History

जहांआरा बेगम का इतिहास

जहांआरा बेगम का इतिहास

जहांआरा बेगम का इतिहास

जहांआरा  शाहजहां की सबसे बड़ी और लाडली बेटी थी यह औरंगजेब की बहन थी शाहजहां अन्य बच्चों के अपेक्षा जहांआरा से ज्यादा प्यार करते थे जिस समय जहांआरा का जन्म हुआ उस समय दिल्ली के लाल किले को बहुत ही सुंदर फूलों से सजाया गया था | जहांआरा बेगम का इतिहास |

जहांआरा का जन्म

जहांआरा बेगम का जन्म  2 अप्रैल 1614 में भारत के के अजमेर राजस्थान में मुगल वंश में हुआ था बेगम के पिता का नाम शाहजहां था और माता का नाम अर्जुमंद बानो था जहांआरा बेगम को ‘बादशाह बेगम’ और ‘बेगम साहब’  के नाम से भी जाना जाता है जहांआरा अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थी और औरंगजेब की बड़ी बहन थी

जहांआरा अपने जीवनकाल के दौरान वह जब 14 वर्ष की हुई तब से अपने पिता शाहजहां के राज्य कार्यों में उनका  हाथ बटाना शुरू किया जहांआरा मुगल सल्तनत की एक अकेली ऐसी राजकुमारी थी जिसे आगरा फोर्ट के बाहर अपने खुद के महल में रहने की इजाजत थी अपनी मां के देहांत के बाद जहांआरा अपने पिता की सबसे विश्वासपात्र साथी रही थी

औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को अंतिम समय में जब आगरा के किले में कैद कर लिया था तब भी गुणों से भरपूर जहांआरा आरा ने अपने पिता की उनकी मृत्यु होने तक तन और मन से सेवा की थी शाहजहां की मृत्यु जनवरी वर्ष 1666 में हुई थी

जहांआरा के साथ घटी घटना

जहां आरा आग की लपटों में जली थी जहांआरा के जीवन में एक ऐसी घटना घटी थी जिसने महल में रह रहे हर शख्स को चिंतित किया वर्ष 1644 में जहांआरा किसी कारण से आग की लपटों में आ गई थी और बहुत ही बुरी तरह जख्मी हो गई थी इस हादसे में बेगम का आधे से ज्यादा शरीर जल गया था शाहजहां को जब इस खबर का पता लगा तो उसने उस समय के बेहतरीन वैद्य को जहांआरा इलाज के लिए महल में बुलाया था

इस घटना के बाद जहांआरा को करीब 4 महीने तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करना पड़ा आखिर में उनकी जान खतरे से बाहर हुई और 11 महीनों के आराम के बाद वह  फिर से महल में उसी विश्वास के साथ लौटी थी इसके बाद शहंशाह ने जहांआरा को कीमती रत्न और आभूषण  दिए थे साथ ही सात सूरत के पोर्ट से आए पूरे राजस्व को जहांआरा के नाम कर दिया | जहांआरा बेगम का इतिहास |

औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह

जहांआरा और औरंगजेब दोनों भाई बहन के  बीच कई मुद्दों को लेकर विचार मेल नहीं खाते थे इसी कारण दोनों के बीच नोकझोंक बनी रहती थी जहांआरा ने अपने भाइयों में सत्ता संघर्ष को टालने के लिए बहुत प्रयास किए थे  उसकी सभी कोशिशें विफल साबित हुई  राजगद्दी के लिए औरंगजेब और दाराशिकोह के बीच मुकाबला था

उस वक्त जहांआरा ने दाराशिकोह का पक्ष लिया था अंत में यह मुकाबला औरंगजेब जीत गया था दारा शिकोह और उनका साथ देने के बावजूद औरंगजेब ने जहांआरा को बादशाह बेगम का खिताब दिया था औरंगजेब अपनी बड़ी बहन जहांआरा का उतना ही सम्मान करता, जितना वह अपने पिता शाहजहां का करता था

जहांआरा द्वारा बनाया गया जहाज का नक्शा

जहांआरा एक महल में जन्मी बेटी थी फिर भी वह धर्म और इंसानियत का सम्मान करती थी जिसके कारण उसने एक बार अपने भाई औरंगजेब द्वारा बनाए गए  कानून के खिलाफ आवाज उठाई  थी जिसमें गैर मुसलमानों से चुनाव के लिए कर वसूला जाता था जहांआरा का मानना था कि औरंगजेब के इस कानून से देश का बंटवारा हो जाएगा और देश बिखर जाएगा

वह हिंदू मुस्लिम धर्म के लोगों को एक साथ लेकर चलना चाहती थी ऐसे कई कारनामे जहांआरा ने अपने जीवनकाल के दौरान किए जिसके कारण आम जनता उसका तहे दिल से सम्मान करती थी जहांआरा बहुत सी चीजों को लेकर रुचि रखती थी वह एक लेखिका थी उसे हिंदी, उर्दू, अरबी, फारसी भाषा का ज्ञान था जहांआरा ने अपने हाथों से एक पानी वाले जहाज का नक्शा तैयार किया जिसका नाम सहीबी था | जहांआरा बेगम का इतिहास |

जहांआरा के गुरु 

अपना सारा जीवन राज महल में बिताने के बाद वह अपने जीवन के अंतिम समय में लाहौर के ‘ संत मियां पीर ’ की शिष्य बन गई थी

जहांआरा की मृत्यु

जहांआरा ने 67 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कहां था उनका देहांत 16 सितंबर 1681 में हुआ था  इसके बाद उन्हें नई दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह के भवन में दफनाया गया था जहांआरा जिस महल में रहती थी उसे आज दिल्ली में चांदनी चौक के नाम से जाना जाता है जो कि दिल्ली में बहुत प्रसिद्ध है 1648 में आगरा में जिस जामा मस्जिद को बनाया गया था उसमें जहांआरा का सबसे ज्यादा योगदान था जहांआरा ने उस समय अजमेर के मुद्दीन चिश्ती के ऊपर  जीवनी भी लिखी थी

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