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गागरोन किले का निर्माण
राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित है यह किला चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी नीव नहीं है गागरोन का किला अपने गौरवमई इतिहास के कारण भी जाना जाता है सैकड़ों साल पहले जब यहां के शासक अचलदास खींची मालवा के शासक होशंग शाह से हार गए थे तो यहां के राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मन से बचाने के लिए जोहर कर लिया था
सैकड़ों की तादात में महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था इस शानदार धरोहर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरीटेज की सूची में शामिल किया है गागरोन किले का निर्माण राजा बिजल देव ने 12 वीं सदी में करवाया था और 300 साल तक यहां खींची राज करते रहे यहां 14 युद्ध और दो जोहर हुए थे हैं यह उत्तर भारत का एकमात्र किला है जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है इसी कारण से इसे जल दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है यह एकमात्र ऐसा किला है जिसके 3 परकोटे हैं सामान्यत सभी किलो के दो ही परकोटे होते हैं
गागरोन किले का शासनकाल
यह किला भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसे बगैर नींव के तैयार किया गया है इस किले की बुर्ज पहाड़ियों से मिली हुई है अचलदास खींची मालवा के इतिहास प्रसिद्ध गढ़ गागरोन के अंतिम प्रतापी नरेश थे मध्यकाल में गागरोन की क्षमता एवं समृद्धि पर बढ़ती मुस्लिम शक्ति की गिद्ध की तरह नजर लगी रहती थी | गागरोन का किला |
गागरोन पर आक्रमण
इसके बाद 1423 में मांडू के सुल्तान होशंग शाह ने 30 हजार घुड़सवार ,84 हाथी ,अनगिनत पैदल सेना के साथ इस किले कोने घेर लिया था इसके बाद जब अचलदास जी को अपनी सेना के सामने उनकी बड़ी सेना को देखकर अपनी हार निश्चित जान पड़ी तब उन्होंने आत्मसमर्पण के स्थान पर राजपूत परंपरा में वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होना उचित समझा इसके बाद दुश्मन से अपनी रक्षा के लिए हजारों महिलाओं ने जोहर कर लिया था ,हजारों महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था
अचलदास जी के पलंग की कहानी
होशंग शाह जीत के बाद अचलदास की वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने राजा के व्यक्तिगत निवास और अन्य समृद्धियो से कोई छेड़छाड़ नहीं की थी इसके बाद सैकड़ों वर्षों तक यह दुर्गमुसलमानों के पास रहा लेकिन किसी ने भी इसके साथ कभी भी कोई छेड़छाड़ नहीं की थी और किसी ने भी अचलदास के शयनकक्ष में से उसके पलंग को हटाने या नष्ट करने का साहस नहीं किया 1950 तक यह पलंग उसी जगह पर लगा रहा
ठाकुर जसवंत सिंह ने इस पलंग के बारे में रोचक बातें बताई थी जब उनके चाचा मोती सिंह इस किले के किले दार थे तब उन्होंने इस पलंग को देखा था वह कई दिनों तक इस किले में रहे थे उन्होंने बतलाया कि उस समय लोगों की मान्यता थी कि रात को इस पलंग पर राजा अचलदास आकर शयन करते हैं रात को कई लोगों ने इस कक्ष से किसी के हुक्का पीने की आवाज सुनी थी
हर शाम पलंग पर लगे बिस्तर को साफ कर व्यवस्थित करने का काम राज्य की ओर से एक नाई करता था और उसे रोज सुबह पलंग के सराने रखें ₹5 मिलते थे 1 दिन नाई ने पैसे मिलने की बात किसी को कह दी थी उसके बाद उसे रुपए मिलने बंद हो गए थे लेकिन बिस्तरों की व्यवस्था जब तक कोटा रियासत रही तब तक चलती रही कोटा रियासत के राजस्थान में विलय के बाद यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो गई | गागरोन का किला |
गागरोन किले की विशेषता
किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार है एक द्वार नदी की ओर निकलता है और दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर इतिहासकारों के अनुसारइस किले का निर्माण सातवीं सदी से लेकर 14वीं सदी तक चलता रहा पहले इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए किया जाता था किले के अंदर “गणेश पॉल ,नक्कारखाना ,भैरवी पॉल ,किशनपोल सिले खाना” का दरवाजा महत्वपूर्ण दरवाजे हैं इसके अलावा “दीवाने आम, दीवाने खास, जनाना महल मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है
मध्यकाल में गागरोन किले पर प्रसिद्ध सम्राट शेरशाह सूरी एवं अकबर दोनों ने इस पर व्यक्तिगत रूप से आकर विजय प्राप्त की और इसे अपने साम्राज्य में मिला दिया अकबर ने इसे अपने राज्य का मुख्यालय भी बनाया लेकिन अंत में इसे अपने नवरत्नों में से एक बीकानेर के राजपूत पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया था
खींची राजा की वजनी तलवार को एक ए.डी.सी. साहब उड़ा ले गए लेकिन चुराकर ले जाने वाले उसका वजन ना उठा सके तो उसे रास्ते में छोड़ गए अब झालावाड़ के थाने में बंद पड़ा है खींची राजा के बिस्तर और पलंग को लोगों नेगायब कर दिया है तोपों को लोगों ने गला दिया है | गागरोन का किला |
गागरोन का मशहूर तोता
गागरोन के तोते बहुत ही मशहूर होते हैं यह सामान्य तोतो से आकार में दोगुने होते हैं तथा इनका रंग भी अधिक गहरा होता है इनके पंखों पर लाल निशान होते हैं नर तोते के गले के नीचे गहरे काले रंग और ऊपर गहरी लाल रंग की कंठी होती है गागरोन किले की राम बुर्ज में पैदा हुए हिरामन तोते बोलने में बड़े तक्ष होते थे यहां के तोते मनुष्य की बोली की हूबहू नकल कर लेते हैं गुजरात के बहादुर शाह ने 1532 में यह किला मेवाड़ के महाराणा विक्रमादित्य से जीत गया था
बहादुर शाह गागरोन का एक तोता अपने साथ रखता था बाद में जब हुमायूं ने बहादुरशाह पर विजय प्राप्त की तो जीत के सामानों में आदमी की जुबान में बोलने वाला यह तोता उसे सोने के पिंजरे में बंद मिला हुमायूं उस समय मंदसौर में था उस समय एक सेनापति के दगाबाजी पर हुमायूं ने तोते को मारने की बात कही थी बहादुर शाह का सेनापति रूमी खान अपने मालिक को छोड़कर हुमायूं से जा मिला था कहते हैं
जब रूमी खान हुमायूं के शिविर में आए तो उसे देखकर यह तोता ‘गद्दार गद्दार’ चिल्लाने लगा इसके बाद यह सुनकर रूमी खान बहुत ही लज्जित हुआ इसके बाद हुमायूं बहुत ही नाराज हुआ और उन्होंने कहा कि इस तोते की जगह यदि कोई व्यक्ति होता तो मैं उसकी जुबान कटवा देता
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