ताऊ देवीलाल का जीवन परिचय, ताऊ देवीलाल का जन्म, ताऊ देवीलाल की राजनीति, ताऊ देवीलाल की मृत्यु
ताऊ देवीलाल का जीवन परिचय
चौधरी देवीलाल को राजनीति के सबसे भरोसेमंद ताऊ के तौर पर याद किया जाता है उन्होंने वादा निभाने के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी भी ठुकरा दी थी आज के दौर में कल्पना करना मुश्किल है कि भारत में ऐसा कोई नेता रहा जो बहुमत से संसदीय दल का नेता मान लिए जाने के बाद भी अपनी जगह किसी दूसरे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना देता हो
चौधरी देवीलाल राजनीति के असल किंग मेकर थे भारतीय राजनीति में बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्होंने कुर्सी से ऊपर उठकर सोचा और जो वादा किया उसे निभाया पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल राजनीति के उन गिने-चुने शख्सियतों में थे राजनीति में उन्हें बेहतर उदाहरण पेश करने के लिए उन्हें याद किया जाता है | ताऊ देवीलाल का जीवन परिचय |
ताऊ देवीलाल का जन्म
ताऊ देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1915 को राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के अमरपुरा गांव में हुआ था इनकी माता जी का नाम ‘शुगा देवी’ और इनके पिताजी का नाम ‘लेखराम’ था इनके पिताजी एक बहुत बड़े जमीदार थे जिनके पास 28 बीघा जमीन थीइनकी पत्नी का नाम ‘हरखी देवी’ है 1919 में ये सिरसा जिले के तेजा खेड़ा गांव में आकर बस गए थे देवीलाल के अंदर बचपन से ही देश प्रेम की भावना थी
ताऊ देवीलाल हरियाणा के लोकप्रिय नेताओं में से एक थे इन्हें हरियाणा का निर्माता भी कहा जाता है जब 1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु कर दी जाती है तब 16 वर्ष की आयु में देवीलाल ने इस आंदोलन में भाग लिया था इसके बाद उन्होंने 1930 में “सविनय अवज्ञा आंदोलन” में भी हिस्सा लिया था उस समय वह केवल दसवीं कक्षा के छात्र थे आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण इन्हें अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है और इनकी पढ़ाई को रोक दिया जाता है इतनी कम उम्र में वह देश की आजादी के लिए पहली बार जेल में गए
इसके बाद 1932 में वह दूसरी बार जेल में गए 1940 में वह 9 महीने के लिए फिर से जेल में गए इसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे 2 साल तक जेल में रहे देवीलाल पर महात्मा गांधी के विचारों का काफी प्रभाव पड़ा था देवीलाल अपना राजनीतिक गुरु अपने भाई ‘राम सिन्हा’ को मानते थे इन के भाई ने 1938 में कांग्रेस की टिकट हासिल की थी इसके बाद देवीलाल ने भी राजनीतिक जीवन में अपने लक्ष्य को सामने रखा और एक किसान राजनेता के रूप में अपनी पहचान बनाई देवीलाल ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया और जब देश आजाद हुआ तो राजनीति के जरिए समाज सेवा के क्षेत्र में आ गए 22 वर्षों के संघर्ष के बाद 1952 में पहली बार विधायक बने थे
पहली बार वह पंजाब से चुने गए थे इसके बाद 1956 और 1958 में यह तीसरी बार पंजाब कांग्रेस के विधायक बने इसके बाद उन्होंने हरियाणा को एक अलग राज्य बनाने में अपना योगदान दिया ताऊ देवीलाल ने 1971 में कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था क्योंकि इनका मानना था कि इंदिरा गांधी एक तानाशाह के रूप में कार्य कर रही है इसके बाद 1974 में ये फिर से विधायक बने लेकिन इस बार उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था इसके बाद जब 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकालीन की घोषणा की गई तब इन्हें भी विपक्षी नेताओं की तरह इनको भी जेल में डाल दिया गया था
जब 1977 में चुनाव हुए तो ‘जनता पार्टी’ के रूप में उन्होंने जीत हासिल की थी तब से इन्हें शेर- ए- हरियाणा कहा जाता है इसके बाद 1980- 82 के बीच ताऊ देवीलाल लोकसभा के सदस्य बने उन्होंने राणा के गरीब मजदूरों के लिए न्याय युद्ध चलाया इस आंदोलन ने उन्हें हरियाणा के किसान मजदूरों का चहेता बना दिया ताऊ देवीलाल ने 1987 में विधानसभा चुनाव में 85 सीटें हासिल करके अपना रिकॉर्ड बनाया था | ताऊ देवीलाल का जीवन परिचय |
ताऊ देवीलाल की राजनीति
इन राजनीतिक बुलंदियों के बावजूद देवीलाल को सबसे ज्यादा 1989 के चुनाव में वीपी सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपने की वजह से याद किया जाता है 1989 के चुनाव के बाद संयुक्त मोर्चा के संसदीय दल की बैठक चल रही थी इस बैठक में देवीलाल को संसदीय दल का नेता मान लिया गया था प्रधानमंत्री की कुर्सी के वह बिल्कुल करीब थे बैठक में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने देवीलाल को संसदीय दल का नेता बनाने का प्रस्ताव रखा था जिसका चंद्रशेखर ने भी समर्थन किया था
देवीलाल अपने राजनीतिक के शीर्ष पर खड़े थे उस बैठक में वह नेताओं का धन्यवाद करने के लिए खड़े हुए वह बोले मैं सबसे बुजुर्ग मुझे सब ताऊ बुलाते हैं मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं यह पद विश्वनाथ प्रताप सिंह को सोता हूं पूरी सभा में सन्नाटा छा गया लोग हैरान थे कि देवीलाल ने ऐसा क्यों किया प्रधानमंत्री की कुर्सी को एक झटके में क्यों ठुकरा दिया इस घटना के बाद देवीलाल राजनीति के किंग मेकर बन गए वीपी सिंह सिर्फ चौधरी देवीलाल की वजह से प्रधानमंत्री बन पाए थे उस दौर में चंद्रशेखर वीपी सिंह को संसदीय दल का नेता चुने जाने के खिलाफ थे
उन्होंने संसदीय दल का नेता बनने के लिए चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था वी. पी. सिंह को अपने जीतने का भरोसा नहीं था लेकिन देवीलाल के नाम पर दोनों की सहमति थी देवीलाल को संसदीय दल का नेता चुने जाने पर दोनों नेताओं ने अपना समर्थन दिया था संसदीय दल की बैठक के पहले ही देवीलाल और वीपी सिंह के बीच गुप्त समझौता हो चुका था देवीलाल ने वीपी सिंह को दिए वादे का पालन किया और संसदीय दल के नेता की कुर्सी वीपी सिंह को सौंप दी
देवी लाल वी पीसिंह और चंद्रशेखर दोनों की सरकारों में उप प्रधानमंत्री बने थे बी पी सिंह ने बाद में देवीलाल को अपने मंत्रिमंडल से हटा दिया लेकिन उसके बाद चौधरी देवीलाल फिर प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर के साथ चंद्रशेखर महज 4 महीने के भीतर इस्तीफा देने पर मजबूर हुए तब भी देवीलाल के पास मौका था कि वे प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी जता सकते थे ताऊ देवी लाल हरियाणा में दो बार मुख्यमंत्री बन चुके थे इन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है | ताऊ देवीलाल का जीवन परिचय |
ताऊ देवीलाल की मृत्यु
भारतीय राजनीति के इस दबंग ताऊ का निधन 6 अप्रैल 2001 को हुआ उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में यमुना नदी के तट पर चौधरी चरण सिंह की समाधि किसान घाट के पास संघर्ष स्थल पर हुआ था | ताऊ देवीलाल का जीवन परिचय |