History

बाबा फरीद जी का इतिहास

बाबा फरीद जी का इतिहास 

शेख फरीद जी पंजाबी के सूफी संत थे इनके पूर्वज राजघरानों से थे उनमें से एक “ इब्राहिम- बिन- धन-अदहम ” के बादशाह रहे थे इनका पहला विवाह एक राजकुमारी “ बीबी हजरबा अजीज ” से हुआ था जो गुलाम वंश के बादशाह बलबन की बेटी थी फरीद जी को “ पंजाबी का आदि कवि ” कहना गलत न होगा क्योंकि इनके द्वारा लिखे गए पंजाबी के चार पद शब्द और 112 श्लोकों को “श्लोक फरीद ” के नाम से पंजाबी के आदि ग्रंथ है जो सिखों के श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी है उसमें सम्मान मिला है इनके पिता बंदगी करने वाले इंसान थे वह मुल्तान गांव के काजी थे उनका नाम “ शेख जमाल सुलेमानी ” था और माता जी का नाम “ बीबी  करसुम” था जो शेख वजीर उद्दीन कि नाती थी बीबी करसुम इतनी पवित्र और सुंदर थी कि लोग उन्हें प्यार और सरदा से माता मरियम पुकारते थे ईश्वर की भक्ति से उन्होंने अलौकिक शक्तियां पा ली थी परंतु कभी भी उन्होंने अपने पूरे जीवन में इसका प्रदर्शन नहीं किया | बाबा फरीद जी का इतिहास |

बाबा फरीद जी का जन्म 

 फरीद का जन्म 1175 ईसवी के आसपास गांव खोतवाल जिला मुल्तान, पाकिस्तान में हुआ था इनके जन्म पर पूरे गांव में गरीबों में मिठाइयां बांटी गई पिताजी ने इनका नाम  शेख मसूद रखा आगे चलकर यह “ हजरत ख्वाजा फरीदुद्दीन मसूद गंज शकर ” के नाम से मशहूर हुए इनके पिता सूफी संत थे उन्होंने नाफिया नाम की एक धार्मिक पुस्तक भी लिखी थी इनकी माता जी इन्हें नमाजी बनाना चाहती थी तो 1 दिन वह नमाज पढ़ने लगी तो उन्होंने अपने साथ नमाज अता करने को कहा यह बोले नमाज क्यों अमी- इनकी माता जी बोली बेटा हर मुसलमान को पांच वक्त की नमाज अता करना जरूरी होता है

उन्होंने पूछा नमाज अता करने से क्या होगा यह मीठे के शौकीन थे तो नमाज पढ़ने की आदत डलवाने के लिए इनके माताजी ने कहा बेटा नमाज अदा करोगे तो तुम्हें मीठा खाने मिलेगा उन्होंने कहा मीठा कौन देगा मां ने कहा बेटा सब कुछ खुदा का है मीठा भी वही देगा इन्होंने अपनी मां की देखा देखी नमाज अता की और अपने तकिए के नीचे से शक्कर की पुड़िया निकाल कर खा ली जो इनके माताजी ने पहले ही इनके तकिए के नीचे रख दी थी यह रोजाना नमाज अता करने लगे नमाज पढ़कर तकिए के नीचे से पुड़िया निकालते और खा लेते धीरे-धीरे यह पांचों वक्त की नमाज पढ़ने लगे पहली  -फजर की ,दूसरी –  जूहर की, तीसरी – असर की,चौथी- मगरिब की और पांचवी – ईशा की  यह पांचों वक्त की नमाज पढ़ने के आदी हो गए 

1 दिन नमाज से पहले इनकी माताजी तकिए के नीचे शक्कर रखना भूल गई इन्होंने नमाज अता की ओर तकिए के नीचे से पुड़िया  निकाल कर खाने लगे तो इनकी माताजी ने पूछा कि क्या खा रहे हो तब उन्होंने कहा कि मां मैं शक्कर की पुड़िया खा रहा हूं मां ने अपने बेटे के हाथ मेंपुड़िया का कागज देखा तो हैरान हो गई वह खुदा के करिश्मा को देखकर अचंभित हो गई इसके बाद उसने दौड़ कर अपने बेटे को गले से लगा लिया और कहा कि बेटा आज तुम्हें खुदा ने ही शक्कर खिलाई है इसके बाद इनके नाम के साथ “ गंज शकर” जुड़ गया शुरू से ही इनके घर में बंदगी का माहौल होने के कारण यह भी धार्मिक ख्यालों के हो गए थे इनकी छोटी आयु में ही इनके पिता का देहांत हो गया था |बाबा फरीद जी का इतिहास 

बाबा फरीद जी की शिक्षा

इनके माताजी इस्लाम तालीम की अच्छी जानकारी थी घर में ही उन्होंने इन्हें 12 साल की उम्र में कुरान मजीद का अध्ययन करवा दिया इसी दौरान उन्होंने इन्हें तपस्या से सिद्धि प्राप्त करने का ज्ञान दिया इन्होंने तभी मन में ठान लिया था कि बड़े होकर तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त करेंगे जब यह कुछ बड़े हुए तो 1 दिन तपस्या के लिए घर से निकल गए |बाबा फरीद जी का इतिहास 

बाबा फरीद जी द्वारा की गई तपस्या

 एक जंगल में जाकर तपस्या करने लगे सर्दी गर्मी सहकर जंगली फल खाए जब कोई फल नहीं मिला तो पेड़ों से पत्ते तोड़कर भी  खाए थे फिर इन्होंने हठ-योग की तपस्या कि लगभग 12 साल की तपस्या के बाद एक दिन चिड़ियों की चहचहाहट इन्हें विचलित कर रही थी तो इन्होंने गुस्से में आकर कहा चिड़ियों मर जाओ वहां जितनी भी चिड़िया चचाहा रही थी एकाएक जमीन पर गिर कर मर गई उन्होंने देखा कि मेरे कहने मात्र से चिड़िया जमीन पर गिरकर मर गई है इन्हें एहसास हुआ कि मुझे सिद्धि प्राप्त हो गई है उन्होंने  फिर से चिड़िया को देखा और बोले चिड़िया उड़ जाओ वहां जितनी भी चिड़िया जमीन पर गिरकर मर गई थी  उनमें जान आ गई और वह अपने पंख फड़फड़ा कर उड़ गई इन्हें विश्वास हो गया कि इन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई है वह सिद्ध हो गए हैं अहंकार में उनकी खुशी का ठिकाना न रहा अपनी खुशी को अपनी माता जी के साथ बांटने अपने घर अपने गांव की ओर चल दिए

चलते चलते रास्ते में एक गांव आया इन्हें प्यास लगने लगी तो यह आसपास कुआं तलाशने लगे थोड़ी दूर चलने पर एक कुआं दिखाई दिया वहां एक स्त्री कुएं से पानी भर रही है वह बोले- कन्या मुझे प्यास लगी है मुझे पानी पिला दो उनकी बातउस स्त्री ने सुनी अनसुनी कर दी और  कुवे से पानी निकाल कर हवा में बिखेर दिया इन्होंने सोचा शायद उसकी नजर में पानी पीने लायक नहीं था इसलिए नहीं दिया है उस स्त्री ने पानी निकाल कर पहले की तरह हवा में बिखेर दिया दो-तीन बार ऐसा ही किया तो  इन्हेंइतना गुस्सा आया और  उस स्त्री से बोले- पहले मुझे पानी पिला दो  फिर जितना भी  बिखेरना है उतना बिखेर देना उस स्त्री ने जवाब देते हुए कहा-फरीद जी बड़े प्यासे हो, थोड़ा धैर्य रखो ,मेरी बहन का झोपड़ा यहां से 20 कोस दूर है उसमें आग लग गई है इसके बाद पानी हवा  मैं बिखेरते हुए कहा पहले उसे बुझाने दो फिर मैं आपकी प्यास बुझाती हूं| 

जब फरीद जी ने यह सुना तो कुछ हैरान हो गए और सोचा तो यह कन्या भी सिद्ध है उस स्त्री ने आगे कहा- फरीद जी यहां चिड़िया नहीं है जो आप के कहने से मर जाएंगे और आपके कहने से जी जाएगी यह सुनकर इनको और भी आश्चर्य हुआ कि यह तो अभी अभी मेरे साथ हुआ है इसे कैसे मालूम हो गया यह तो मेरे बारे में सब कुछ जानती हैं इसके बाद इन्होंने ध्यान से देखा स्त्री पानी बिखेर रही है वह जमीन पर नहीं गिर रहा यह चुपचाप पेड़ के नीचे बैठ गए यह समझ गए कि यह कोई बड़ी सिद्ध है 

कुछ समय बाद वह स्त्री फरीद जी के लिए मटके में पानी लेकर आई और कहा लो फरीद जी पानी पी लो तब फरीद जी बोले मैं पानी बाद में पी लूंगा पहले तुम मुझे यह बताओ कि 20 कोस दूर पानी पहुंचाने की  सिद्धि तुम्हें  कैसे से प्राप्त हुई तब उस स्त्री ने कहा मैं अपने पति  को परमेश्वर मानकर उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करती हूं किसी को दुखी नहीं करती और अहंकार भी नहीं करती आपने अपने अहंकार में सिद्धि परखने के लिए भगवान की परीक्षा ले ली आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था इन्हें उस स्त्री की बात उचित लगी और बाद में इन्हें अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा इसके बाद उस स्त्री ने इन्हें पानी पिलाना शुरू किया तो ना तो मटके से पानी खत्म हो रहा था और ना ही इनकी प्यास खत्म हो रही थी यह पानी पीते पीते विचारों में खो गए और समय बीतता गया जब इन्हें होश आया तब उन्होंने देखा कुएं में पानी ही नहीं है वह तो सूखा पड़ा है इसके बाद इन्होंने अपने अहंकार को त्याग दिया और वापस अपने घर की ओर चल दिए 

जब यह घर पहुंचे तो 12 साल बाद अपने जवान बेटे को देखकर इनकी माता जी बहुत ही खुश हुई 

बाबा फरीद जी का गुरु

गुरु की तलाश में यह है बगदाद से मुल्तान पहुंच गए वहां एक मस्जिद में इलम लेने लगे एक दिन एकांत में यह अपने पिता की लिखी नाफिया पढ़ रहे थे “ हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी” उस मस्जिद में पधारे उनकी नजर इन पर पड़ी उन्होंने इन्हें आवाज लगाइए फरीद क्या पढ़ रहे हो – इन्होंने जवाब दिया कि  नफे पढ़ रहा हूं उन्होंने कहा कि अब तुम्हें  क्या यह नसे देंगी जब उन्होंने यह सुना तो सवाल पूछने वालों को देखने के लिए अपनी नजर ऊपर की  और की तो ख्वाजा  के चेहरे के रूहानियत देखकर दंग रह गए उन्हें महसूस हुआ कि यही है मेरे मुर्शिद मेरे गुरु जी हैं उनके मुरीद हो गए उनको सजदा किया और कहा मेरे आका यह नफे मुझे  दे या ना दे  पर आपकी नजरें इनायत मुझे नफरत है कि काकी जी ने कहा -फरीद तुम्हें यह किताब नफे अवश्य देगी

  इसके बाद इन्होंने “ हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ” को अपना गुरु मान लिया इन्होंने मुल्तान की मस्जिद में पढ़ाई की अपने पिता की लिखी किताब नाफिया का अध्ययन किया एक दिन यह अपने गुरु के पास दिल्ली आ गए और वहां पर इनके गुरु ने इन्हें  तपस्या करने को कहा- इस तपस्या में पैर नीचे और सिर ऊपर करके प्रभु का स्मरण  करना था इस तपस्या से इन्होंने अपने मन पर काबू पाया और फकीर बन गए

फरीद जी का विवाह

बाबा फरीद की तीन शादियां हुई थी पहली शादी बीवी हजरा अजीजा से, दूसरी- बीवी कलसुम और तीसरी- शाहदरा से हुई थी इनके 8 संताने थी पांच बेटे और तीन बेटियां थी | बाबा फरीद जी का इतिहास |

बाबा फरीद जी की मृत्यु

बाबा फरीद की 1265 ईस्वी में मृत्यु हो गई थी पाक पटन में आज भी वह कुआं इनकी धरोहर है जिनमें फरीद जी अपने शरीर को लटकाकर हट योग द्वारा परमात्मा की बंदगी किया करते थे फरीद जी ने अपना पूरा जीवन इस्लाम की सेवा में लगाया था | बाबा फरीद जी का इतिहास |

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