History

अजंता की गुफाओं का इतिहास

अजंता की गुफाओं का इतिहास, अजंता गुफाओं की संख्या, अजंता गुफा के संप्रदाय, अजंता गुफाओं की विशेषता, अजंता की गुफाओं में नारी का स्थान,

अजंता की गुफाएं क्यों प्रसिद्ध है, अजंता की गुफाएं किस राज्य में है, अजंता की गुफाएं कहां है

अजंता की गुफाओं का इतिहास

 अजंता की गुफाएं विश्व प्रसिद्ध आकर्षण का केंद्र है अजंता के मंदिरों में बौद्ध धर्म से संबंधित बहुत से चित्र और शिल्प कला देखने को मिलते हैं प्राकृतिक सुंदरता से गिरी हुई यह गुफाएं सभी पर्यटकों का मन मोह लेती हैअजंता की गुफाएं  महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले से करीब 105 किलोमीटर दूर उत्तर में सहयाद्री की पहाड़ियों में घोड़े की नाल के आकार में बनी हुई है इन 30 गुफाओं  में पांच प्रार्थना बोन और 25 बौद्ध मठ है अजंता गुफाओं की खोज आर्मी के ऑफिसर जॉन स्मिथ और उनकी टीम ने वर्ष 1819 में की थी वह शिकार करने जंगल में आए थे

तभी उन्होंने एक कतार में 29 गुफाओं की चेन देखी इन गुफाओं का अकाल घोड़े की नाल के समान दिखाई देता है इनमें 200 ईसा पूर्व से लेकर 650 ईसवी तक के बौद्ध धर्म की चित्रकारी देखने को मिलती है अजंता की गुफाओं मैं सुंदर राजकुमारी हूं वह अप्सराओं के बहुत सुंदर  अलग-अलग मुद्रा वाले चित्र बने हुए अजंता की गुफाओं को सन 1983 मे यूनेस्को की विश्व धरोहर साइड में घोषित कर दी गई है

 अजंता के समीप से ही बागोड़ा नाम की एक नदी भी बहती है जो कि एक जलप्रपात भी बनाती है इस जलप्रपात को  “सप्त कुंड वॉटरफॉल’ के नाम से भी जाना जाता है बौद्ध ग्रंथ महामायूरी में अजीतजय नाम के एक गांव का उल्लेख मिलता है जो बाद में  अजंता नाम से लोकप्रिय हो गया अजंता की गुफाएं अर्धचंद्राकार या घोड़े की नाल के आकार में पूर्व से पश्चिम की ओर फैली हुई है

इन गुफाओं के निर्माण में कई राज सत्ताओ का योगदान रहा है मौर्य काल से ही पहाड़ों को काटकर गुफा बनाने की परंपरा प्रारंभ हो गई थी किंतु सातवाहन काल आते-आते इसमें अत्यधिक उन्नति हुई गुफाओं को ऊपर से नीचे की ओर बनाया जाता था पहले जाने वाली जगह बनाई जाती थी, फिर छत ,खंभे, व दीवारें और फिर मुख्य द्वार बनाया जाता था प्रवेश द्वार को कीर्ति मुख कहा जाता था गुफा के सम्मुख चट्टान काटकर जो स्तंभ तैयार किए गए उन्हें कीर्ति स्तंभ कहा गया | अजंता की गुफाओं का इतिहास |

अजंता गुफाओं की संख्या 

अजंता में पर्वतों को काटकर बनाई गई कुल गुफाओं की संख्या 30 है पहले केवल 29 गुफा ही ज्ञात थी बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा एक नई गुफा की खोज की गई जिसे गुफा संख्या 15 ए -नाम दिया गया है अजंता की गुफाओं को दो भागों में बांटा गया है “चैत्य और बिहार” अजंता की गुफाओं में से पांच चैत्य तथा शेष बिहार है चैत्य का शाब्दिक अर्थ – चिता संबंधी मृत्यु के के पश्चात बचे हुए अवशेषों को भूमि में दबाकर उनके ऊपर जो समाधिया बनाई गई

उन्हीं को प्रारंभ में चैत्य कहा गया इन समाधियो में महापुरुषों के धातु अवशेष सुरक्षित थे इसके बाद चैत्य उपासना के स्थल  बन गए थे इन समाधिओं का आरंभ का भाग आयताकार वह अंत का भाग अर्धवृत्त आकार होता था इसकी आकृति घोड़े के नाल जैसी होती थी अंतिम भाग में ठोस अंडा आकार स्तूप बनाया जाता था जिसकी पूजा की जाती थी  चैत्य उपासना बौद्ध धर्म का अभिन्न अंग है चैत्य के समीप ही भिक्षुओं के रहने के लिए जो आवास बनाए जाते थे उन्हें विहार  कहा गया इस तरह चैत्य प्रार्थना स्थल होते थे जबकि बिहार भिक्षुओं के रहने के लिए बने मठ होते थे 

अजंता गुफा के संप्रदाय 

अजंता के प्रारंभ में बनी गुफाएं बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा से वह बाद की महायान से संबंधित है हीनयान और महायान बौद्ध धर्म के दो संप्रदाय है जहां एक और हीनयान में महात्मा बुद्ध को एक महापुरुष माना गया है वहीं दूसरी और महायान में उन्हें देवता मानकर उनकी मूर्ति की पूजा की जाती है हीनयान की साधना पद्धति अत्यंत कठोर और भिक्षु जीवन की हिमाती है वही महायान के सिद्धांत सरल व सर्वसाधारण के लिए सुलभ है

अजंता की गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारों ने अत्यंत सुंदर चित्र बनाएं है कुल गुफाओं में से वर्तमान में केवल 6 गुफाओं के ही भित्ति चित्र शेष बचे हुए हैं दुर्भाग्यवश बाकी सब नष्ट हो  चुके है भित्ति चित्र अर्थात म्यूरल पेंटिंग को कहते हैं जो किसी ठोस संरचना दीवार इत्यादि पर बनाए जाते हैं अजंता में भित्ति चित्रों को बनाने के लिए फ्रेशको तथा टेंपरा दोनों ही शैलियों का प्रयोग किया गया है फ्रेस्को शैली में गिले प्लास्टर पर चित्र बनाए गए हैं  तथा चित्रकारी विश्व तरंगों द्वारा की गई वही टेंपरा शैली में सूखे प्लास्टर पर चित्र बनाएं गए हैं टेंपल शैली की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें किसी भी प्रकार के बाइंडिंग ,मटेरियल, अंडे की जर्दी और जलीय रंगों का प्रयोग किया जाता है 

16 गुफा में ही उन चार प्रसिद्ध दृश्य को दर्शाया गया है जिन्हें देखकर बुद्ध के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ था यह दृश्य थे एक वृद्ध, रोगी, एक शव ,सन्यासी को दिखाया गया है इस गुफा में देखना महात्म बुद्ध के गृह त्याग को दर्शाया गया है जिसमें वह अपने पुत्र पत्नी तथा परिचालकों को छोड़कर जाते हुए दिखाए गए इस गुफा के अन्य क्षेत्रों में बुध का विद्या अभ्यास असित मुनि से वार्तालाप आदि को चित्रित किया गया है | अजंता की गुफाओं का इतिहास |

अजंता गुफाओं की विशेषता 

अजंता की गुफाओं में 9 और 10 नंबर की गुफा बहुत पुरानी है उनको बनाने में 400 साल का लंबा समय लगा ईसा पूर्व 200 से लेकर ईसा के 200 शताब्दी तक गुफा नंबर 10 के खंभे 350 वीं शताब्दी में ही शायद जोड़े गए इससे भी देर से गुफा नंबर 4,6 ,11 ,15, 16 ,17और 350 और 500 शताब्दियों के बीच जोड़ी गई है अजंता की गुफाओं में बने हुए चित्र भारतीय चित्रकला की महान परंपरा को दर्शाते हैं 8 ,12,13 वीं  गुफा के चित्र अपना अस्तित्व लगभग हो चुके हैं

अजंता की गुफा संख्या 17 वी में सबसे अधिक चित्र बने हुए हैं अजंता में बने चित्रों को इतनी कुशलतापूर्वक बनाया गया है कि वे सजीव प्रतीत होते हैं अजंता के चित्रों में जीवन के विभिन्न पहलुओं के दर्शन भी होते हैं इन चित्र कृतियों की पृष्ठभूमि में जीवन के धार्मिक और दार्शनिक पहलू विद्यमान है इन चित्रों के माध्यम से जीवन के सभी रूपों को दर्शाया गया है और जीवन की एकता का संदेश दिया गया है कलाकारों ने जीवन के सभी रूपों को समान महत्व दिया है और चित्रकला के सभी रूप मिलकर वास्तविक जीवन की एक भरपूर तस्वीर पेश करते हैं

इसके बावजूद यहां के चित्रों में विभिन्न विषयों से संबंधित चित्र मिलते हैं इनमें शाही दरबारों की शान शौकत प्रेम की क्रीडा, भोज, गान, नृत्य के आनंद, भोग विलास की मानव निर्मित वस्तुएं, इमारतें, वस्त्र और आभूषण दिखाए गए हैं कुछ चित्रों में हरियाली और फूल पशु-पक्षी आदि प्राकृतिक वस्तुओं को भी दर्शाया गया है इन चित्रों में प्रत्येक वस्तु और आकृति सुंदरता से बनाई गई है | अजंता की गुफाओं का इतिहास |

अजंता की गुफाओं में नारी का स्थान 

अजंता के चित्रों में शांति, करुणा ,उल्लास ,स्थिरता, सौहार्द्र ,भक्ति ,विनय और विकलत आदि भावनाओं को उत्कृष्टता से दर्शाया गया है वस्तुतः भाव प्रवणता ही अजंता चित्रकला की आत्मा है अजंता के चित्रों में रेखाएं संतुलित हैं जिनसे चित्रकारी की कुशलता प्रदर्शित होती है अजंता के चित्रों में रंग का संयोजन अति प्राकृतिक ढंग से किया गया है इन चित्रों में गेरुआ ,रामराज, हरा ,काजल, नीला और चूने के रंग का विशेष प्रयोग हुआ है

अजंता के चित्रों में नारी को आदर्श रूप में दर्शाया गया है इनमें भारतीय परंपरा के अनुसार नारी को ऊंचा स्थान दिया गया है अजंता के चित्रों में जीवन के भौतिक एवं आध्यात्मिक पक्षों की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है अजंता चित्रों की सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उनमें गांव की सामान्य एवं शांति जीवन के साथ साथ नगर के कोलाहल पूर्ण जीवन का भी चित्र बड़े जीवित ढंग से किया गया है

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