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बाबा बंदा सिंह बहादुर का जीवन परिचय और इतिहास

बाबा बंदा सिंह बहादुर का जीवन परिचय और इतिहास

 

बंदा सिंह बहादुर का जन्म

बाबा बंदा सिंह बहादुर एक बहुत बड़े  सीख योद्धा थे बंदा सिंह बहादुर को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों से लड़ने  के लिए बहादुर बनाया था  

माधव दास का जन्म 27 अक्टूबर 1670 को जम्मू कश्मीर के कुंज जिले के राजौरी क्षेत्र में हुआ था उनका असली नाम “लक्ष्मण देव” था माधव दास ने 15 वर्ष की आयु में ही वैराग्य धारण कर लिया था माधवदास बचपन में घुड़सवारी, तीरंदाजी और तलवार चलाने की शिक्षा  प्राप्त कर ली थी  लेकिन एक दिन अचानक शिकार करते हुए उन्होंने एक  हिरणी पर बाण चला दिया था

वह हिरणी गर्भवती थी बाण लगने के कारण हिरणी और उसके बच्चे की मौत हो गई थी यह देखकर माधवदास को बहुत ही दुख हुआ और उसी समय उन्होंने शिकार करना त्याग दिया और वैराग्य धारण कर लिया था इसके बाद माधव दास ने बहुत से तीर्थों की यात्रा की और साधु-संतों से योग साधना का ज्ञान प्राप्त किया था

माधव दास वैरागी संत से कैसे बन गया एक बहादुर योद्धा

10 वे गुरु गोविंद सिंह के साहिब जाधव के हत्यारों को सजा दी थी और उनकी शहीदी का बदला लिया था

बहादुर सिंह की संत जानकी दास के साथ मुलाकात

बहादुर सिंह जब तीर्थ यात्रा कर रहे थे तब उनकी मुलाकात संत जानकी दास के साथ हुई थी उन्होंने वैरागी संत जानकी दास को अपना गुरु मान लिया था और उनसे शिक्षा ग्रहण की थी और वह उनके शिष्य बन गए थे इसके बाद भी वह अनेक स्थलों का भ्रमण करते रहे उत्तर भारत मैं अनेक स्थलों की यात्रा करने के बाद महाराष्ट्र पहुंचे वहां पर वह कुटिया बनाकर रहने लगे और ईश्वर प्राप्ति के लिए तपस्या करने लगे 

गुरु गोविंद सिंह जी से मुलाकात 

1708 में गुरुजी मुगल बादशाह बहादुर शाह के साथ दक्कन आए थे गुरुजी को पता चला कि माधवदास नांदेड़ में है इसके बाद वह मालदास की कुटिया पहुंचे वह सीखो को लंगर बनाने का आदेश दिया था इसके बाद यह बात सुनकर माधवदास बहुत ही क्रोधित हो गया माधवदास बहुत सी तंत्र मंत्र की विद्या जानता था

उन्होंने क्रोध में आकर उन विद्याओं का गुरुजी पर प्रयोग कर दिया था परंतु जब उन्होंने देखा कि उनकी तंत्र मंत्र की विद्या का गुरुजी पर कोई भी असर नहीं हो रहा है तो वह गुरु जी के चरणो में पड़ कर माफी मांगने लगे थे जब गुरु जी ने माधवदास से पूछा कि तुम कौन हो तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं आपका बंदा यानी कि सेवक हूं गुरुजी जानते थे कि वह एक कुशल योद्धा है

उनका जन्म पूजा पाठ धर्म के कार्यों के लिए नहीं हुआ है बल्कि उनका जन्म तो जुलम के खात्मे को खत्म करने के लिए हुआ था गुरुजी ने माधव दास को सितंबर 1708 में अमृत पान करवाया था और उन्हें एक नया नाम दिया “बंदा सिंह बहादुर”

बंदा सिंह बहादुर द्वारा चलाया गया पंजाब में अभियान 

गुरुजी मुगल बादशाह बहादुर शाह के साथ दक्कन आए थे थे वह चाहते थे कि मुगल बादशाह पंजाब में सरहद के नवाब वजीर खान और उसके दूसरे साथियों को सजा दे जिसने गुरु जी के दोनों छोटे शहजादो को दीवारों में चीनवा कर कत्ल करवा दिया था और उनकी माता गुजरी को भी मार डाला था लेकिन जब उन्होंने देखा कि मुगल बादशाह बहादुर शाह की ऐसा करने में कोई इच्छा नहीं है 

तब उन्होंने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के अभियान की जिम्मेदारी सौंपी थी गुरुजी ने बंदा सिंह बहादुर को अपनी तलवार धनुष अपनी  तर्कस के पांच तीर नगाड़ा निशान साहिब और अपने हाथों से लिखा हुकमनामा देकर पंजाब रवाना किया गुरु जी के द्वारा दिए गए हुकुमनामें  में  सभी सीखो को बंदा सिंह बहादुर के साथ जुड़ने के लिए कहा गया था ताकि पंजाब में मुगलों के जुर्म को खत्म किया जा सके सिंह के साथ पांच हजूरी सिखों को भी भेजा गया था

कि पंजाब में सिखों को बताया जा सके कि बंदा सिंह को गुरु जी ने यह जिम्मेवारी दी है और उन्हें सरहद पर चढ़ाई करने की पूरी ताकत सौंपी है बंदा सिंह बहादुर को महाराष्ट्र से पंजाब जाने  में लगभग 1 साल का समय लग गया था हालांकि वह 4-5 महीने में पंजाब पहुंच सकते थे परंतु मुगल बादशाह ने अपने सैनिक उनके पीछे लगा दिए थे

जिसके कारण वह छुपते हुए और रास्ते में सिखों को अपने साथ मिलाते हुए पंजाब की ओर बढ़ रहे थे जब बंदा सिंह बहादुर को रास्ते में यह पता चलता है कि अब गुरु जी नहीं रहे तो उनके क्रोध की अग्नि और अपने  गुरु जी का दिया हुआ आदेश  को पूरा करने की इच्छा और अधिक बढ़ जाती है इसके बाद वह  सरहद की ओर बढ़ने लगते हैं 

बंदा सिंह बहादुर द्वारा मुगलों के खजाने की लूट 

जब बंदा सिंह बहादुर सरहद की ओर बढ़ रहे थे तो उन्होंने रास्ते में डाकुओं को भी सबक सिखाया और उनके आंतक से गांव वालों को मुक्ति दिलवाई थी जब बहादुर सिंह आगे बढ़ रहे थे तो वह अपने साथ सिखों को जोड़ते हुए जा रहे थे

इसके बाद बंदा सिंह बहादुर ने कैथल और सोनीपत में मुगलों के खजाने को लूट लिया था और उन्हें लोगों में बांट दिया था इसके बाद रुहाना में  बंदा सिंह बहादुर मालवा के सिखों को संदेश पहुंचाते हैं कि वजीर खान को खत्म करने के लिए सभी सिखों को एक साथ आना होगा 

बंदा सिंह बहादुर द्वारा समाना पर कब्जा

बंदा सिंह बहादुर ने सबसे पहले समाना पर अपना कब्जा  कर लिया था सबसे पहले उन्होंने समाना पर आक्रमण किया था समाना मैं गुरु तेग बहादुर का सिर काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन इसी समाना का था इसी ने गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे दो बच्चों का भी कत्ल किया था गुरु गोविंद सिंह को धोखे से आंधपुर खाली करवाने वाला अली हुसैन भी समाना का था 

समाना की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर ने अपने सिख योद्धाओं के साथ मिलकर मुगल सैनिकों को चीटियों की तरह मसल दिया था इसके बाद कुंजपुरा मैं खालसा फौज का परचम लहरा दिया था इसके बाद एक के बाद एक लड़ाईयों को जीतते हुए और सिखों की फौज को बढ़ा करते हुए बंदा सिंह बहादुर की फौज सरहद  तक पहुंच गई थी 

सरहद  की लड़ाई 

सरहद को कब्जे में करना और उसे जीतना इतना आसान नहीं था इसलिए बंदा सिंह बहादुर ने 3 महीने तक अपनी फौज को और अधिक मजबूत किया और वजीर खान की कमजोरियों का पता लगाया बंदा सिंह बहादुर की आर्मी में सैनिकों की संख्या 30000 से 40000 तक पहुंच गई थी

परंतु बंदा सिंह के पास हाथी घोड़े और बंदूकें नहीं थी वजीर खान ने इस लड़ाई को जिहाद का नाम देकर अपने  साथ मुसलमानों को जोड़ लिया था वजीर खान के पास बड़ी मात्रा में सभी हथियार मौजूद थे इसके बाद सरहद से 20 किलोमीटर दूर “छप्पर चिरी” नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का आपस में युद्ध हुआ इसके बाद बंदा सिंह बहादुर और वजीर खान की सेना के बीच में जबरदस्त युद्ध हुआ और इस युद्ध में सिखों की जीत हुई थी

“मई 1710 में “उन्होंने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिख राज्य की स्थापना की थी उन्होंने खालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलाएं बहादुर सिंह ने अपने राज्य के एक बड़े भाग पर फिर से अधिकार कर लिया और इसे उत्तर पूर्व अमृत की सीमा तक विस्तृत किया इस युद्ध में वजीर खान मारा गया था

इसके बाद इस युद्ध में हार हो जाने के कारण मुगलों का बादशाह बहुत अधिक तिलमिला उठा था और वह दक्कन से दिल्ली आ गया था ताकि पंजाब से सिखों का प्रभाव खत्म किया जा सके इसके बाद मुगल बादशाह ने सभी गवर्नर को पंजाब पर चढ़ाई करने का आदेश दे दिया था

जब बंदा बहादुर पंजाब से बाहर था तो मुगलों ने सरहद अपना कब्जा कर लिया था इसके बाद मुगलों के साथ अपनी आखिरी लड़ाई के लिए बंदा सिंह बहादुर ने लोहगढ़ में अपने सैनिकों को इकट्ठा किया इस लड़ाई में मुगल जीत गए और उन्होंने लोहगढ़ किले पर अपना कब्जा कर लिया था

इस लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर बचकर निकलने में कामयाब हो गए थे इसके बाद बहादुर सिंह लंबे समय तक मुगलों से छिपते रहे  और वह अंत में गुरदास मंगल गांव में उनके छिपने की खबर मुगलों को मिल गई और उन्होंने उस गांव को चारों ओर से घेर लिया था और  वह पकड़े गए थे बाबा बंदा सिंह बहादुर का जीवन परिचय 

बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु

7 दिसंबर, 1715 को मुगलों ने गुरदास मंगल गांव पर कब्जा कर लिया था और बंदा सिंह बहादुर को लोहे के पिंजरे में बंद करके दिल्ली लाया गया वहां लाकर मुगलों ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए उन पर दबाव डाला परंतु बंदा सिंह बहादुर ने ऐसा करने से मना कर दिया उस समय मुगल सिखों पर अपना धर्म परिवर्तन करने के लिए कहते थे

उन्हें मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर करते थे बंदा सिंह बहादुर के मना करने के बाद उनके सामने उनके छोटे से बेटे को मार डाला इसके बाद भी बंदा सिंह बहादुर ने अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया और न हीं मुगलों के सामने झुके मुगलों ने उनको धर्म परिवर्तन करने के लिए अनेक प्रकार की यातनाएं दी और अंत में बंदा सिंह बहादुर को

“ 9 जून 1716 में ” मार डाला उस समय इनकी आयु केवल 45 वर्ष की थी बंदा सिंह बहादुर ने अपने गुरु जी के वचनों का मान रखते हुए छोटे शहजादो की हत्या का बदला लिया उन्होंने मुगलों को नाकों चने चबा दिए थे बंदा सिंह बहादुर की कुर्बानी को पूरा हिंदुस्तान हमेशा याद रखेगा जब धर्म मानवता से बड़ा हो जाता है तो इंसानियत की सीमाएं लांग जाती है धर्म के नाम पर लोगों पर अत्याचार होने लगते हैं , बाबा बंदा सिंह बहादुर का जीवन परिचय

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