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स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का जीवन परिचय

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का जीवन परिचय

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का जन्म

स्वामी ब्रह्मा जी का जन्म 4 दिसंबर 1894 में हमीरपुर उत्तर प्रदेश के चंद्रवंश परिवार में हुआ इनके पिता जी का नाम मातादीन लोधी राजपूत था और इनकी माता जी का नाम जशोदाबाई था इनका बचपन का नाम शिवदयाल था यह एक क्षत्रिय थे

स्वामी जी के जन्म के समय एक भविष्यवक्ता ने बताया था कि यह बालक या तो कोई उनका संत बनेगा या फिर राज्य करेगा शिवदयाल जी की प्रारंभिक शिक्षा ग्राम  बरहरा में हुई थी यह बचपन से ही बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे इस कारण से इन्होंने  अपना पाठ्यक्रम 8 महीनों में ही पूरा कर लिया था

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का विवाह 

शिवदयाल जी का विवाह 9 वर्ष की आयु में गांव आमुंद की राधाबाई से हुआ था शादी के कुछ समय बाद इन्हें दो संतान की प्राप्ति हुई पुत्र बृजलाल और पुत्री समीर  कुंवर था | स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का जीवन परिचय |

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज द्वारा सन्यास ग्रहण करना 

शिवदयाल जी को व्यायाम एवं कुश्ती का बहुत शौक था वह अखाड़े के साथ ही नव युवकों को संगठित करके अन्याय, अत्याचार का विरोध और समाज सुधार के कार्यों में लग गए एक धार्मिक लोधी परिवार में जन्म पाकर शिवदयाल जी के मन में लोक कल्याण का मार्ग खोजने की चाह भी पैदा हो गई

इसलिए मात्र 24 वर्ष की आयु में पुत्र प्राप्ति के बाद शिवदयाल जी अपने गांव के एक वृद्ध ब्राह्मण माता दीन पुजारी के साथ सन्यास ग्रहण करने के लिए निकल गए “कानपुर के सरसैया घाट” पर मुंडन कराकर और रात में ही वह हरिद्वार चले गए इसके बाद हर की पौड़ी पर स्नान कर सन्यासी वस्त्र धारण किए और स्वयं ने ही नामकरण कर लिया शिवदयाल अब ब्राह्मनंद बन गए थे

इसके बाद शिवदयाल की उपाधि ब्रह्मानंद की हो गई थी इसके बाद ब्रह्मानंद जी वहीं पर गंगा में खड़े हो गए और उन्होंने  प्रतिज्ञा की कभी भी जीवन में स्त्री गमन नहीं करेंगे और ना ही किसी धन दौलत को हाथ लगाएंगे में जिसका निर्वाह उन्होंने जीवन के अंत तक किया था सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी जी ने कैलाश पर्वत से रामेश्वर, कश्मीर से कन्याकुमारी तक और जगन्नाथ तक के भारत के संपूर्ण तीर्थ स्थलों की यात्रा की थी धर्म स्थलों के दर्शन किए थे इसी बीच उन्होंने गीता रहस्य भी प्राप्त किया था

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज द्वारा किए गए लोक कल्याण के कार्य 

स्वामी जी ने गीता रहस्य प्राप्त कर पंजाब में हिंदी पाठशाला खुलवाए, गोवध बंदी के लिए आंदोलन चलाए जल वहींन क्षेत्रों में भारी तालाब भी बनवाएं  भारत दर्शन के समय स्वामी जी समस्त उत्तराखंड, नाशिक ,रामेश्वरम, सुदामापुरी और पुष्कर आदि मंदिरों के साधु मंडलेश्वरओं के संपर्क में आए और अखिल भारतीय साधु संतों के अधिवेशन में उन्हें कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया इस अवसर पर प्रथम पूर्व राष्ट्रपति आदरणीय राजेंद्र प्रसाद जी भी सम्मिलित हुए | स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का जीवन परिचय |

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज का राजनीतिक जीवन 

भटिंडा पंजाब में स्वामी जी की भेंट महात्मा गांधी से हुई सन 1921 में गांधीजी के संपर्क में आकर स्वामी जी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े 1928 में गांधीजी स्वामी जी के प्रयासों से राठ पधारे 1930 में नमक आंदोलन में स्वामी जी ने भाग लिया और इसी कारण 2 वर्ष का कारावास हुआ स्वामी जी की बरेली जेल में पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी भेंट हुई

स्वामी जी नेहरु जी की बातों से बहुत प्रभावित हुए और जेल से छूटकर सामाजिक एवं शिक्षा प्रचार में जुट गए 1938 में नेहरू जी राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और स्वामी जी को “राठ जिला कांग्रेस का अध्यक्ष” बना दिया इसके बाद स्वामी जी को चौथी लोकसभा में जनसंघ पार्टी के टिकट पर और पांचवी लोकसभा में कांग्रेस के टिकट पर हमीरपुर से लोकसभा के लिए चुने गए

1967 से 1977 तक संसद सदस्य रहे स्वामी ब्रह्मानंद जी ने हमीरपुर जिले के राठ शहर में अशिक्षा के प्रकोप को देखते हुए उसे दूर करने के लिए सन 1938 में एक कॉलेज की नींव रखी जो स्वामी जी के अथक प्रयासों से 1960 में बनकर तैयार हुआ जिसके जरिए “अज्ञानता के अंधेरे को मिटाकर ज्ञान ज्योति का प्रकाश फैला” वर्तमान में बुंदेलखंड के अंदर स्वामी जी के नाम से 8 कॉलेज और कई स्कूल संचालित किए जा रहे हैं

स्वामी ब्रह्मानंद जी महाराज की मृत्यु 

 13 सितंबर 1984 को स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए हमीरपुर का ही नहीं अपितु समूचे बुंदेलखंड का लोधी समाज स्वामी जी द्वारा किए गए रचनात्मक एवं सामाजिक कार्यों के लिए सदा ही उनका ऋणी रहेगा 17 जून 1999 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह जी उनके जन्म स्थान पर उनकी मूर्ति स्थापित की और उनकी जन्मभूमि बहरा का नाम बदलकर स्वामी ब्रह्मानंद जी का धाम और मौदा बांध को स्वामी जी का धाम विभूषित कर दिया

स्वामी जी के जीवन से प्रेरित होकर भारत सरकार ने स्वामी जी के निर्वाण दिवस पर 13 दिसंबर 1967 में उनके सम्मान में एक विशेष डाक टिकट जारी किया स्वामी ब्रह्मानंद एक महान संत थे जिन्होंने “तमसो मा ज्योतिर्गमय” के सिद्धांत पर चलकर एक ऐसी अखंड विद्या ज्योति जलाई जो कभी भी बुझ नहीं सकती 

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