वास्कोडिगामा का इतिहास, वास्कोडिगामा का जन्म, भारत के रास्ते की खोज , वास्कोडिगामा का पहली बार भारत आना, वास्कोडिगामा की राजा से मुलाकात, वास्कोडिगामा की वापसी , वास्कोडिगामा की मृत्यु
वास्कोडिगामा का जन्म
वास्कोडिगामा एक खोजी नाविक थे उनका जन्म 1460 में पुर्तगाल में हुआ था वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाकर यूरोप से भारत पहुंचने में सफलता हासिल की थी वास्कोडिगामा का बचपन साइनस नाम के कस्बे में बीता था जो कि समुद्र के किनारे पर स्थित था इनके पिता जी का नाम एस्तेवाओ द गामा और इनकी माता जी का नाम “डोना इसाबेल सोद्रे” था
उनके पिता को राज शाही द्वारा नाइट की उपाधि मिली हुई थी और वह एक खोजी नाविक थे वास्कोडिगामा ने आगे चलकर अपने पिता का ही व्यवसाय चुना और वह भी समुद्र में यात्रा के लिए जा रहे जहाजों की कमान संभालने लगे भारत के मसाले यूरोप में बहुत ज्यादा लोकप्रिय थे लेकिन उस समय यूरोप वासियों को भारत जाने वाले जिस इकलौते रास्ते के बारे में पता था वह जमीन से होकर जाता था यह रास्ता राजनीतिक मुश्किलों से भरा होने के साथ-साथ काफी खर्चीला और खतरनाक था
भारत के रास्ते की खोज
पुर्तगाल के राजा का विचार था कि अगर वह समुद्र के जरिए भारत जाने वाले किसी रास्ते के बारे में पता लगा ले तो वह यूरोप में मसालों के व्यापार से काफी ज्यादा अमीर बन सकते हैं उस समय समुद्र के जरिए यूरोप से भारत पहुंचने का विचार एक पुर्तगाली बार्टोलोमियू डीयाज द्वारा दिया गया था उन्होंने केप.आफ. गुड. होप .की खोज की थी जो कि अफ्रीका महाद्वीप के बिल्कुल दक्षिण में स्थित समुद्र तट पर बसा हुआ एक स्थान था माना जाता था कि वहां से पूर्व की ओर जाने वाले जहाज भारत पहुंच सकते थे
वास्कोडिगामा का पहली बार भारत आना
राजा द्वारा वास्कोडिगामा को जहाज और आदमियों के साथ “ केप. आफ. गुड. होप.” के रास्ते से भारत जाने वाले रास्ते को खोजने के लिए कहा गया साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर व्यापार के नए मौके हाथ लगे तो उनके बारे में भी पता लगाएं वास्कोडिगामा 8 जुलाई 1497 को चार समुद्री जहाजों और 170 आदमियों के साथ पुर्तगाल तट से रवाना हुए पहले वह दक्षिण की तरफ केप. ऑफ. गुड. होप .की ओर गए और 22 नवंबर को वहां पहुंच गए इसके बाद अफ्रीका तट के साथ साथ उत्तर की ओर बढ़े और रास्ते में व्यापारिक बंदरगाहों पर पड़ाव डालते गए
इसके बाद 14 अप्रैल 1498 को महालंदी बंदरगाह पर पहुंचने पर उन्हें वहां के एक स्थानीय नाविक से भारत की ओर जाने वाली दिशा के बारे में पता चला इसके बाद मानसून हवाओं की सहायता से वास्कोडिगामा का खेमा भारत की ओर चल पड़ा और 20 मई 1498 को भारत के केरल राज्य के कालीकट नामक स्थान पर उन्होंने अपने कदम रखे कालीकट को मलयालम भाषा में कोझिकोड भी कहा जाता है इस तरह से वास्कोडिगामा को भारत पहुंचने में लगभग 10 महीने का समय लगा था
वास्कोडिगामा की राजा से मुलाकात
कालीकट पहुंचने पर वास्कोडिगामा के दल की स्थानीय राजा से मुलाकात हुई वास्कोडिगामा ने राजा से व्यापारी सहूलियत लेने की कोशिश की लेकिन उनके मुस्लिम दरबारियों ने इस काम में अड़चन पैदा की यह इसलिए क्योंकि पुर्तगाली ईसाई थे
वास्कोडिगामा की वापसी
अगस्त 1498 में वास्कोडीगामा ने अपने देश की ओर वापसी का रास्ता पकड़ लिया लेकिन वापसी का रास्ता विपरीत मौसम की वजह से काफी खराब रहा और उनके दल के आधे से ज्यादा व्यक्ति बीमारी की वजह से मारे गए लेकिन वापस पहुंचने पर वास्कोडिगामा का जोरदार स्वागत हुआ क्योंकि उन्हें जिस काम के लिए भेजा गया था उन्होंने पूरा कर दिया था बाद में उन पर कई नामों की बरसात की गई थी इसके बाद वास्कोडिगामा को दो बार और भारत जाने का मौका मिला उन्हें भारत जाने वाले समुद्री दल का मुखिया बनाकर भेजा गया था उनकी यात्राओं से पुर्तगालियों का भारत के साथ व्यापार काफी बढ़ गया था और साथ ही साथ उनकी शक्ति भी काफी बढ़ गई थी
वास्कोडिगामा की मृत्यु
तीसरी बार भारत पहुंचने के कुछ समय बाद ही वास्कोडिगामा की मलेरिया की वजह से 24 दिसंबर 1524 को मृत्यु हो गई