History

रानी सती मंदिर का इतिहास

रानी सती मंदिर का इतिहास, रानी सती की कथा, रानी सती की शिक्षा , रानी सती का चमत्कार , रानी सती का विवाह, रानी सती का नवाबों के साथ युद्ध, रानी सती की शक्ति

रानी सती मंदिर का इतिहास 

रानी सती का मंदिर राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित है और यह झुंझुनू शहर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है बाहर से देखने में यह मंदिर किसी राज महल सा दिखाई देता है पूरा मंदिर संगमरमर से निर्मित है और इसकी बाहरी दीवारों पर शानदार रंगीन चित्रकारी की गई है इस मंदिर में दक्षिण भारतीय शैली की एक झलक दिखाई देती यह मंदिर बहुत ही बड़े परिसर में फैला हुआ है और बहुत ही खूबसूरत मंदिर है इस मंदिर देशभर से श्रद्धालु प्रतिवर्ष दर्शन करने के लिए आते हैं

यह मंदिर सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है भक्त यहां प्रार्थना करने के साथ-साथ “भाद्रपद माह” की अमावस्या पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में भी हिस्सा लेते हैं रानी सती का मंदिर लगभग 400 साल पुराना है यह मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में  एक है झुंझुनू वाली नारायणी दादी का 750 वर्ष पूर्व इस धरा पर अवतरण हुआ था बताते हैं कि पूर्व जन्म में नारायणी देवी द्वापर युग के महाभारत में श्री कृष्ण भगवान के मित्र अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा थी जब अभिमन्यु महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए तब उत्तरा ने  श्री कृष्ण से अपने पति के साथ जाने की इजाजत मांगी तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में पल रहा पुत्र कलयुग का राजा परीक्षित होगा | रानी सती मंदिर का इतिहास |

रानी सती की कथा 

माता रानी सती का नाम मां नारायणी है नारायणी का जन्म हरियाणा के अग्रवाल परिवार के बेहद संपन्न धनकुबेर सेठ श्री गुरुस्माल जी गोयल के घर में सावंत 1338 कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन शुभ मंगलवार रात्रि 12:00 बजे के बाद हरियाणा के प्राचीन राजधानी महम नगर में हुआ था सेठ  गुरुस्माल महाराजा अग्रसेन जी के सुपुत्र श्री गोंदा लाल जी के वंशज थे और इनका गोत्र गोयल था इनके पिता जी इतने प्रसिद्ध थे कि उस समय उनकी मान्यता और सम्मान दिल्ली के राज दरबार में भी था तो सेठ  गुरुस्माल जी के घर एक बड़ी ही प्यारी कन्या ने जन्म लिया जिसके चेहरे पर एक अजीब सा तेज था सेठ जी का घर खुशियों से भर गया बड़ी खुशियां मनाई गई सभी ने प्यार से इस कन्या का नाम नारायणी बाई रखा | रानी सती मंदिर का इतिहास |

रानी सती की शिक्षा 

बचपन से ही यह कन्या बड़ी विचित्र थी यह साधारण बच्चों वाले खेल नहीं खेला करती थी बचपन से ही यह धार्मिक खेल अपनी सखियों के साथ खेला करती थी धार्मिक कथाओं में यह कन्या विशेष रुचि लेती थी नारायणी समय के साथ धीरे-धीरे बड़ी होने लगी बड़ी होने पर उनके पिता ने नारायणी को धार्मिक शिक्षा, अस्त्र-शस्त्र, घुड़सवारी आदि की शिक्षा भी दिलाई और नारायणी ने इन सब चीजों में गजब की महारत और प्रवीणता हासिल कर ली थी  उस समय हरियाणा में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में भी नारायणी के मुकाबले दूसरा कोई निशानेबाज नहीं था | रानी सती मंदिर का इतिहास |

रानी सती का चमत्कार 

नारायणी बचपन से ही चमत्कारी थी वह बचपन से ही अपने चमत्कार दिखाने लगी थी उस समय नगर में बच्चे खाने वाली एक औरत मेमनगर में आया करती थी जिसे डाकन भी कह सकते हैं वह डाकन नगर के कई बच्चों को मारकर खा चुकी थी बाल्यावस्था में ही नारायणी की सुंदरता के चर्चे पूरे नगर में थे नारायणी की ख्याति सुनकर एक दिन उसने सोचा आज इसे ही भोजन बनाया जाए लेकिन नारायणी का तेज देखकर डाकिन नारायणी पर हमला नहीं कर पाई इसके बाद वह राक्षसी नारायणी  की सहेली को उठाकर ले जाने लगी नारायणी ने उनका पीछा किया और नारायणी को अपनी ओर आता देख कर वह राक्षसी बेहोश होकर गिर पड़ी

उसके पास पहुंचकर नारायणी ने तुरंत अपनी सहेली को छुड़ाया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी वह राक्षसी उनकी सहेली को मार चुकी थी  नारायणी ने अपने चमत्कार से उसे फिर से जीवित कर दिया नारायणी का यह चमत्कार देखकरवह राक्षसी डर गई  और उसने हाथ जोड़कर नारायणी से मांगी और प्रतिज्ञा की कि आगे से कभी किसी बच्चे को नहीं खाया करेगी नारायणी ने उसको माफ कर दिया नारायणी ने इसी तरह से और भी कई सारे चमत्कार बचपन में ही दिखा दिए थे | रानी सती मंदिर का इतिहास |

रानी सती का विवाह

 नारायणी समय के साथ-साथ बड़ी होने लगी बड़ी हुई तो उनका विवाह अग्रवाल कुल शिरोमणि हिसार नगर के मुख्य दीवान धन्य सेठ श्री जालानदास जी के सुपुत्र तनधनदास जी के साथ 1341 मंगलवार के दिन बड़ी ही धूमधाम के साथ किया गया नारायणी के पिता ने जी भरकर उसे दहेज दिया दहेज में हाथी, घोड़े ,ऊंट, सैकड़ों छकड़े भरकर समान इतना सम्मान दिया कि जिन्हें तोला जाना भी संभव नहीं था लेकिन इन सब में एक खास चीज थी और वह सबसे विशेष वस्तु श्याम करण घोड़ी उस काल में उत्तर भारत में केवल एक मात्र श्याम करण घोड़ी उन्हीं के पास थी जो उन्होंने नारायणी के दहेज में दे दी 

नारायणी का विवाह बंसल गोत्र में सेठ जी श्री जालान दास जी के घर में श्री तनधन दास जी के साथ बड़ी ही धूमधाम के साथ हुआ तनधन दास जी के छोटे भाई भी थे जिनका नाम कमल राम था उस समय हिसार का नवाबी राज्य आजकल के हरियाणा प्रदेश से बड़ा हुआ करता था श्री जालान दास जी हरियाणा प्रदेश हिसार के मुख्य दीवान थे श्री जालान दास जी के न्याय प्रियता और कार्य की धाक दूर-दूर तक अन्य राज्यों में भी थी वह बड़े ही चतुर और कर्मठ थे

घोड़ी छीनने की साजिश

 विवाह के पश्चात तनधन दास जी संध्या काल के समय अपनी ससुराल वाली घोड़ी पर शेयर करने के लिए हिसार की गलियों में घूमा करते थे 1 दिन की बात है नवाब के पुत्र यानी कि  शहजादे को उसके दोस्तों ने भड़का दिया कि जैसे घोड़ी दीवान जालान के लड़के के पास है ऐसी तेरे राज्य में किसी और के पास नहीं है और यह घोड़ी तो तेरे पास होनी चाहिए शहजादा तुरंत नवाब साहब के पास गया और बोला दीवान जालान दास के पास जो घोड़ी है वह मुझे चाहिए शहजादा ज़िद करने लगा जब हट बढ़ने लगी तो नवाब ने दीवान साहब को बुलाया और उनसे घोड़ी की मांग की गई जालानदास जी ने कहा  यह मेरी नहीं है यह मेरे लड़के को ससुराल से मिली है

1 दिन नवाब ने घोड़ी छीनने का प्रयास किया संघर्ष हुआ बहुत से सैनिक सेनापति सहित मारे गए लेकिन वह घोड़ी छीनने में असफल रहे हैं यह देखकर शहजादा और निराश हो गया दोस्तों की बातों में आकर दीवान जी की हवेली में घोड़ी चुराने की योजना बनाई गई आधी रात के समय चोरी की नियत से शहजादा दीवान जी के घर में जा घुसा वह घोड़ी बड़ी ही समझदार थी अपने पास एक नया आदमी देख कर घड़ी जोर-जोर से चीखने लगी घोड़ी आवाज सुनकर तनधन दास अपना भाला लेकर उस ओर उनके एक वार में ही शहजादा मारा गया | रानी सती मंदिर का इतिहास |

झुंझुनू स्थानांतरण 

दीवान जी ने जब देखा कि शहजादा मारा गया है तो उन्होंने तुरंत हिसार छोड़ने का निर्णय लिया और उन्होंने तुरंत हिसार छोड़कर झुंझुनू नवाब के पास जाने का निर्णय लिया क्योंकि हिसार और झुंझुनू के नवाबों में आपस में बेहद लड़ाई और शत्रुता थी रातोंरात दीवान जी हिसार से परिवार सहित निकल पड़े उधर सुबह होने पर हिसार के नवाब ने देखा कि शहजादा महल में नहीं है तो चारों और शहजादे की तलाश की गई और अंत में दीवान जी की हवेली से शहजादे की लाश मिली नवाब के महल में कोहराम मच गया नवाब ने सेना को तुरंत आदेश दिया दीवान को पकड़ कर लेकर आए इसके बाद नवाब की सेना चारों और निकल पड़ी लेकिन तब तक दीवान सह परिवार झुंझुनू राज्य की सीमा में प्रवेश कर चुके थे हिसार नवाब की सेना की ताकत झुंझुनू सेना के सामने कमजोर थी तो उन्होंने झुंझुनू की सीमा में जाना उचित नहीं समझा और सेना हिसार वापस लौट आई इसके बाद उनका परिवार झुंझुनू में रहने लगा | रानी सती मंदिर का इतिहास |

रानी सती का नवाबों के साथ युद्ध

 1342  में नारायणी देवी के पिता ने नारायणी देवी का गौना कर उन्हें विदा किया अपनी पत्नी देवी नारायणी को लेकर तनधन दास झुंझुनू की ओर निकल पड़े रास्ते में दोपहर का भोजन इत्यादि किया और फिर आगे बढ़ने लगे इसके बाद भिवानी नगर से लगभग चार पांच मील दूर देवसर की पड़ी के पास पहुंचे ही थे कि हिसार नवाब की फौजों ने तनधन दास जी पर भयंकर हमला कर दिया श्री तनधनदास जी के दल में संख्या काफी कम थी लेकिन फिर भी उन्होंने वीरता से डटकर फौजों के साथ ही युद्ध शुरू कर दिया नवाबों की सेना तनधन दास जी के दल की मार को सहन न कर सके और अस्त-व्यस्त होकर भागने लगे नवाबी सैनिकों के भाग जाने पर सिपल सार ने छुपकर पीछे से आकर धोखे से तनधन पर भयंकर वार कर दिया और फिर मरते मरते भी वीर तनधन दास जी ने उस सिपल का सिर अपनी सिरोही तलवार से एक ही बार में सिर काटकर अलग कर दिया सभी सैनिक मारे जा चुके थे

चारों और खून की नदी बहने लगी हो चारों और शांत वातावरण हो गया पर्दे में बैठी नई नवेली बहू नारायण ने सोचा कि आखिर क्या हुआ है इतना सन्नाटा कैसे छा गया यह जानने के लिए उन्होंने डोली का पर्दा हटाया कि आखिर बात क्या है पूरी घटना से बेखबर नारायणी ने जैसे ही पर्दा हटाया और जो कुछ देखा वह अचंभित रह गई रथ के सामने उनके प्राण प्रिय तनधन दास जी का शव पड़ा हुआ था थोड़े समय बाद ही वीर तनधन दास जी की मृत्यु का समाचार जानकारनवाबी फौज उसी और तेजी से बढ़ने लगी

तब वीरांगना रानी ने यह सब देखा कि हिसार नवाब की सेना फिर से आ रही है तो उन्होंने तुरंत निर्णय लिया और क्रोध में भरकर अपने पति की तलवार हाथ में ले ली चंडी बनकर घोड़ी पर सवार हो गई औरवह नवाबी सेना पर टूट पड़ी श्री नारायणी ने कुछ ही समय में अधिकांश नवाबी सैनिकों को मार डाला और युद्ध को समाप्त कर दिया फिर नारायणी जी ने कहा कोई है,  नारायणी की आवाज सुनकर घोड़ी का सेवक राणा घायल अवस्था में गिरता पड़ता नारायणी के पास आया और बोला क्या आज्ञा है | रानी सती मंदिर का इतिहास |

नारायणी देवी का सती होना 

 नारायणी  ने कहा मैं इसी समय पहाड़ी के नीचे सती होंगी जल्दी से चिता बनाओ संध्या होने वाली है  नारायणी की आज्ञा पाकर सेवक मैं आसपास से लकड़ियां इकट्ठी की और चिता बनाई इसके बाद  श्री नारायणी  जी अपने पति का शव लेकर बैठ गई जैसे ही नारायणी आंखें बंद की अपने आप ही अग्नि प्रकट होने लगी इसी बीच गांव से लोग इकट्ठे हो गए अग्नि में चावल घी डालने लगे और चारों तरफ जय जयकार होने लगी थोड़े समय बाद नारायणी चिता में से एक देवी के रूप में प्रकट हुई और मधुर वाणी में बोली राणा जी मेरी चिता 3 दिन में ठंडी हो जाएगी तुम भस्म को इकट्ठा कर मेरी चुनरी में बांधकर घोड़ी पर रख देना यह घोड़ी जहां पर जाकर रुकेगी वहीं पर मैं अपने पति के साथ निवास करूंगी और जन जन का कल्याण करूंगी घोड़ी उत्तर दिशा की ओर झुंझुनू के मार्ग पर चल पड़ी

घोड़ी चलते-चलते झुंझुनू के बीड गोचर भूमि को पार करके झुंझुनू नगर के उत्तर दिशा में आकर रुक गई अब राणा ने अनेक प्रयत्न किए मगर घोड़ी  वह वहीं पर रुक गई राणा ने घोड़ी को वहीं पर डटा देखकर जाटी वृक्ष से उसे बांधकर दीवान जी श्री जालान दास जी के घर पर जाकर मार्ग में हुए सारी घटना के समाचार सुनाएं समाचार सुनते ही सेठ जी का परिवार जोर जोर से रोने लगा घर में कोहराम मच गया बहुत समझाने पर सभी घोड़ी के पास आए और वहां एक चबूतरा बनाकर भस्मी को स्थापित करके पूजन किया गया | रानी सती मंदिर का इतिहास |

रानी सती की शक्ति 

 वहां कुछ लोगों को सती होने पर शंका होने लगी कि नहीं यहां कोई सती नहीं हुआ है तो तभी उसी समय चबूतरे पर चढ़े हुए पूजा के सामान में से तेज आग की चिंगारी निकलने लगी और देखते ही देखते चबूतरे ने एक बड़ी चिंता का रूप धारण कर लिया यह देख कर जन-जन  जय जयकार करता हुआ शमशान की ओर उमड़ पड़ा चबूतरे पर 13 दिन अग्नि चिता से जलती रही बुझाने पर भी वह चिता बुझती नहीं थी अंत में बहुत प्रार्थना करने पर क्षमा मांगने पर चबूतरे में से मधुर वाणी सुनाई दी, जल चढ़ाओ इसके बाद पात्रों में जल भरकर चढ़ाने लगे वह अग्नि शांत हुई पूजा दान इत्यादि शुरू हो गया  उसी समय एक बड़ा ही विचित्र चमत्कार हुआ एक भयानक विस्फोट के साथ ही चबूतरे के टुकड़े टुकड़े बिखर गए सभी ने देखा चबूतरे वाली भूमि फट गई

घोड़ी और जो भी समान राणा साथ में लेकर आए थे जो भी समान चबूतरे पर चढ़ाया गया था, वह सारा सामान भूमि में समा गया उसी समय तीसरा चमत्कार हुआ जैसे ही वह सामान भूमि में समा गया वह चबूतरा फिर से पहले जैसा हो गया  आज जो विशाल मंदिर बना हुआ है इसी चबूतरे पर  मंदिर तैयार किया गया है जो आज झुंझुनू रानी सती मां दादी मां का मंदिर कहलाता है यह बड़ा ही चमत्कारी स्थान है इस स्थान पर जब भी कोई मुराद की जाती है कभी भी खाली नहीं जाती है रानी सती मां का चमत्कार आज कलयुग में सभी को देखने को मिल रहा है यही कारण है कि रानी सती मां के भक्त लगातार बढ़ते जा रहे हैं | रानी सती मंदिर का इतिहास |

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