History

बाबा जिंदा नाथ धाम का 300 साल पुराना है इतिहास

बाबा जिंदा नाथ धाम का इतिहास ,बाबा जिंदा नाथ का जन्म कब और कहां हुआ था, बाबा जिंदा नाथ धाम कहां स्थित है, बाबा जिंदा नाथ ने कब समाधि ली थी, बाबा जिंदा नाथ का मेला कब लगता है

बाबा जिंदा नाथ धाम का इतिहास 

जिला सोनीपत के हल्का गन्नौर में गांव मोई स्थित बाबा जिंदा के धाम पर पूर्णिमा के दिन मेले में काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं दो दिवसीय मेले में पहले दिन देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं ने बाबा जिंदा नाथ की समाधि पर माथा टेक कर मन्नत मांगी जिंदा बाबा धाम के मठाधीश महंत बाबा बालक नाथ जी महाराज हैं

इस धाम पर साल में दो बार विशाल मेले का आयोजन होता है जिसमें प्रदेशभर के अलावा यूपी पंजाब समेत अन्य राज्यों से भी काफी श्रद्धालु आते हैं समाधि पर आने वाले भगत जैसे ही मोई में डेरे के मुख्य द्वार पर पहुंचते हैं, इस दिव्य दरबार में प्रवेश से पहले मठ की धूल माथे पर लगाते हुए आगे बढ़ते हैं इस धाम पर आने वाले भक्त जोत लगाते हैं और मन्नत मांगते हैं जिन श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होती है वह गुड़ की भेली का प्रसाद चढ़ाकर महंत बाबा बालक नाथ जी महाराज से आशीर्वाद लेते हैं धान में लगने वाले मेले में सुरक्षा व्यवस्था का उचित प्रबंध किया जाता है जसपाल के जिंदा समाधि में समाने के कारण उनका नाम जिंदा बाबा पड़ा था बाबा जिंदा नाथ धाम का इतिहास 

बाबा जिंदा नाथ का जन्म 

आज से लगभग 300 वर्ष पहले गांव मोई  में राणा गोकुल में चैत्र सुदी चौदस के दिन एक बच्चे ने जन्म लिया जिसका नाम “जसपाल” रखा गया यह बालक एक दिन महान पुरुष होगा इसकी भविष्यवाणी ब्राह्मण ने पहले ही कर दी थी जसपाल के पिताजी एक किसान थे खेती और पशुपालन का इनका मुख्य व्यवसाय था इसलिए यह पशुओं को चराने के लिए दूर जंगलों में जाया करते थे पशुओं को चराना जसपाल का प्रतिदिन का नियम बना हुआ था जसपाल की बचपन से ही धार्मिक कामों में रुचि थी वह साधुओं की तरह समाधि लगाकर भक्ति किया करते थे

जसपाल को ऐसा करता देखकर उनके अन्य साथी हैरान होते थे 1 दिन जसपाल पशुओं को रोज की तरह चराने के लिए जंगल में जाते हैं और शाम को घर वापस आने से पहले बालक जसपाल को बाबा मस्तनाथ मिलते हैं इसके बाद मस्तनाथ जी बालक जसपाल को खीर खाने की इच्छा व्यक्त करते हैं और जसपाल उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए घर से खीर बनवा कर लाने का वचन देते हैं इसके बाद मस्तनाथ जी उन्हें घर से खीर लाने के लिए मना कर देते हैं और कहते हैं यदि तुम सच्चे भक्त हो तो यहीं पर खीर तैयार करो इसके बाद जसपाल जी दूध निकालने के लिए भैंस की तरफ जाते हैं परंतु वह भैंस तो दूध ही नहीं देती थी इसके बाद बालक जसपाल को एक ऐसी भैंस दिखाई देती है जिसने कभी बच्चे ही पैदा नहीं किए थे

इसके बाद बाबा मस्तनाथ जसपाल को उस भैंस का दूध निकालने के लिए इशारा करते हैं इसके बाद जसपाल जी सोचते हैं कि जिस भैंस ने कभी बच्चे ही पैदा नहीं किए तो वह दूध कैसे दे सकती है इसके बाद बाबा मस्तनाथ ने अपना कमंडल जसपाल को देते हुए भैंस का दूध निकालने के लिए कहा इसके बाद बाबा के चमत्कार से वह भैंस दूध दे देती है इसके बाद जसपाल जी बाबा मस्तनाथ को दूध देने लगे तो बाबा ने उन्हें खीर बनाने के लिए कहा तब जसपाल ने सोचा कि चावल के बिना खीर कैसे बनेगी तो उन्होंने बाबा जी से कहा कि मैं घर से कुछ चावल ले आता हूं इसके बाद बाबा मस्तनाथ ने उन्हें घर से चावल लाने के लिए मना कर दिया और पास में पड़ी हुई हड्डी को दूध में डाल दिया इसके बाद उस हड्डी से चावल बन जाते हैं और खीर बन कर तैयार हो जाती है

इसके बाद बाबा मस्तनाथ जी सत्संग करते हैं और बालक जसपाल को कहते हैं कि मैं तुम्हें अमर करने के लिए आया हूं अब तुम यह खीर खाओ इसके बाद बाबा मस्तनाथ ने जसपाल से कहा कि गोपीचंद और भरतरी की तरह तुम भी अमरता को प्राप्त करोगे लेकिन दूध में हड्डी होने के कारण जसपाल के दिल में नफरत पैदा हो जाती है बाबाजी के कहने पर भी वह मना कर देते हैं कि मैं साधुओं का भोजन नहीं खाता इसके बाद जसपाल के मना करने पर बाबा पत्ते पर खीर खा कर चले गए जैसे ही बाबा मस्तनाथ वहां से गए तो बालक जसपाल को माया रूपी भूख लगती है वह भूख से इतने विचलित हो जाते हैं कि जिन पत्तों पर बाबा मस्तनाथ ने खीर खाई थी उन्हीं पत्तों को उठाकर वह चाटने लगते हैं जिससे कुछ अंश उनके तन में चले जाते हैं

इसके बाद उनके अंदर भक्ति वैराग्य उत्पन्न हो जाता है इसके बाद जसपाल जी बाबा मस्तनाथ के पीछे पीछे उनके पास पहुंच जाते हैं और उनसे माफी मांग कर उन्हें जीवित रहते हुए अमर करने  की प्रार्थना करते हैं इसके बाद बाबा मस्तनाथ जी जसपाल को अपना शिष्य बना लेते हैं और  समय की दुहाई देते हुए उन्हें उस समय अमर करने से मना कर देते हैं  इसके बाद बाबा मस्तनाथ जी जसपाल से कहते हैं कि तुम मुझे जहां मिले थे

वहीं पर बैठकर योग साधना करना “आसोज सुदी चौदस” के दिन धरती माता तुम्हें अपनी गोद में लेगी और तुम जीवित समाधि ग्रहण करोगे ,मैं तुम्हें जीवित रहते हुए तो अमर नहीं कर सकता लेकिन जब तुम जीवित समाधि ग्रहण करोगे तो तुम जिंदा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो जाओगे इसके बाद जसपाल जी गुरु आदेश की पालना करते हुए उसी स्थान पर वापस आ जाते हैं और उनके कहे अनुसार योग साधना करने लगते हैं इस प्रकार धीरे-धीरे समय बीतता गया और वह समय आ गया

जब धरती मां उन्हें गोद में लेने लगी तब उन्हें एक ब्राह्मण ने देख लिया और वह दौड़ कर उनके घर गया और उनकी भाभी को जाकर यह सब बता दिया उनकी भाभी उन्हें घर चलने के लिए प्रार्थना करती है तो जसपाल जी उन्हें भी अपने साथ चलने के लिए कहते हैं इसके बाद वह दोनों ही एक साथ धीरे-धीरे जीवित ही धरती में समाने लगे जिसके बाद से इनका नाम जिंदा बाबा माना जाता है.

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