History

मुमताज महल का इतिहास

मुमताज महल का इतिहास, मुमताज महल का जन्म, मुमताज महल का विवाह , शाहजहां और मुमताज की संताने, मुमताज महल की मृत्यु

मुमताज महल का जन्म 

अर्जुमंद बानो बेगम को मुमताज महल के नाम से जाना जाता है यह आसफ खान की पुत्री थी मुमताज महल का जन्म आगरा में सन 1593 ईस्वी में हुआ था मुमताज को उसके पिता आसफ खान ने खूब अच्छी तरह से शिक्षा दी थी और उनकी दी हुई शिक्षा उन्होंने सर्वथा सही ठहराया था और  वह उन्ही शिक्षाओं की वजह से अपने भावी उच्च पद के सर्वथा योग्य थी 

मुमताज महल का विवाह 

मुमताज महल का विवाह राजकुमार खुर्रम (शाहजहां) के साथ बड़ी धूमधाम से 1662 ईस्वी में हुआ था उस समय शहजादे खुर्रम की उम्र लगभग 15 वर्ष की थी उस समय मुमताज महल की सुंदरता की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी विवाह के उत्सव में बादशाह और समरागी ने भी भाग लिया था शाहजहां और मुमताज महल के विवाह का सविस्तार वर्णन जहांगीर ने अपनी आत्मकथा (तुजुक- ए- जहांगीरी) में किया है

यह विवाह खुर्रम एवं मुमताज के लिए बड़ा ही आनंद में सिद्ध हुआ मुमताज महल जो कि अद्वितीय सौंदर्य की धनी महिला थी, उन्होंने अपने प्रेम से अपने पति शाहजहां का हृदय वश में कर लिया, वह शाहजहां के लिए उसके प्राणों से भी अधिक प्रिय थी तथा वह अपने पति के सुख दुख में हमेशा उसके साथ रही 

मुमताज महल को दी गई उपाधि 

शाहजहां अपने राज्य के प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य में मुमताज महल से उसकी सलाह लेता था एवं उसे अपना सबसे अच्छा सलाहकार भी मानता था शाहजहां के गद्दी पर बैठने के पश्चात मुमताज को राजमहिषी  का पद प्राप्त हुआ तथा उसको मल्लिका- ए -जमा की उपाधि दी गई वह बादशाह की अत्यंत प्रिय एवं विश्वासपात्र थी जिसके कारण  शाहजहां ने उन्हें शाही मुहर प्रदान की मुमताज ने बाद में इस शाही मुहर का अधिकारी अपने पिता आसिफ खान को बनवा दिया था

शाहजहां और मुमताज की संताने 

10 से भी ज्यादा बार गर्भवती होने के बावजूद मुमताज शाहजहां के साथ यात्रा पर जाती थी यात्रा पर जाते समय में पूरे मुगल साम्राज्य का भ्रमण करना पसंद करती थी जिनमें उन्हें शाहजहां की सेना शक्ति को देखना काफी पसंद था उन्हें कुल 14 बच्चे हुए थे जिनमें से सात जन्म पूर्व या किशोरावस्था में ही मर गए थे 

मुमताज महल की मृत्यु

शाहजहां 1630 ईस्वी में “खान जहां लोधी” के विरुद्ध बुरहानपुर में युद्ध का संचालन कर रहा था और उसी समय मुमताज महल ने अपनी 14वीं संतान के रूप में एक पुत्री को जन्म दिया था इसके बाद मुमताज महल काफी बीमार रहने लगी और जब उन्हें अपनी मृत्यु के निकट समय का पता चला तो उन्होंने अपनी पुत्री जहां आरा से बादशाह को अपने पास बुलाने का संदेश भिजवाया और उससे आंखों में आंसू भर कर अपनी संतानों का ध्यान रखने की प्रार्थना की थी

इसके बाद 17 जून 1631 ईसवी को उनका देहांत हो गया था मुमताज के शव को उस समय शाहजहां के चाचा दानियाल द्वारा तापी नदी के तट पर जैनाबाद गार्डन में दफनाया गया था उनके शव को फिर से दिसंबर 1631 में निकाला गया और सोने से बनी  शव पेटी में आगरा के पीछे दफनाया गया था आगरा के पीछे “यमुना नदी” के तट पर एक छोटे घर में उनके शव को रखा गया था 

मुमताज की याद में बनाई गई मस्जिद 

शाहजहां बुरहानपुर के पीछे अपने सैन्य दल के साथ रहने लगे थे और वहीं रहते हुए उन्होंने मुमताज की याद में एक विशाल महल बनाने की योजना बनाई उनके सपने को साकार होने में पूरे 22 साल लगे मुमताज की याद में बने उस महल को ताजमहल के नाम से जाना जाता है 

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