History

एकलव्य का इतिहास

एकलव्य का इतिहास, एकलव्य का जन्म, एकलव्य की निडरता, द्रोणाचार्य द्वारा दिया गया वचन, एकलव्य के साथ छल , धनुर्विद्या का अभ्यास, एकलव्य की गुरु दक्षिणा, एकलव्य की मृत्यु 

एकलव्य का इतिहास 

हजारों वर्ष पहले प्राचीन समय में हिरण धनु नाम का एक राजा हुआ करता था वह बहुत ही स्वाभिमानी राजा थे उनकी प्रजा भी सरल, शांत और खुशमिजाज थी उस समय लोग आपस में घुल मिलकर रहते थे और कष्ट के समय में एक दूसरे के सहायक बनते थे राजा हिरण धनु ने अपने राज्य में गुरुकुल बनवाए थे और समान रूप से सभी बच्चे उस में शिक्षा ग्रहण करते थे

इस राजा के राज्य में बहुत जंगल थे जिनमें बहुत ही खूबसूरत जानवर रहा करते थे इनके राज्य में लोग स्वार्थ को महत्व न देकर आपसी मेलजोल से रहते थे उस समय कभी भी कोई भी किसी पर आक्रमण कर देता था इसलिए राजा हिरण धनु ने एक मजबूत सेना का गठन किया इसके बाद राजा हिरण धनु के साथ कई युद्ध हुए परंतु राजा ने एक भी युद्ध नहीं हरा और अपने राज्य की रक्षा की थी | एकलव्य का इतिहास |

एकलव्य का जन्म

राजा हिरण धनु की पत्नी सुलेखा थी इसके बाद इन दोनों से उत्तराधिकारी की प्राप्ति हुई एकलव्य निषाद राजा हिरण धनु का ही पुत्र था जो कि महाभारत काल में निषाद जाति को शूद्र माना जाता था उस बालक का नाम अभय रखा गया वह बालक बहुत ही सुंदर स्वाभिमानी साहसी था जब अभय बड़ा हुआ तब राजा हिरण धनु ने उसे निषाद गुरुकुल में शिक्षा दिलवाई जब उसे गुरु धनुष चलाने की विद्या सिखाते हैं तो वह वैसे ही उस विद्या को ग्रहण कर लेता था इस गुण को देखकर ही गुरु ने अभय का नाम एकलव्य रख दिया जिसका अर्थ होता है -देखकर धनुष चलाने वाला 

एकलव्य की निडरता 

एक बार एकलव्य अपने मित्र के साथ नदी में स्नान करने के लिए गए तब वहां एक बाघ ने उन पर हमला कर दिया इसके बाद एकलव्य बहादुरी का परिचय देते हुए उस बाघ से लड़ने लगा इसके बाद एकलव्य ने उस बाघ को पिंजरे में बंद कर लिया तब बड़े ही भव्य तरीके से एकलव्य का सम्मान हुआ एकलव्य बहुत बड़े धनुर्धारी बनना चाहते थे वह इसलिए कि उन्हें वन में रहने वाले वन्य प्राणियों से बहुत ही प्रेम था परंतु जंगल में बहुत ही बड़े बड़े भेड़िए थे जो कि हिरण के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाते थे हिरण के बच्चों की रोने की आवाज को सुनकर एकलव्य बहुत ही दुखी होता था इसके साथ ही एकलव्य को अपने राज्य की रक्षा करने के लिए भी अच्छा धनुर्धर बनना था | एकलव्य का इतिहास |

द्रोणाचार्य द्वारा दिया गया वचन

 उस समय गुरु द्रोणाचार्य विख्यात गुरु थे वह सर्वश्रेष्ठ गुरु थे इसके बाद एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा ग्रहण करने के लिए हस्तिनापुर चले गए उस समय गुरु द्रोणाचार्य  कौरवों और पांडवों को शिक्षा दे रहे थे उस समय गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से पूछ रहे थे कि तुम कौन सी शिक्षा सीखना चाहते हो वह बताइए मैं वही सिखाऊंगा इसके बाद कर्ण’ और अर्जुन ने धनुर्विद्या सीखने का निर्णय लिया इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने कर्ण को निशाना साधने के लिए कहा तो कर्ण का निशाना सीधा निशाने पर जाकर लगा इसके बाद जब अर्जुन को निशाना साधने के लिए कहा गया तो उनका निशाना गलत जगह लगा

और उन्हें डांट सुनने को मिली एक तरफ गुरु द्रोण दुखी थे क्योंकि गुरु द्रोणाचार्य और राजा के बेटे द्रुपद ने एक ही गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण की थी और उस समय द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य को यह वचन दिया था कि कष्ट के समय में वह उसकी सहायता करेगा जब द्रुपद राजा बन गया तब उसमें  घमंड आ गया एक दिन गुरु द्रोणाचार्य उसके महल में सहायता के लिए गाय को मांगा तब राजा द्रुपद ने उनको बहुत ही अपमानित किया

जब इस बात का पता अर्जुन को चला तो उसने गुरु द्रोणाचार्य को यह वचन दिया कि वह उनके अपमान का बदला राजा द्रुपद से लेंगे यह बात सुनकर गुरु द्रोणाचार्य बहुत ही खुश हुए तब अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से यह वचन लिया कि उसे दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर बनाएंगे इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का वचन दिया | एकलव्य का इतिहास |

एकलव्य के साथ छल  

1 दिन गुरु द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों की परीक्षक ले रहे थे गुरु द्रोणाचार्य ने भीम को आती पर कदम रखने के लिए कहा परंतु भीम का निशाना चूक गया इसके बाद करण ने हाथी पर गद्दाफी की जिससे आती बहुत ही क्रोधित हो गए और उसने बहुत ही उत्पाद बचाया इसके बाद अर्जुन ने उसे काबू करने के लिए बहुत ही कोशिश की परंतु वह हाथी उत्पात मचाता रहा इसके बाद अचानक एकलव्य ने आकर उस हाथी को अपने काबू में कर लिया

यह देखकर गुरु द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने उनका परिचय पूछा तब एकलव्य ने कहा कि मैं महाराजा ‘हिरण्य भील’ का पुत्र एकलव्य हूं मैं आपसे धनुर्विद्या सीखना चाहता हूं उस समय शिक्षा क्षत्रिय और ब्राह्मणों को दी जाती थी शिक्षा का अधिकार 4 वर्गों में बंटा हुआ था इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा देने से इनकार कर दिया और एकलव्य बहुत ही निराश हुआ 

धनुर्विद्या का अभ्यास

 एकलव्य हस्तिनापुर से कुछ दूर भील आदिवासी क्षेत्र में रुक गया और वहां के सरदार से वहां पर धनुर्विद्या सीखने की अनुमति मांगी और कहा कि मैं यहां पर धनुर्विद्या का अभ्यास करना चाहता हूं यह बात सुनकर वह सरदार बहुत ही खुश हुआ और उन्होंने धनुर्विद्या सीखने की इजाजत दे दी इसके बाद एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उनके सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगे जब एकलव्य को किसी विद्या को सीखने में परेशानी आती तो मैं खुद से ही सवाल जवाब कर कर उसका हल ढूंढ लेता था

इस प्रकार सर्दी ,गर्मी हर मौसम में एकलव्य का अभ्यास जारी रहा और वह एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन गया इसके बाद एकलव्य ने धनुर्विद्या में महारत हासिल कर ली थी 1 दिन कौरव पांडव वन में टहलने के लिए जा रहे थे उनके साथ एक कुत्ता भी था वह कुत्ता जब भोकने लगा तब एकलव्य अपनी धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थे कुत्ते के भौंकने की वजह से उनका ध्यान भटक रहा था तब एकलव्य ने उस कुत्ते पर शब्दभेदी बाण चलाया जिससे कुत्ते की जान भी बच गई

और वह बोला भी नहीं  जब अर्जुन ने उस कुत्ते को देखा तो वह हैरान रह गए कि मैं दुनिया का सबसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर तो फिर मेरे अलावा इस जंगल में और कौन है जो कि शब्दभेदी विद्या को जानता है इसके बाद वह अर्जुन उसे ढूंढने लगा जब उसने एकलव्य को देखा तो पूछा कि मेरे कुत्ते पर बांध क्या तुमने ही चलाया था तब एकलव्य ने जवाब दिया कि हां मैंने ही तुम्हारे कुत्ते पर बाण चलाया था इसके बाद अर्जुन ने उनसे पूछा कि तुम्हारे गुरु कौन है तब एकलव्य ने कहा कि मेरे गुरु गुरु द्रोणाचार्य है तब अर्जुन ने सोचा कि गुरु द्रोणाचार्य ने मेरे साथ छल किया है इसके बाद अर्जुन गुरु द्रोणाचार्य के पास आया और सारी घटना उन्हें बताई | एकलव्य का इतिहास |

गुरु द्रोणाचार्य का आगमन

  गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन और अश्वत्थामा को लेकर वन की ओर निकल पड़े जब इस बात का पता एकलव्य को लगा कि गुरु द्रोणाचार्य उनसे मिलने के लिए आ रहे हैं तब उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उसने पूरे वन को स्वागत के लिए सुशोभित किया और एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति को पुष्पों से सजाया और उन्हें प्रणाम किया इसके बाद एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य का बहुत ही भरपूर तरीके से स्वागत किया और उनके साथ ही अर्जुन और अश्वत्थामा का भी सत्कार किया

इसके बाद एकलव्य ने अपनी धनुर्विद्या  का गुरु द्रोणाचार्य के सामने प्रदर्शन किया जिसे देखकर अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य हैरान रह गए गुरु द्रोणाचार्य को एकलव्य पर विश्वास नहीं हो रहा था कि यह भील पुत्र धनुर्विद्या में इतना पारंगत होता जा रहा है इसके बाद एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा कि आपके आशीर्वाद से ही मैंने यह विद्या प्राप्त की है 

एकलव्य की गुरु दक्षिणा

  गुरु द्रोणाचार्य ने कहा तुमने जो विद्या प्राप्त की है वह अपार है तुमने जो सिद्धि प्राप्त की है वह बहुत ही सराहनीय है गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से कहा यदि तुम मुझे अपना गुरु मानते हो तो मुझे गुरु दक्षिणा दो इसके बाद एकलव्य ने मुस्कुराते हुए कहा गुरु जी आप जो मांगोगे वह मैं दूंगा गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनके दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया एकलव्य ने मुस्कुराते हुए अपने दाहिने हाथ का अंगूठा गुरु द्रोणाचार्य को दक्षिणा के रूप में दे दिया

एकलव्य के साथ छल कपट हुआ और उसका अंगूठा कट गया लेकिन फिर भी एकलव्य ने अपना अभ्यास जारी रखा गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देने के बाद एकलव्य अपने राज्य में वापस लौट आया और मैं अपने राज्य के लोगों को शिक्षा देने लगे इसके बाद वह अपने राज्य के राजा बने और उन्होंने भील लोगों की एक सेना एकत्रित की और उन्होंने धीरे-धीरे अपने राज्य का विस्तार कर लिया | एकलव्य का इतिहास |

एकलव्य की मृत्यु 

निषाद नगर का राजा बनने के बाद एकलव्य ने जरासंध की तरफ से मथुरा पर आक्रमण किया था जब श्री कृष्ण ने एकलव्य को 4 अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए देखा तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ एकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को मार चुका था इसी युद्ध में श्रीकृष्ण ने छल से एकलव्य का वध किया था | एकलव्य का इतिहास |

Back to top button