History

महर्षि अंगिरा का इतिहास

महर्षि अंगिरा का इतिहास

महर्षि अंगिरा का इतिहास

हिंदू धर्म ग्रंथों में वेदों का काफी अधिक महत्व है चारों वेदों में हजारों मंत्र हैं और इन मंत्रों की रचना की है महर्षियो ने मंत्रों की रचना में कई महर्षियो का योगदान रहा है इन ऋषियों में सप्त ऋषि ऐसे हैं जिनका हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा योगदान माना गया है आकाश में 7 तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतो के आधार पर ही रखे गए हैं सप्तर्षियों के संबंध में मतभेद भी हैं अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग सप्त ऋषि बताए गए हैं 

ब्रह्म ऋषि अंगिरा जांगिड़ वंश के बहुत ही महान ऋषि हुए उनकी शक्ति को देखकर सारे देवता उनके सामने नतमस्तक हो गए जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्य को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारों ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराएं उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा से  ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद ग्रहण किया ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक ब्रह्म ऋषि अंगिरा को वेदों के रचयिता 4 ऋषियों में शामिल किया जाता है माना जाता है कि अंगिरा से ही व्रीगू, अत्री आदि ऋषियों ने ज्ञान प्राप्त किया ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न की थी अंगिरा ने धर्म और राज्य व्यवस्था पर बहुत काम किया इनकी पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति थी जिस से इनके वंश का विस्तार हुआ अग्निदेव ने ही बृहस्पति के रूप में जन्म लिया और देवताओं के गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे

उतथ्य और ऋषि संवर्त भी महर्षि अंगिरा के पुत्र थे वेदों के विचारों के साथ ही अपने नाम से अंगिरा स्मृति की रचना की थी अंगिरा ऋषि की तपस्या और उपासना इतनी तीव्र थी कि इनका तेज और प्रभाव अग्नि की अपेक्षा बहुत अधिक था उस समय अग्निदेव जल में रहकर तपस्या कर रहे थे तब उन्होंने देखा कि मेरी तपस्या और प्रतिष्ठा अंगिरा ऋषि के सामने तुच्छ हो  रही है और वह यह देखकर दुखी हो गए इसके बाद अग्निदेव महर्षि अंगिरा के पास गए और उन्होंने कहा कि मेरा तेज आपकी तेज के सामने बहुत ही फीका पड़ गया है अब मुझे कोई अग्नि नहीं कहेगा इसके बाद महर्षि अंगिरा ने उन्हें सम्मान पूर्वक देवताओं को हवी पहुंचाने का कार्य सौंपा और साथ ही पुत्र रूप में अग्नि का वर्ण किया 

शिव पुराण के अनुसार

शिव पुराण में ऐसी कथा आती है की युग युग में भगवान शिव व्यासा अवतार ग्रहण करते हैं उनमें वराह कल्प में वेदों के विभाजक पुराणों के प्रदर्शन और ज्ञान मार्ग के उपदेश का अंगिरा  भी व्यास थे वराह कल्प के नवे द्वापर में महादेव ने ऋषभ नाम से अवतार ग्रहण किया था उस समय उनके पुत्र रूप में महर्षि अंगिरा थे एक बार भगवान “श्री कृष्ण” ने व्याघ्र पाद ऋषि के आश्रम में महर्षि अंगिरा से पाशुपत योग की प्राप्ति के लिए बहुत कड़ी तपस्या की थी अंगिरा स्मृति में सुंदर उपदेश, धर्मा चरण की शिक्षा व्याप्त है अंगिरा स्मृति के अनुसार बिना कुशा के धर्म, अनुष्ठान, बिना जल स्पर्श के दान, संकल्प, बिना माला के संख्या हीन जाप ही यह सब निष्फल होते हैं 

अंगिरा ऋषि का शिष्य 

अंगिरा ऋषि का शिष्य उदयन बड़ा प्रतिभाशाली था वह सदैव यही चाहता था कि पहले उसे ही प्रतिभा के प्रदर्शन का मौका मिले लोग सिर्फ उसी का प्रदर्शन देखते रहे इसलिए सहयोगियों से अलग अपना प्रभाव दिखाने का प्रयास करता था अंगिरा ऋषि उदयन की इस प्रवृत्ति को पहचान कर सोचा कि यह प्रशंसा पाने की लालसा है

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