही दामिनी के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने शनि को श्राप दे दिया कि तुम कभी किसी से नजर नहीं मिला पाओगे जिस को भी तुमने अपनी आंखों से देख लिया उसका सर्वनाश हो जाएगा
इस श्राप का पता लगते ही देवताओं में हाहाकार मच गया इसके बाद देवताओं ने शनि की पत्नी को श्राप वापस लेने की प्रार्थना की शनि पत्नी ने कहा कि श्राप तो वापस नहीं ले सकती और हां कोई भी अगर सूर्य देव और भगवान शंकर की अराधना करेगा तो शनि की दृष्टि का दोष जरूर कम हो जाएगा उसी दिन से शनि की आंखों में देखना भक्तों के लिए वर्जित हो गया अगर किसी ने शनिदेव की आंखों में देख लिया तो उसका सर्वनाश हो जाता है इसलिए शनिदेव की पूजा अन्य देवताओं की पूजा से अलग तरीके से की जाती है | शनि देव का इतिहास |
शनिदेव और हनुमान की मित्रता
जब रावण के पुत्र मेघनाथ का जन्म हुआ था उस समय आकाश में शनिदेव का बहुत प्रभाव था और शनि के प्रभाव के कारण मेघनाथ के अमर होने का योग तो खत्म ही हो गया था यह बात जानकर रावण को गुस्सा आ गया रावण बहुत बड़ा योगी था गुस्से से भरे रावण ने अपने योग के बल पर शनिदेव को लंका में कैद कर लिया त्रेता युग में जब मां सीता को राम के द्वारा भेजी हुई अंगूठी देने के लिए हनुमान जी लंका गए तो वहां उन्होंने शनिदेव को एक बंधक के रूप में कैद हुए देखा
हनुमान जी उन्हें वहां देख कर हैरान हो गए और उनसे इसका कारण पूछा शनिदेव ने उन्हें बताया ‘मैं शनिदेव रावण ने अपने योग बल से मुझे कैद कर रखा है’ शनि देव ने हनुमान जी से तब उन्हें छुड़ाने का आग्रह किया इसके बाद जब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण से मुक्ति दिला दी तो इस पर शनिदेव ने खुश होकर हनुमान जी से वर मांगने को कहा तब हनुमानजी ने कहा कि कलयुग में जो भी मेरा भक्त होगा और मेरी आराधना करेगा आप उसे कभी भी अशुभ फल नहीं देंगे
तभी से शनिवार को हनुमान जी की भी पूजा की जाती है और सभी हनुमान भक्तों पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है कहा जाता है कि लंका से प्रस्थान करते वक्त शनि देव ने लंका की तरफ अपनी वक्र दृष्टि डाली थी इसी का कारण था कि रावण और उसके पूरे कुल का अंत में नाश हो गया | शनि देव का इतिहास |
शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है
एक बार हनुमान जी अपने प्रभु श्री राम का स्मरण कर रहे थे उसी समय शनिदेव वहां आ गए और कहने लगे कि अब कलयुग प्रारंभ हो गया है इस युग में आपका शरीर दुर्बल है और मेरा शरीर बलवान हो गया है और अब मैं आपके शरीर पर साढ़ेसाती बनकर आ रहा हूं शनिदेव को बिल्कुल अहसास नहीं था कि हनुमान रघुवीर के परम भक्त थे और उनके शरीर पर किसी प्रकार की दशा का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ सकता हनुमान जी ने शनिदेव से कहा कि आप मुझे मेरे प्रभु श्री राम का स्मरण करने दे मेरे शरीर और मेरी आत्मा पर मेरे प्रभु श्री राम के अलावा और कोई नहीं आ सकता
मेरे शरीर और मेरी आत्मा पर प्रभु श्री राम का ही वास है मगर शनिदेव नहीं माने उन्होंने कहा, पूरी सृष्टि पर मेरी दृष्टि है और आप इससे दूर नहीं रह सकते जब शनिदेव नहीं माने तो हनुमान जी ने कहा कि आप मेरे शरीर पर कहां बैठना चाहते हैं तब शनिदेव ने बहुत ही गर्व के साथ कहा कि मैं पहले ढाई वर्ष मस्तक पर बैठकर बुद्धि को विचलित करता हूं, अगले ढाई वर्ष हृदय में बैठकर में इंसान को रोगी बना देता हूं और आखिरी के ढाई वर्ष मैं पैरों में रहकर उसे भटकाता रहता हूं इसके बाद शनिदेव नहीं माने और आकर हनुमान जी के सिर पर बैठ गए तो हनुमान जी ने अपने सिर पर एक पर्वत रख लिया
यह देखकर शनि देव घबरा गए और उन्होंने कहा कि हनुमान जी यह आप क्या कर रहे हैं हनुमान जी ने जवाब दिया कि मैं अपनी खुजली मिटा रहा हूं यह कहकर हनुमान जी ने एक और पर्वत अपने सिर पर रख लिया तो शनिदेव ने कहा आप इसे उतारिए मैं आपकी बात मानने को तैयार हूं मगर हनुमान जी ने एक और पर्वत अपने सिर पर रख लिया कभी आपके करीब भी नहीं आऊंगा तब हनुमानजी ने एक और पत्थर अपने सिर पर रख लिया अब शनिदेव को कुछ नहीं समझ आ रहा था वह हनुमान जी से बोले कि मैं ना तो कभी आपको परेशान करूंगा और ना कभी भी मैं आपके भक्तों को परेशान करूंगा यही है वजह की हनुमान जी के भक्तों को शनि देव कभी परेशान नहीं करते वह हनुमान जी के पैरों में गिर कर क्षमा मांगने लगे पत्थर रखने की वजह से जब शनिदेव को चोट लगी तब हनुमानजी ने उन्हें घाव पर लगाने के लिए तेल दिया और तभी से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाने लगा | शनि देव का इतिहास |