History

बिरसा मुंडा का इतिहास

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बिरसा मुंडा का जन्म 

झारखंड राज्य के रांची जिले में एक आदिवासी समुदाय रहता है इस समुदाय का नाम मुंडा समुदाय है उस समय इस क्षेत्र में मुंडा जाति  बड़ी मात्रा में निवास करती थी घास काटना, बकरियां चराना, लकड़ियां इकट्ठा करना ,जैसे दैनिक कार्य करने वाले इन आदिवासियों का जीवन पूर्णता जंगल की संपदा पर निर्भर था मुंडा समुदाय के लोग ‘मुंडारी’ बोली बोलते हैं

बिरसा मुंडा ‘मुंडा समुदाय’ के महान एवं वीर क्रांतिकारी थे इनका जन्म रांची जिले में ‘अड़की’ प्रखंड के उलीहातू गांव में 15 नवंबर 1875 ईस्वी में हुआ था इनके पिता जी का नाम सुगना मुंडा था और उनकी माता जी का नाम ‘कर्मी मुंडा’ था वीरवार को जन्म होने के कारण इनका नाम बिरसा रखा गया था बिरसा मुंडा के गुरु का नाम “आनंद पांडे” था | बिरसा मुंडा का इतिहास |

बिरसा मुंडा की शिक्षा

 इनकी प्रारंभिक शिक्षा ‘चाईबासा’ के मध्य विद्यालय में हुई थी गरीबी होने के कारण यह उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके बचपन से ही बिरसा क्रांतिकारी विचारों के बालक थे वह सदा न्याय का पक्ष लेकर खड़े हो जाते थे न्याय का साथ देना इनका स्वभाव था  बिरसा मुंडा बहुत बहादुर और साहसी थे बचपन में वे  खूब  बांसुरी बजाते थे बिरसा मुंडा अपने से बड़ों का बहुत आदर  करते थे बच्चों के प्रति उनके हृदय में गहरा प्यार था इसके बाद बिरसा मुंडा धीरे-धीरे बढ़े हुए और खेती-बाड़ी करने लगे, पशुओं को चराते थे

उस समय भी वे अपने साथियों को अच्छी सीख देते थे जैसे -झूठ न बोलना, चोरी ना करना, शराब ना पीना, इन सब को पाप समझते थे उनके इन्हीं विचारों के कारण आदिवासी लोग उनके गुणों से प्रभावित हुए सभी उनका आदर करने लगे बिरसा मुंडा ने अपने आप को धरती के देवता के रूप में घोषित कर दिया बिरसा में विलक्षण शक्ति है अंग्रेजों की गोलियों को वह पानी कर सकते हैं ऐसी धारणा आदिवासियों में आग की तरह फैल गई इसके बाद दूर-दूर से आदिवासी लोग बिरसा का भाषण सुनने आने लगे उस समय हैजे और चेचक की बीमारी ने कहर बरसा रखा था

हजारों लोग बीमारी के कारण मर रहे थे ऐसे समय में सुशिक्षित बिरसा नेअपने आदिवासी लोगों को स्वच्छता और सावधानी के तौर तरीके समझा कर बीमारी से काफी हद तक बचाने में कामयाब हो जाते हैं इसलिए आदिवासी लोग इन्हें “भगवान” कहने लगे और यह बिरसा भगवान के नाम से प्रसिद्ध हुए बिरसा मुंडा ने अपने भाषणों से आदिवासी लोगों को साहूकारों और अंग्रेजों की नीतियों से अवगत कराया था

देखते ही देखते बिरसा के समर्थकों की संख्या हजारों में पहुंच गई थी बिरसा मुंडा खुद मांस मछली नहीं खाते थे और वह लोगों को भी इन्हें खाने से मना करते थे वह सभी को प्रेम और भाईचारे का उपदेश देते थे बिरसा मुंडा ने अपने अनुयायियों का एक दल स्थापित किया जिसका नाम विरसाइट रखा गया था | बिरसा मुंडा का इतिहास |

 अंग्रेजों से संघर्ष 

1895 में जंगल की ठेकेदारी को लेकर अंग्रेजों से बिरसा भगवान का झगड़ा हो गया आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया माइल पहाड़ी पर अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच भयानक लड़ाई हुई बिरसा मुंडा ने “उलगुलान” का नारा लगाते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया अंग्रेजों ने  उलगुलान को दबाने की बहुत ही कोशिश की

परंतु वह नाकामयाब रहे इस लड़ाई में आदिवासियों की हार हुई इसके बाद दिसंबर 1899 मेंबिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों ने अंग्रेजों और दलालों के ऊपर आक्रमण कर दिया और इस आक्रमण में कई अंग्रेज, पुलिसकर्मी मारे जाते हैंऔर उनकी संपत्ति को जला दिया जाता है इसके बाद अंग्रेज बिरसा मुंडा से भयभीत होने लगे भगवान बिरसा को अंग्रेजों ने पकड़ कर जेल में डाल दिया कुछ दिनों तक जेल में रहने के बाद वह जेल से छूट गए | बिरसा मुंडा का इतिहास |

बिरसा मुंडा की मृत्यु

जेल से निकलते ही बिरसा भगवान ने फिर अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दियाएक दिन बिरसा मुंडा अपने सभा को संबोधित कर रहे थे तभी वहां पर अंग्रेजों ने आकर उन्हें चारों तरफ से घेर लिया इसके बाद आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच में भीषण युद्ध होता है और 3 फरवरी 1900 ईस्वी को  बिरसा मुंडा को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया आदिवासियों का नेतृत्व बिरसा भगवान ने किया था बिरसा भगवान फिर पकड़े गए

जेल में भगवान बिरसा का स्वास्थ्य खराब हो गया अस्वस्थ अवस्था में ही उनकी मृत्यु जेल में 9 जून 1900 ई. में हो गई थी बिरसा भगवान महान क्रांतिकारी थे उन्हें “धरती आबा” के नाम से जाना जाता था 32 वर्ष की आयु में बिरसा मुंडा ने अपने देशवासियों को स्वाभिमान और स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाया वह आदिवासी समाज को दुर्गुणों से बचाना चाहते थे वे आदिवासियों के हक की लड़ाई जीवन भर लड़ते रहे

आज वह हमारे बीच नहीं है पर उनका नाम सदा अमर रहेगा मुंडा जनजाति आज भी है और वह बिरसा मुंडा को भगवान मानते हैं और उनकी पूजा भगवान की तरह करते हैं इस दुनिया में उसी का नाम अमर होता है जो अपने समाज और राष्ट्र के लिए अपना जीवन अर्पित कर देते हैं बिरसा मुंडा के मृत्यु दिन को बलिदान दिवस के रुप में मनाया जाता है | बिरसा मुंडा का इतिहास |

 

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