संत लाल दास जी का इतिहास, संत लाल दास जी का जन्म, संत लाल दास जी का विवाह, लालदासी संप्रदाय की स्थापना, संत लाल दास जी की मृत्यु
संत लाल दास जी का जन्म
लाल दास जी का जन्म 1540ईस्वी में राजस्थान के अलवर जिले के ‘धोली दूब’ नामक गांव में हुआ था इनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था संत लाल दास जी दादू दयाल और अकबर के समकालीन है इनके पिता जी का नाम चांदमल और इनकी माता जी का नाम समदा था
लाल दास जी ने अपने जन्म के समय ही मां से बातें करनी शुरू कर दी थी उनके इस व्यवहार को देखकर ही एक अवतार पुरुष के रूप में इन्हें देखा जाने लगान्यू जाति में जन्मे लाल दास जी का परिवार बहुत ही गरीब था अजीव का निर्वहन के लिए अलवर शहर में लकड़ियां बेचकर गुजारा करना पड़ता था
संत लाल दास जी का विवाह
संत लाल दास जी की पत्नी का नाम ‘मोगरी’ था जिससे दो पुत्र और एक पुत्री प्राप्त हुए इन्होंने लाल दासी जी संप्रदाय की स्थापना की थी संत लाल दास जी ने ग्रस्ठ जीवन जीते हुए ईश्वर की भक्ति की थी इनका मानना था कि ग्रस्थ जीवन कभी भी ईश्वर भक्ति में बाधा उत्पन्न नहीं करता संत लाल दास जी द्वारा चलाए गए “लालदासी संप्रदाय” में यह नियम था कि जो व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करता था
उसे बाद में गधे पर बिठाकर गलियों में उसका जुलूस निकाला जाता था यह इसलिए किया जाता था ताकि उस व्यक्ति के अंदर जो भी अभिमान है वह समाप्त हो जाए और बाद में उस व्यक्ति को शरबत पिलाया जाता था ताकि उसके मुख से हमेशा मीठी वाणी ही निकले संत लाल दास जी कहते थे कि ईश्वर निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी है लाल दास जी निर्गुण भक्ति धारा के संत थे
लालदासी संप्रदाय की स्थापना
लाल दास जी का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था परंतु इन्होंने कभी भी मुस्लिम धर्म पद्धतियों का पालन नहीं किया था इसी कारण से इन्हें कई बार प्रताड़ित भी किया गया था और इन्हें काफिर भी कहा गया था जब इन्हें प्रताड़ित किया गया तो इन्हें जगह जगह पर भटकना पड़ा था जब इन्होंने लालदासी संप्रदाय चलाया था उसमें मुस्लिम धर्म और हिंदू धर्म दोनों धर्मों का समावेश किया था और उसमें हिंदू और मुस्लिम की एकता का वर्णन भी किया था
इनके द्वारा चलाए गए संप्रदाय में हिंदू धर्म की अधिक समीपता दिखती है इस संप्रदाय की रीति रिवाज रहन-सहन हिंदू धर्म से अधिक मिलता-जुलता है लालदास जी संप्रदाय के जो अनुयायी हैं वह केवल मुस्लिम कन्या से ही विवाह करते हैं संत लाल दास जी के गुरु का नाम गदन चिश्ती था यह अलवर तिजारा के रहने वाले थे लाल दास जी ने बहुत से ग्रंथों की रचना की थी परंतु उनमें एक सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है “लाल दास की चेतावनीया”
संत लाल दास जी की मृत्यु
इन्होंने अपना अंतिम समय भरत जिले के नंगला गांव में व्यतीत किया था वहीं पर 1705 में इनकी मृत्यु हुई थी और अलवर जिले के शेरपुरा गांव में इनकी समाधि स्थल बनाया गया है शेरपुर गांव में वर्ष में दो बार लाल दास जी के मेले का आयोजन होता है