History

तारागढ़ किले का इतिहास

तारागढ़ किले का इतिहास, तारागढ़ किले की विशेषता, नीम के पेड़ की विशेषता,

तारागढ़ किले का इतिहास

भारतीय राज्य राजस्थान के अजमेर में स्थित तारागढ़ किले का इतिहास अजमेर के चौहान शासकों से जुड़ा हुआ है इस ऐतिहासिक किले का निर्माण 11वीं शताब्दी में सम्राट अजय पाल चौहान द्वारा करवाया गया था इस दुर्ग का निर्माण विदेशी या तुर्कों के आक्रमणों से रक्षा तथा अपनी सैन्य गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया था

यह किला अजमेरू दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है इस प्राचीन किले ने कई राजाओं का उत्थान और पतन देखा है  इस किले के रोचक बात यह है कि कुछ समय पहले तक इस किले को राजस्थान पर्यटन की वेबसाइट पर दर्शाया ही नहीं गया था क्योंकि तारागढ़ के नाम से बूंदी स्थित किले को ही जाना जाता था लेकिन अजमेर मे स्थित तारागढ़ किला उससे कहीं ज्यादा भव्य विशाल और प्राचीन है मुगल काल में यह किला सामरिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण था

लेकिन अब इस किले में सिर्फ जर्जर बुर्ज दरवाजे और खंडहर ही शेष बचे हैं और मुगल बादशाह अकबर ने किस की श्रेष्ठता भापकर अजमेर को अपने साम्राज्य का सबसे बड़ा सुबा बनाया था तारागढ़ जिसके भी अधीन  रहा वह दुर्ग के द्वार पर कभी युद्ध नहीं हारा था | तारागढ़ किले का इतिहास |

तारागढ़ किले की विशेषता

 यह किला समुद्र तल से लगभग 1,885 फीट ऊंचे पर्वत शिखर पर 2 वर्ग मील में फैला हुआ है और भारत के सबसे ऊंचाई पर बने किलो में से एक है पहाड़ी की ढलान पर बने ऐतिहासिक किले में अंदर जाने के लिए 3 विशाल दरवाजे बने हुए हैं इन्हें लक्ष्मी पोल और गांव गागुड़ी का फाटक ,के नाम से जाना जाता है यह किला राजपूती स्थापत्य शैली में बना हुआ है इस किले में राजस्थान के अन्य किलो की तुलना में मुगल स्थापत्य कला का कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता है

इस प्राचीन किले में एक प्रसिद्ध दरगाह और सात पानी  के जलाशय भी बनी हुई है मेवाड़ के शासक पृथ्वी राज सिसोदिया ने अपनी पत्नी तारा के कहने पर इस किले का पुनः निर्माण करवाया था जिसके कारण यह तारागढ़ के नाम से प्रसिद्ध हो गया है जब 1832 में भारत के गवर्नर मिलियन बेंटिक ने इस किले को देखा तो उनके मुंह से निकल पड़ा दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर है जिब्राल्टर यूरोप के दक्षिणी छोर पर भूमध्य सागर के किनारे स्थित एक ब्रिटिश क्षेत्र है

जिब्राल्टर चट्टानों से घिरा हुआ है और यहां कई प्रकार की प्राकृतिक गुफाएं भी है किले के भीम बुर्ज पर एक गर्भ गुंजन तोप भी रखी हुई है जो अपने विशाल आकार और मारक क्षमता से शत्रुओं के छक्के छुड़ाने का कार्य करती थी यह तोप आज भी यहां देखी जा सकती है लेकिन वर्तमान में यह सिर्फ प्रदर्शन की वस्तु बनकर रह गई है जब यह तोप चलती थी इसकी तेज आवाज का शोर चारों ओर सुनाई देता था 16वीं सदी में तोप की कई मर्तबा आवाज गूंजी थी

इस किले के अंदर 14 विशाल बुर्ज, अनेक जलाशय और मुस्लिम संत मीरान साहब की दरगाह बनी हुई है इस किले के अंदर तीन तालाब हैं जो कि पानी को कभी भी सूखने नहीं देते इन तालाबों का निर्माण का इंजीनियरिंग के परिष्कृत और उन्नत विविध का शानदार उदाहरण है जिनका प्रयोग उन दिनों में हुआ था इन जलाशयों में वर्षा का जल सिंचित रखा जाता था और पानी की समस्या उत्पन्न होने पर आम निवासियों की जरूरत के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता था जलाशयों का आधार चट्टानी होने के कारण यहां पर वर्षा का पानी कभी नहीं सूखता था और वह वर्ष भर जमा रहता था | तारागढ़ किले का इतिहास |

नीम के पेड़ की विशेषता

तारागढ़ किले के अंदर एक मीठे नीम का पेड़ भी है ऐसा माना जाता है कि जिन औरतों को संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिलता है यदि वह इस वृक्ष का फल खा ले तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है

खंभों की छतरी

 कोटा जाने वाले मार्ग पर देवपुरा ग्राम के निकट एक विशाल छतरी बनी हुई है इस छतरी का निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह के द्वारा 1683 में किया गया था इस तीन मंजिला छतरी में 84 भव्य स्तंभ है इस किले के भीतर बने महल अपनी स्थापत्य एवं अद्भुत चित्रकारी के कारण प्रसिद्ध है इन महलों में छत्र महल, अनिरुद्ध महल ,रतन महल ,बादल महल और फूल महल प्रमुख है

तारागढ़ के किले में बहुत सी सुरंगे बनी हुई है यहां पर बहुत सी लड़ाइयां लड़ी गई थी इस किले की सबसे बड़ी लड़ाई  सोलवीं सदी में लड़ी गई थी तारागढ़ का किला बहुत ही सुंदर और आकर्षित है यह किला राजस्थान की बहुमूल्य विरासत है जो हमें इतिहास से मिली है तारागढ़ का किला बहुत ही ऊंचाई पर बना हुआ है

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