शिंगणापुर मंदिर का इतिहास , शिंगणापुर की पौराणिक कथा , शिंगणापुर मंदिर की विशेषता
शिंगणापुर मंदिर का इतिहास
यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर शनिदेव को समर्पित है यह मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर के शिंगणापुर में स्थित है यह मंदिर खुले आकाश के नीचे बना हुआ है इस मंदिर का कोई भी कुमुद नहीं है इस मंदिर में जो शनिदेव की मूर्ति है वह एक ऐसी शीला से बनी है जिसे तरासा नहीं गया हो यह मूर्ति एक संगमरमर के चबूतरे पर स्थापित है शनिदेव का यह मंदिर भारत के सभी मंदिरों से सबसे अलग और अनूठा है इस मंदिर में जो मूर्ति है वह स्वयं शनिदेव की कृपा से प्रकट हुई थी इस प्रतिमा के दर्शनों के लिए हजारों श्रद्धालु देश विदेश से आते हैं और शनि के कुप्रभाव से बचने का शनिदेव से आशीर्वाद लेते हैं इस मंदिर में शनि का तेल से अभिषेक करने पर व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है
शनि देव सूर्य और छाया के पुत्र थे शनिदेव का जन्म सौराष्ट्र के शिंगणापुर में माना गया है शिंगणापुर में “जेष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या” को शनिदेव का जन्म मनाया जाता है भगवान हनुमान को शनिदेव का मित्र माना जाता है शनिदेव का वाहन कोवा है दक्ष की पुत्री संध्या का विवाह सूर्य देव के साथ हुआ था सूर्य देव का तेज बहुत ही अधिक था इसलिए वह सहन नहीं कर पाती थी इसलिए उसने तपस्या करने का निश्चय किया था यमराज शनिदेव के भाई हैं | शिंगणापुर मंदिर का इतिहास |
शिंगणापुर की पौराणिक कथा
300 वर्ष पहले शिंगणापुर में बहुत भयंकर बाढ़ आई थी जिसके कारण धीरे-धीरे गांव में सभी चीजें डूबने लगी थी लेकिन एक काले रंग की शिला पानी में लगातार बह रही थी जब कुछ समय के बाद बारिश कम हुई तब यह शिला एक पेड़ के पास जाकर रुक गई थी जब कुछ समय के बाद मौसम सामान्य हुआ तब एक व्यक्ति वहां से गुजर रहा था तब उसकी नजर उस काली सिला पर पड़ी जब उस व्यक्ति ने उस शिला को देखा तब उसके मन में लालच आ गया उसने सोचा इस अद्भुत शीला को बेचकर काफी कमाई की जा सकती है इसके बाद उस व्यक्ति ने उस काली सिला को पेड़ के पास से दूर किया और उसके टुकड़े-टुकड़े करने लगा
जब उस व्यक्ति ने उस शिला के टुकड़े करने के लिए किसी नुकीली चीज से प्रहार किया तब उस शिला में से खून बहने लगा जिसके बाद वह व्यक्ति वहां से डर कर भाग गया जब उस व्यक्ति ने गांव वालों को इस घटना के बारे में बताया तब किसी ने भी उस पर विश्वास नहीं किया था जब उसने बार-बार इस घटना को दोहराया तब कुछ लोग उसके साथ उस स्थान पर गए जहां पर वह शिला पेड़ के पास पड़ी हुई थी जब वह लोग वहां पहुंचे तब बहुत ही हैरान रह गए उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि पत्थर में से खून बह रहा है इसके बाद वह सभी लोग गांव वापस लौट आए और विचार करने लगे कि उस काली चिल्ला का क्या किया जाए
उसी रात गांव के एक व्यक्ति को स्वयं शनि देव ने दर्शन दिए और कहा ‘मैं शनिदेव हूं’ और आप लोगों ने जो काली सिला देखी है वह मेरी प्रतिमा है तुम सभी लोग उस प्रतिमा को इस गांव में लेकर आओ और यहां लाकर उसे स्थापित करो इससे तुम्हारे गांव की सारी समस्या समाप्त हो जाएगी और तुम्हारा गांव खुशहाल हो जाएगा सुबह होने पर उस व्यक्ति ने सभी गांव वालों को एक स्थान पर इकट्ठा किया और उसने अपने सपने के बारे में सारी बात बताई सभी ने उसकी बात पर सहमति जताई और उस प्रतिमा को लाने के लिए चल पड़े सभी ने उस प्रतिमा को हिलाने का बहुत ही प्रयास किया परंतु किसी से वह प्रतिमा हिली तक नहीं और सभी थक हार कर वापस गांव लौट आए
उसी रात उसी व्यक्ति को फिर से शनिदेव ने सपने में दर्शन दिए और कहां मेरी प्रतिमा को केवल ‘मामा और भांजा’ ही उठा सकता है सुबह होने पर फिर से उस व्यक्ति ने सपने की बात सभी गांव वालों को बताई इसके बाद गांव वालों ने मामा और भांजे को अपने साथ लिया और उस प्रतिमा को लाने के लिए चल दिए इस बार उस प्रतिमा को मामा और भांजे ने उठाने का प्रयास किया तो वह प्रतिमा बहुत ही आसानी से उठ गई यह देखकर सभी गांव वालों ने शनि देव की जय जयकार की और शनि देव के चरणों में गिर गए इसके बाद उस शीला को धूमधाम से गांव में लाया गया और उसे गांव के एक चबूतरे पर स्थापित किया गया शनि शिंगणापुर आज एक पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है पूरी दुनिया में यह एक ऐसा गांव है जिसके किसी भी घर में दरवाजा नहीं है
यहां पर लोग अपने घर में ताला व कुंडी नहीं लगाते हैं यहां पर दरवाजे बंद नहीं किए जाते यहां पर लोगों के पास कितना भी कीमती सामान क्यों ना हो वह तिजोरी या लॉकअप में नहीं रखा जाता यहां पर माना जाता है कि शनिदेव स्वयं इस गांव की रक्षा करते हैं यदि यहां पर कोई व्यक्ति चोरी करता है तो शनि देव उसे गांव से बाहर भी नहीं जाने देते हैं उसे अवश्य ही दंडित करते हैं जिस प्रकार शनिदेव पापी व्यक्ति को दंडित करते हैं उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से शनि देव के दर्शनों के लिए शिंगनापुर जाता है तो उसे शनिदेव अवश्य ही कोई उपहार देते हैं | शिंगणापुर मंदिर का इतिहास |
शिंगणापुर मंदिर की विशेषता
शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को तथा प्रत्येक शनिवार को यहां शनि भगवान की विशेष पूजा और अभिषेक होता है प्रतिदिन प्रातः 4:00 बजे एवं शाम 5:00 बजे यहां आरती होती है शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर ‘लघु रुद्रा अभिषेक’ कराया जाता है यह कार्यक्रम 6 से 7:00 बजे तक चलता है जो कोई भी सनी भगवान के दर्शन के लिए प्रांगण में प्रवेश करता है उसे तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए जब तक कि वह दर्शन करके पुनः बाहर न निकल जाए वह ऐसा करता है तो उस पर शनि देव की कृपा दृष्टि नहीं होती उसका यहां आना निष्फल हो जाता है
ज्योतिष शास्त्र में शनि की अहम भूमिका है नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपती माना गया है ज्योतिष में शनि की स्थिति व दृष्टि बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है किसी भी जातक की जन्मपत्रिका का परीक्षण कर उसके भविष्य के बारे में संकेत करने के लिए जन्मपत्रिका में शनि के प्रभाव का आकलन करना अति आवश्यक है सनी का जन्म पत्रिका में बलवान एवं शुभ होने से सत्ता और सेवक का सुख प्राप्त होता है कुंडली में शनि के अशुभ व अनुकूल होने पर खनन, लोह, तेल, कृषि, वाहन आदि से जातक को लाभ होता है ज्योतिष के अनुसार शनि देव दुख के स्वामी भी है अतः शनि के शुभ होने पर व्यक्ति सुखी और अशुभ होने पर सदैव दुखी व चिंतित रहता है | शिंगणापुर मंदिर का इतिहास |