History

नाहरगढ़ किले का इतिहास

नाहरगढ़ किले का इतिहास, नाहरगढ़ किले का निर्माण, नाहरगढ़ किले की विशेषता, 

नाहरगढ़ का किला

 नाहरगढ़ किला राजस्थान के जयपुर के अरावली पर्वत की ऊंचाई पर बना हुआ है जब इस किले को शहर से देखते हैं तो एक बहुत ही खूबसूरत नजर आता है आमेर किले और जयगढ़ किले के साथ नाहरगढ़ किला भी जयपुर शहर को कड़ी सुरक्षा प्रदान करता है  इस किले का प्राचीन नाम सुदर्शन गढ़ था लेकिन बाद में इसे नाहरगढ़ किले के नाम से जाना जाने लगा

नाहरगढ़ का अर्थ होता है “शेर का निवास स्थान”प्रसिद्ध प्रथाओं के अनुसार नाहर नाम “नाहर सिंह भोमिया” से लिया गया है ,जिन्होंने किले के लिए जगह उपलब्ध करवाई और इसका निर्माण करवाया था नाहर की याद में किले के अंदर एक मंदिर का निर्माण भी किया गया है जो उन्हीं के नाम से जाना जाता है | नाहरगढ़ किले का इतिहास |

नाहरगढ़ किले का निर्माण 

 नाहरगढ़ किला 1734 में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था इस किले को बनाने में 7 वर्ष का समय लगा था राजा जयसिंह द्वितीय ने इस किले का निर्माण मुगलों के आक्रमण से बचने के लिए किया था इस पर्वत के चारों ओर सुरक्षा के लिए दीवारें बनी हुई है यह किला पहले आमेर की राजधानी हुआ करता था किले पर कभी किसी ने आक्रमण नहीं किया था

लेकिन फिर भी यहां पर ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैंजिसमें मुख्य रुप से 18 वीं शताब्दी में मराठों की जयपुर के साथ हुई लड़ाई भी शामिल है 1847के भारत विद्रोह के समय इस क्षेत्र में यूरोपियन जिसमें ब्रिटिशओ की पत्नियां भी शामिल थी सभी को जयपुर के राजा सवाई राम सिंह ने उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें नाहरगढ़ किले में भेज दिया था

1868 में राजा राम सिंह के शासन काल में इस किले का विस्तार किया गया था 1883-92 के समय में राजा माधव सिंह ने नाहरगढ़ में 3.50 लाख की लागत लगाकर कई महलों का निर्माण करवाया था सवाई माधो सिंह द्वारा बनवाया गया माधवेंद्र भवन जयपुर की रानियों को बहुत ही पसंद आता था | नाहरगढ़ किले का इतिहास |

नाहरगढ़ किले की विशेषता

मुगलो द्वारा इस किले पर कभी कोई आक्रमण नहीं किया गया था नाहरगढ़ किले में लगी पिस्तौल का उपयोग फायरिंग का सिग्नल देने के लिए किया जाता है इस किले में बॉलीवुड फिल्म रंग दे बसंती और जोधा अकबर के दृश्यों को शूट किया गया है इस किले में माधवेंद्र भवन को गलियारों से जोड़ा गया था

इस किले में आज भी भित्ति चित्र मौजूद हैं इस किले का उपयोग साल 1944 तक जयपुर राज्य सरकार द्वारा अपने अधिकारी उद्देश्यों के लिए किया जाता था वर्तमान में इसके लिए का उपयोग एक पिकनिक स्थल की तरह किया जाता है जो जयपुर में काफी लोकप्रिय है पर्यटक यहां आकर किले के परिसर में स्थित कैफेटेरिया और रेस्टोरेंट का काफी आनंद उठाते हैं

नाहरगढ़ किले में माधवेंद्र भवन 

माधवेंद्र भवन में कमाल की कारीगरी दिखती है गुलाबी नगरी की आर्किटेक्ट विद्याधर भट्टाचार्य ने नाहरगढ़ किले में राजा और  9 रानियों के लिए जो महल तैयार किया वह खुद में कई अजूबे समेटे हुए हैं माधवेंद्र भवन में मुख्य महारानी के कमरे के बगल में ही बना है राजा का कमरा जिस कमरे से किले में दाखिल होने वाला हर शख्स दिखता है

9 रानियों का कमरा एक ऐसा कमरा जहां से राजपूत राजा रानियों, दरबारियों कि हर हरकत पर नजर रखते थे एक महल की आर्किटेक्ट ने राजा की निजता को वास्तव में समेट दिया था महल में एक ऐसा गलियारा बनाया जिससे राजा किस रानी के कमरे में दाखिल हो रहे हैं बाकी रानियों को पता तक नहीं चलता था यह एक ऐसा दुर्ग है जहां से मकान माचिस के डिब्बी की तरह नजर आते हैं | नाहरगढ़ किले का इतिहास |

नाहरगढ़ किले में बनी बावड़ी 

किले में बनी इस बावड़ी  में पहाड़ों से पक्की नालियों से पानी बहकर आता था और बीच-बीच में बनी हाजियों में कचरा छोड़ता हुआ आता था किले में आज भी यह बावड़ी एक अलग खूबसूरती समेटे हुए दिखती है जिसमें सबसे खूबसूरत है बावड़ी की लहरदार सीढ़ियां जो बावड़ी को जीवंत बनाती है पानी की लहरों से जोड़ती है

| नाहरगढ़ किले का इतिहास |

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