History

कोणार्क मंदिर का इतिहास

कोणार्क मंदिर का इतिहास, कोणार्क मंदिर का निर्माण, कोणार्क मंदिर की विशेषता, कोणार्क मंदिर में बचे मंडप, कोणार्क मंदिर की पौराणिक कहानी 

कोणार्क मंदिर का इतिहास

कोणार्क मंदिर एक हिंदू मंदिर है इस मंदिर में नीचे के हिस्से में जानवरों की नक्काशी की गई है जो की बहुत ही सुंदर है इस मंदिर में बहुत अधिक मात्रा में नृत्य और संगीत की नक्काशी की गई है यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है इस मंदिर में हम प्राचीन राज्य के सिपाहियों को उनकी पताका के साथ देख सकते हैं हम देख सकते हैं कि आम जनता के साथ राजा अपने दरबार में किस तरह व्यवहार कर रहा है | कोणार्क मंदिर का इतिहास |

 कोणार्क मंदिर का निर्माण

कोणार्क मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में पूरी शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर कोणार्क नाम के  एक टाउन के अंदर स्थित है इस मंदिर को पूर्वी गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम के द्वारा सन 1250  ईस्वी के आसपास बनवाया गया था राजा नरसिंह देव ने यह मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित करके बनवाया था जिसमें सूर्य देवता की एक विशाल और भव्य मूर्ति स्थापित की गई थी

इस मंदिर की संरचना भी सूर्य देव के रथ की तरह की गई है हिंदू धर्म में सूर्य देव को पूरे ब्रम्हांड के जीवन का स्रोत कहा जाता है और माना जाता है कि सूर्य देव आकाश में एक रथ पर सवार होकर यात्रा करते हैं जिसको 7 बेहद ताकतवर घोड़े खींचते हैं इसी काल्पनिक से प्रभावित होकर इस मंदिर का डिजाइन तैयार किया गया है जिसके चलते यह सूर्य देव के रथ जैसा ही नजर आता है दोनों तरफ लगाए गए हैं इस मंदिर के आगे की तरफ पत्थर 12 पहिए बनाए गए हैं साथ ही इस मंदिर के आगे की तरफ घोड़े बनाए गए हैं जिन्हें देखकर लगता हैकि वह मंदिर को खींचकर आगे की तरफ ले जा रहे हो

मंदिर के दोनों तरफ बने हुए सुंदर पहिए प्राचीन भारतीय वास्तुकला को दर्शाते हैं यह 12 पहिए साल के 12 महीनों को दर्शाते हैं और इन पहियों की मदद से समय का सही सही अंदाजा लगाया जा सकता है असल में यह एक ऐसे सन डायल का काम करते हैं जो सिर्फ घंटे ही नहीं बल्कि मिनट और सेकंड तक का समय बताते हैं  उस समय घड़ियां होती थी इसलिए लोग इन  पहियों को देख कर ही समय का पता लगाते थे | कोणार्क मंदिर का इतिहास |

कोणार्क मंदिर की विशेषता

 इस मंदिर का रुख भी इस तरह से है कि सुबह की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है जो दिखने में वाकई अद्भुत दृश्य नजर आता है इस मंदिर की दीवारों पर नक्काशी और मूर्तिकला का भी बेहतरीन काम देखने को मिलता है और यहां बनाए गए हर एक चित्र का अपना एक अलग अर्थ है इसमें एक चित्र में ऊपर की तरफ शेर और जिसका अर्थ है कि अपने अहंकार पर काबू पाकर ही कोई मनुष्य सही मायनों में इंसान बन सकता है विशालकाय चुंबक का रहस्य

इस मंदिर में बहुत सी चीजें हैं जो इस मंदिर को इतना ज्यादा खास  बनाती है लेकिन उन सभी में सबसे ज्यादा मशहूर वह विशालकाय चुंबक है जो कभी इस मंदिर के शीर्ष पर लगी होती थी इस मंदिर के अंदर लोडस्टोन नाम का एक 52 टन वजनी पत्थर लगाया गया था जो कि एक प्राकृतिक चुंबक के रूप में जाना जाता था इस विशाल चुंबक की वजह से मंदिर के अंदर स्थापित की भगवान सूर्य देव की मूर्ति हमेशा हवा में  लटकती रहती थी और मूर्ति का इस तरह हवा में लटके रहना अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं था

अब इस चुंबक के साथ क्या हुआ और आज के समय में यह कहां पर है इन सवालों को लेकर अलग-अलग लोग अलग-अलग कहानियां बताते हैं शुरुआत में यह  मंदिर समुद्र के किनारे पर हुआ करता था लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे समुद्र का पानी कम होता गया और यह मंदिर किनारे से कई किलोमीटर दूर हो गया  इस मंदिर में लगाया गया चुंबकीय लोड स्टोन इतना स्ट्रांग था उसकी वजह से समुद्र में गुजरने वाले पानी के जहाजों का कंपास तक काम करना बंद कर देता था और वह जहाज यहां से गुजरती हुई अपनी दिशा भटक जाते थे पुर्तगाली नाविक अपने जहाजों को बचाने के लिए इस मैग्नेट और भगवान सूर्य देव की प्रतिमा को मंदिर से निकाल कर अपने साथ ले गए थे और इस मंदिर से मैग्नेट का निकलना ही इसके गिरने की असल वजह बना था

इस मंदिर के स्ट्रक्चर को मजबूती देने और इसे खड़ा रखने में उस मैग्नेट का बहुत बड़ा सहारा था क्योंकि इस मंदिर को बनाने में जो पत्थर इस्तेमाल किए गए थे उन पत्थरों के ब्लॉक के बीच में लोहे की प्लेट लगाई गई थी ताकि मैग्नेट की पावर से सभी पत्थर अपनी जगह जमे रहे ऐसे में जब इस मंदिर के ऊपरी हिस्से से उस मैगनेट को निकाल दिया गया तो मंदिर का पूरा स्ट्रक्चर बेहद कमजोर हो गया जो समय के साथ-साथ धीरे-धीरे नष्ट होता चला गया इसके अलावा कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि इस मंदिर को पुर्तगाली नाविकों ने नहीं बल्कि भारत में घुसे विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट किया था और साथ ही इस मंदिर में स्थापित की गई मूर्तियों में से एक मूर्ति उड़ीसा के पुरी टेंपल मेंआज भी स्थित है और एक मूर्ति दिल्ली के “नेशनल म्यूजियम” में रखी हुई है | कोणार्क मंदिर का इतिहास |

कोणार्क मंदिर में बचे मंडप

कोणार्क मंदिर बेहद अद्भुत और सुंदर नजर आता है लेकिन मंदिर का जो हिस्सा हम लोग आज देखते हैं वह असल में पूरा मंदिर नहीं है इस मंदिर में कुल 3 मंडप हुआ करते थे जिसमें दो मंडप कई सदियों पहले पूरी तरह नष्ट हो चुके थे और आज इसका सिर्फ एक मंडप ही बाकी रह गया है अब इस मंदिर के बाकी हिस्सों के नष्ट होने के पीछे भी लोग अलग-अलग कारण बताते हैं कुछ लोग कहते हैं कि  आक्रमणकारियों के द्वारा किए गए हमलों की वजह से यह मंडप नष्ट हुए थे यह मंदिर आज हमें जितना नजर आता है उससे कहीं ज्यादा ऊंचा हुआ करता था यहां तक कि समुद्र में सफर करने वाले लोग इस मंदिर के शिखर को अपने जहाजों से ही देख लिया करते थे | कोणार्क मंदिर का इतिहास |

कोणार्क मंदिर की पौराणिक कहानी

 प्राचीन समय में कुणाल एक मशहूर व समृद्ध शहर हुआ करता था लेकिन 16वीं शताब्दी के दौरान जब इस मंदिर से सूर्य देव की मूर्ति हटा दी गई तब इस मंदिर में पूजा होना पूरी तरह बंद हो गया जिसके चलते तीर्थ यात्रियों ने भी इस मंदिर में आना बंद कर दिया और देखते ही देखते यह नगर पूरी तरह से विरान होकर जंगल के रूप में बदल गया फिर कई सदियों बाद जब इस मंदिर को खोजा गया तब इसकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी और इसके कई हिस्से पूरी तरह नष्ट हो चुके थे आज के समय की बात करें तो इस मंदिर का सिर्फ एक ही हिस्सा बाकी रह गया है जिसे इस मंदिर का प्रधान मंडप माना जाता है

इस मंडप के अंदर जाने की सभी रास्ते आज से 118 साल पहले पूरी तरह सील कर दिए गए थे जो आज भी उसी तरह बंद पड़े हुए हैं इतना समय बीत जाने के बाद इस मंदिर का दरवाजा आज तक खुला क्यों नहीं गया यह बात इस मंदिर को और अधिक रहस्यमई बनाती है इस दरवाजे के बंद होने को लेकर लोग तरह तरह के अंधविश्वासी बातें भी करते हैं हालांकि इसको बंद करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि 19वीं शताब्दी का अंत होते-होते इस मंदिर का आखिरी मंडप भी कमजोर होकर गिरने की कगार पर पहुंच गया था और इसे गिरने से बचाने के लिए साल 1903 में उस समय के गवर्नर ने इस मंदिर के अंदर मिटटी डलवा कर सभी दरवाजों को सील करवा दिया था

इसके बाद ना जाने कितनी बार इस मंदिर के मुख्य दरवाजे को खोलने की बात की गई लेकिन हर बार अलग-अलग वजहों से इस दरवाजे खोलने को टाला जाता रहा यहां तक कि इसी तरह आज 118 साल बीत चुके हैं लेकिन अभी भी यह दरवाजा बंद पड़ा हुआ है ऐसे में लोगों के मन में सवाल आता है कि क्या इस दरवाजे में मंदिर को गिरने से बचाने के लिए बंद किया गया था या फिर इसके बंद किए जाने के पीछे कोई और भी बड़ा रहस्य छिपा हुआ है | कोणार्क मंदिर का इतिहास |

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