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जतिंद्र नाथ दास का जीवन परिचय 

जतिंद्र नाथ दास का जीवन परिचय ,जितेंद्र नाथ दास का जन्म,भगत सिंह से भेंट,जितेंद्र नाथ दास की शहादत, जतिन दास का जन्म कब हुआ, जतिन दास की मृत्यु कब हुई 

जतिंद्र नाथ दास का जीवन परिचय 

जतिंद्र नाथ दास भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए जेल में अपने प्राण त्याग दिए और शहादत पाई इमेज जतिन दास के नाम से भी जाना जाता है जबकि सगे संबंधी इन्हें प्यार से जतिन दा कहा करते थे जितेंद्र नाथ कांग्रेस सेवादल में सुभाष चंद्र बोस के सहायक थे भगत सिंह से भेंट होने के बाद यह बम बनाने के लिए आगरा आ गए थे

जल में क्रांतिकारियों के साथ राज बंदियों के समान व्यवहार ना होने के कारण क्रांतिकारियों ने 13 जुलाई 1929 से अनशन आरंभ कर दिया था जतिंद्रनाथ भी इसमें सम्मिलित हुए अनशन के 63वे दिन जेल में ही इनका देहांत हो गया था जितेंद्र नाथ बचपन से ही मेधावी रहे थे यह 17 साल की अवस्था में असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे इन्होंने अपनी बाल उम्र में ही अनुशीलन समिति की सदस्यता ले ली थी इन्होंने अपना पूरा जीवन स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था जतिंद्र नाथ दास का जीवन परिचय 

जितेंद्र नाथ दास का जन्म

 जतिंद्र नाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कोलकाता में हुआ था इनके पिता का नाम “बंकिम बिहारी दास” वह मां का नाम “सुहासिनी देवी” था जब इनकी आयु 9 वर्ष की थी तब इनकी माता जी का देहांत हो गया था इसके बाद इनका पालन-पोषण इनके पिताजी ने किया था जतिन दास पढ़ाई में अव्वल थे इन्होंने मैट्रिकुलेशन और इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी

जब जितेंद्रनाथ अपने आगे की शिक्षा पूर्ण कर रहे थे तभी महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया जतिंद्रनाथ इस आंदोलन में कूद पड़े विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देते हुए वे गिरफ्तार कर लिए गए उन्हें 6 महीने की सजा हुई थी

लेकिन जब चोरी -चोरा की घटना के बाद गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया तो निराश जतिंद्रनाथ फिर कॉलेज में भर्ती हो गए कॉलेज का यह प्रवेश जितेंद्र के जीवन में निर्णायक सिद्ध हुआ वर्ष 1923 में वे सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आए और उत्तरी बंगाल में बाढ़ पीड़ितों के बचाव के लिए बहुत काम किया बाद में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी सचिंद्र नाथ सान्याल के संपर्क में आए और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बन गए

कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में फाइनल ईयर में पढ़ते समय वर्ष 1925 में दक्षिणेश्वर बम केस और काकोरी षड्यंत्र केस में जितेंद्रनाथ गिरफ्तार कर लिए गए सबूतों के अभाव में इन मुकदमों से तो बच गए, परंतु बंगाल अपराधिक अध्यादेश में जेल में ही रहे

पहले मिदनापुर जेल फिर अलीपुर जेल और उसके बाद में मिमेन सिंह जेल में भेज दिए गए वह जेल अधिकारियों के दुर्व्यवहार के विरुद्ध भूख हड़ताल शुरू कर दी जो 21 दिन बाद तब समाप्त हुई जब जेल अधीक्षक ने माफी मांग ली थी परंतु जतिंदास के क्रांतिकारी कदम से घबराए प्रशासन ने उन्हें प्रताड़ित करने के लिए पूर्वी भारत से निकालकर सुदूरपश्चिम में मियांवाली जेल भेज दिया अक्टूबर 1928 में उन्हें रिहा कर दिया गया था जतिंद्र नाथ दास का जीवन परिचय 

भगत सिंह से भेंट

 इसके बाद क्रांतिकारी गतिविधियों के साथ-साथ जतिन दास ने दक्षिण कोलकाता के कांग्रेस के सहायक सचिव के रूप में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में प्रदर्शन में सक्रिय भूमिका निभाई थी दिसंबर 1928 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में जतिन दास नेताजी सुभाष चंद्र के नेतृत्व में गठित बंगाल वॉलिंटियर्स के बटालियन में मेजर के रूप में फौजी वर्दी पहने जतिंदास खड़े थे 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सांडर्स का वध करने के बाद जब भगत सिंह कोलकाता गए तो वहां उन्होंने जतिंदास से भेंट की और आगरा चलकर क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों को बम बनाना सिखाने का आग्रह किया

जतिन दास भगत सिंह से बहुत प्रभावित हुए और उनका प्रस्ताव मान गए फरवरी 1928 के प्रारंभ में कोलकाता में उन्होंने कार्नवालिस रोड स्थित आर्य समाज मंदिर में भगतसिंह, फणींद्र नाथ घोष और कमल नाथ तिवारी को बम के लिए गन कोटर्न बनाना सिखाया और बम के दो खोल भी दिए इसके बाद आगरा जाकर हींग की मंडी वाले घर में फरवरी 1929 में ही कई बम बनाए जिनका परीक्षण भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने झांसी जाकर किया था इन्हीं में से दो बम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने, 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली में सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में फेंके थे

इसके बाद 14 जून 1929 को लाहौर षड्यंत्र केस में कोलकाता से जतिन दास गिरफ्तार कर लिए गए और लाहौर ले जाए गए 15 जून 1929 से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भारतीय राजनीतिक कैदियों के लिए जेल में आवश्यक सुविधाओं के लिए भूख हड़ताल प्रारंभ कर दी थी 13 जुलाई से जतिन दास सहित जेल में बंद अन्य क्रांतिकारी भी इसमें शामिल हो गए 26 जुलाई 1929 को जेल अधिकारियों ने जबरदस्ती खाना खिलाने के प्रयास में जतिन दास को जमीन पर पटक कर रबड़ की नली उनके मुंह में डाल दी

जिसे जतिन दास ने दांतो से चबा लिया और तरल भोजन पेट में नहीं जा सका तब गुस्से से पागल अधिकारियों ने दूसरी नली उनके नाक से डालने की कोशिश की जो फेफड़ों में चली गई अपनी जिद में अंधे डॉक्टर ने जतिन दास के फेफड़ों को ही दूध से भर दिया था इसके बाद जतिन दास की हालत बिगड़ती चली गई जतिंद्र नाथ दास का जीवन परिचय 

जितेंद्र नाथ दास की शहादत

 कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर ले जाना चाहा लेकिन जितेंद्र अपने साथियों से अलग होने के लिए तैयार नहीं हुए और 13 सितंबर 1929 को भूख हड़ताल के 63 में दिन जतिंदास शहीद हो गए थे जितेंद्र के भाई किरण चंद्र दास ट्रेन से उनके शव को कोलकाता ले गए सभी स्टेशनों पर लोगों ने इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की कोलकाता में दाह संस्कार के समय लाखों की भीड़ एकत्रित थी उनकी इस शानदार अहिंसात्मक शहादत का उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में किया है

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