History

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास 

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास

चित्तौड़गढ़ मेवाड़ उसके इतिहास के लिए जाना जाता है चित्तौड़गढ़ की स्थापना बप्पा रावल ने आठवीं सदी में की थी यह राजपूती परंपरा और उनकी वीरता की गौरवशाली प्रतीक है अब इस किले में खंडहर रह गए है  चित्तौड़गढ़ का किला राजस्थान के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है यहां पर हर वर्ष हजारों सैलानी घूमने के लिए आते हैं और इसकी भव्यता का अवलोकन करते हैं

भारत के इतिहास के पन्नों में चित्तौड़गढ़ एक विशेष स्थान रखता है इस पर अनेक आक्रमण हुए लेकिन हर बार अपनी गरिमा को बनाए रखने में कामयाब रहा ऐसा माना जाता है कि आखिर रानी पद्मिनी अत्यंत रूपवती थी आज भी महल के प्राचीन खंडहर रानी पद्मिनी के यौवन की गाथा सुनाते हैं

1303 में  खिलजी ने रानी का दर्पण में प्रतिबिंब देखा था उनकी सुंदरता को देखकर वह उन्हें  पाने के लिए लालायित हो गया और खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर आक्रमण कर दिया इसके बाद रानी पद्मिनी ने अपने आप की लज्जा को बचाने के लिए कई महिलाओं के साथ अपने आप को अग्नि को समर्पित कर दिया था 

किले पर आक्रमण

 1500 से 16 वीं शताब्दी के बाद किले को तीन बार लूटा गया था 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने राणा रतन सिंह को पराजित किया था 1535 में गुजरात के सुल्तान बादशाह ने विक्रमादित्य को पराजित किया था और 1567 में अकबर ने महाराणा उदय को पराजित किया था जिन्होंने इस किले को छोड़कर उदयपुर की स्थापना की थी लेकिन तीनों राजवंशों ने जी जान से युद्ध किया था

उन्होंने महल और राज्य को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की थी लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा था चित्तौड़गढ़ किले के युद्ध में पराजित होने के बाद राजपूत सैनिकों, महिलाओं और बच्चों ने लगभग 16000 लोगों ने जौहर किया था और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था | चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास |

चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण 

चित्तौड़गढ़ गौरवशाली एक विशाल इमारत है जिसे सातवीं शताब्दी में मौर्य शासकों ने बनवाया था 80 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित  किला 700 एकड़ भूमि में फैला हुआ है इसके अंदर बनी पटिया वह छतरि राजपूती वीरता को प्रभावशाली यादगार दिलाता है इसके बादल  पॉल, भैरव  पॉल,  हनुमान पॉल ,राम पॉल मुख्य द्वार है इसके भीतर राजपूती वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण मौर्य शासकों द्वारा किया गया था

इसका निर्माण चित्रांगदमौर्य ने किया था  इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में मौर्य शासन काल में किया गया था चित्तौड़गढ़ का किला 34 वर्ष तक मेवाड़ की राजधानी रहा चुका था चित्तौड़गढ़ किले की स्थापना 734 में मेवाड़ के राजवंश के शासक बप्पा रावल ने की थी इस किले को आठवीं शताब्दी में सोलंकी रानी ने दहेज के रूप में बप्पा रावल को  दिया था 1568 में इस किले को अकबर के शासन काल में इस किले को लूट कर इस किले का विनाश भी किया था लेकिन फिर बाद में लंबे समय के बाद 1905 में इसकी मरम्मत की गई थी 

चित्तौड़गढ़ किले की विशेषता

इस किले में देखने योग्य कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें से नंबर एक पर-

 विजय स्तंभ

मालवा और गुजरात के मुसलमान  शासकों पर अपनी विजय का जश्न मनाने के लिए मेवाड़ के शक्तिशाली शासक महाराणा कुंभा ने 1440 ईसवी में इसका निर्माण करवाया था 9 मंजिल 37 मीटर ऊंची इस इमारत में हिंदू देवी-देवताओं की उत्कृष्ट मूर्तियां बनी हुई है जो आज भी रामायण और महाभारत के वृत्तांतो का चित्रण करती हैं 

कीर्ति स्तंभ

22 मीटर उच्चतम इस स्तंभ का निर्माण  बाहरी धनी जैन व्यापारी ने करवाया था यह जैनियों के तीर्थ कर आदिनाथ जी का है इस स्तंभ पर जैन देव गणों की आकृतियां सज्जित है 

राणा कुंभा का महल

महान ऐतिहासिक वास्तु कला के प्रसाद चित्तौड़ के किले से विशाल स्मारक है इस महल में भूमिगत कोटिया है जहां रानी पद्मिनी और कई अन्य स्त्रियों ने जौहर किया था

रानी पद्मिनी का महल

 रानी पद्मिनी का महल तालाब के किनारे पर बना हुआ एक शानदार महल है यहीं पर रतनसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मिनी की झलक दिखाई थी रानी पद्मिनी के महल में रखे दर्पण पर अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मिनी का प्रतिबिंब नजर आ रहा था रानी पद्मिनी को पाने के लिए खिलजी ने चित्तौड़ का विनाश कर दिया था

 कालिका माता मंदिर 

18 वीं शताब्दी में बने इस मंदिर को 14 वीं शताब्दी में देवी मां काली के मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया था जो की शक्ति वह वीरता का प्रतीक है

 मीरा बाई का मंदिर 

भगवान कृष्ण की परम भक्त मीराबाई का मंदिर आकर्षक उत्तर भारतीय शैली में बना है मीराबाई का जन्म मेड़ता के निष्कर्ष पुर के गांव में रतन सिंह राठौड़ के यहां हुआ था उनका विवाह मेवाड़ के राजा रंगा के पुत्र भोजराज के संग हुआ था यहां पर मीराबाई घंटों तक बैठकर कृष्ण की आराधना करती थी 

 इस किले का निर्माण मौर्यवंशी राजा चित्रांगद सातवीं शताब्दी में करवाया था इसे अपने नाम पर चित्रकूट के  रूप में बसाया थामेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर चित्रकूट का नाम अंकित मिलता है बाद में इसे चित्तौड़ कहा जाने लगा 1563 में अकबर ने इस किले पर चढ़ाई कर दी थी मुस्लिम आक्रमण के कारण इस किले को बहुत ही नुकसान हुआ है यूनेस्को द्वारा वर्ष 2013 में चित्तौड़गढ़ किले को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था

चित्तौड़गढ़ किले में भारतीय लोगों के लिए प्रवेश शुल्क ₹5 विदेशी पर्यटकों के लिए ₹100 तथा 15 साल से कम आयु के बच्चों को कोई प्रवेश शुल्क देना नहीं पड़ता चित्तौड़गढ़ किला काफी बड़ा है इसलिए किले के अंदर घूमने के लिए टैक्स या किराए पर उपलब्ध है चित्तौड़गढ़ किले का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर हवाई अड्डा है जिसकी चित्तौड़गढ़ से  दूरी 70 किलोमीटर है चित्तौड़गढ़ दिल्ली से करीब 585 किलोमीटर दूर है दिल्ली से यहां पहुंचने पर 12 घंटे का समय लग जाता है 

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