झांसी का किला का इतिहास व उसका इतिहास, किले की विशेषता
झांसी का किला व उसका इतिहास
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में शहर के बीचो-बीच बंगारा पहाड़ी पर बना यह किला 1613 में ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव ने बनवाया था और झांसी कभी सशक्त ओरछा राज्य था और झांसी को इस काल में बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था उस समय बलवंत नगर में रहने वाले किसान खेती दूध ,दही ,और लकड़ी बेचकर अपना गुजारा करते थे
तभी हिंदुस्तान में अंग्रेजों ने दस्तक दी और इतिहास को स्वर्णिम बनाने के लिए जन्म हुआ रानी लक्ष्मीबाई का वह तारीख थी की 1827 से 1835 के बीच सामान्य से दिखने वाली लड़की मणिकर्णिका का जन्म वाराणसी जिले के बधनी में हुआ था बचपन में प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था और उनकी मां का नाम भागीरथी बाई और उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था उनके पिताजी एक मराठा थे और वह एक मराठा बाजीराव की सेवा में काम करते थे | झांसी का किला का इतिहास |
किले की विशेषता
25 सालों तक यहां बुंदेल राजाओं ने राज किया उसके बाद मुगलो,फिर मराठा और बाद में अंग्रेजों ने शासन किया इस किले में गंगाधर राव के समय की एक कड़क बिजली तोप है इसका नाम कड़क बिजली तोप इसलिए रखा गया था क्योंकि जब यह चलती थी तब बिजली के समान कड़कती आवाज के साथ चलती थी 15 एकड़ में फैले इस किले में 22 बुर्ज है और दोनों तरफ खाई है
नगर की दीवार में 10 बड़े दरवाजे और इसके अलावा मराठा वास्तुकला से बने शिव मंदिर एवं गणेश मंदिर भी है मजबूत किलेबंदी के लिए ऊंची दीवारों पर पहरेदारी के लिए खास जगह बनाई गई थी बाहर से आने जाने वाले लोगों पर चौकसी और निगरानी के लिए दीवारों पर खास तरीके से चुनाई की गई थी 22 विशालकाय मजबूत दीवारों पर खास दूरी पर कड़ी चौकसी की जाती थी जहां से पहरेदार सभी को देख सकते थे अंग्रेजी शासन के दौरान किले की दीवारों पर मशीन गनो को रखने के लिए खास तरीके की खिड़कियां काटी गई थी
निशानेबाजों तीरंदाजो के लिए अलग-अलग पहरेदारी खिड़कियां बनाई गई थी मोटी ग्रेनाइट पत्थर की दीवारों पर घुड़सवारों और तोपचीओ की टुकड़िया चारों तरफ से झांसी के किले और झांसी के शहर पर नजर बना कर रखती थी इस किले में पंचमहल, कड़क बिजली, शिव मंदिर और गणेश मंदिर प्रमुख जगह है पंचमहल की दीवारें झांसी के इतिहास के गवाह रही है
1842 में गंगाधर राव का विवाह मणिकर्णिका के साथ हुआ था जिन्हें विवाह के बाद झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाता था इसके बाद उन्हें1851 में एक पुत्र हुआ परंतु कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई अपने पुत्र की मृत्यु से गंगाधर राव को बहुत अधिक दुख पहुंचा और इसके कारण उनकी तबीयत खराब रहने लगी सलाहकारों के कहने पर राजा ने अपने छोटे भाई के बेटे को गोद लेकर ब्रिटिश अफसरों के सामने आनंद राव को झांसी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था
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रानी लक्ष्मी बाई के सामने रखी गई शर्त
नवंबर 1853 में गंगाधर राव की मृत्यु के बाद ब्रिटिश अफसरों को लालच आ गया और उन्होंने झांसी को हथियाने के लिए साजिश रची ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर डलहौजी ने उत्तराधिकारी के पद को खारिज कर दिया और किले को उसके उत्तराधिकार के क्षेत्र से अलग कर दिया
इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें धमकी देते हुए कहा कि मैं कभी भी झांसी तुम्हें नहीं दूंगी इसके बाद मार्च 1854 में रानी लक्ष्मीबाई को ₹60000 सालाना की वार्षिक पेंशन शर्त पर महल और किले को छोड़ने के लिए कहा गया झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने इस शर्त को अस्वीकार कर दिया था | झांसी का किला का इतिहास |
अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह
1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह हो गया था इसमें झांसी की रानी ने सेना का नेतृत्व किया इसके बाद अंग्रेजों ने झांसी पर 8 दिनों तक बारूद के गोले बरसाए परंतु ना तो वह किले को जीत सके और ना ही झांसी पर फतह हासिल कर सके थे इस विद्रोह में रानी और उनके अनुयायियों ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक जीवित रहेंगे तब तक किले की रक्षा करेंगे
जब अंग्रेज सैन्य शक्ति से किले पर कब्जा नहीं कर पाए तो उन्होंने कूटनीति का सहारा लिया अंग्रेजों ने झांसी के विश्वासघाती सरदार को अपने साथ मिला लिया जिसने छल से झांसी के किले का दक्षिणी दरवाजा खोल दिया इसके बाद 8 अप्रैल 1858 को 20,000 अंग्रेजी सैनिक किले में घुस गए थे उन्होंने लूटपाट और मारकाट शुरू कर दी थी इसके बाद झांसी की छोटी सी सेना ने डटकर उनका मुकाबला किया
एक समय ऐसा आया जब रानी चारों तरफ से अंग्रेजों से गिर गई थी और उन्हें पैर पर गोली लग गई थी इस किले में आज भी वह जगह मौजूद है जहां से झांसी की रानी अपने पुत्र को लेकर कूदी थी स्वतंत्रता की लड़ाई में रानी शहीद जरूर हो गई थी परंतु आज भी इस किले की दीवार उनकी गौरवशाली कहानियों उदाहरण है आज भी यह किला रानी लक्ष्मी बाई की पहचान रखता है
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी ,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
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