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महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

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महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

महावीर प्रसाद द्विवेदी संघर्षशील, दृढ़ निश्चय, निर्भीक स्वाभिमानी और कार्यकुशलता व नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक थे उनके विचारों और कथनों के पीछे उनके व्यक्तित्व की गरिमा को स्पष्ट देखा जा सकता है ज्ञान प्राप्त करने की ललक इन में सदैव बनी रही वह स्वभाव से विनम्र और सौम्य थे कानपुर में आयोजित हिंदी सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि जो समर्थ होकर भी साहित्य सेवा नहीं करता

उसके प्रति अनुराग नहीं रखता ,वह समाज द्रोही है, जाति द्रोही है, आतम द्रोही भी है महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के पहले लेखक थे जिन्होंने हिंदी साहित्य का गहन अध्ययन ही नहीं किया बल्कि उसे आलोचक की दृष्टि से भी देखा था द्विवेदी जी ने शिक्षा और समाजशास्त्र आदि विषयों पर अनेक निबंधों की रचना की है इन निबंधों में क्रियात्मक शैली का प्रयोग किया गया है इस शैली में भाषा सरल स्वाभाविक तथा वाक्य छोटे छोटे हैं यह द्विवेदी जी की सरलतम शैली है | महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय |

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई सन 1864 ईस्वी में “रायबरेली” जिले के “दौलतपुर” गांव में हुआ था इनके पिता पंडित राम सहाय त्रिवेदी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में साधारण सिपाही थे 13 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अंग्रेजी पढ़ने के लिए रायबरेली के जिला स्कूल में प्रवेश लिया वह अंग्रेजी के साथ संस्कृत पढ़ना चाहते थे किंतु वहां संस्कृत विषय ना होने के कारण उन्हें फारसी विषय लेना पड़ा बाद में वह उन्नाव जिले के रंजीत पुरवा स्कूल में तथा कुछ समय फतेहपुर में भी पढ़ें फतेहपुर से पढ़ाई करने के बाद वह अपने पिता के पास मुंबई चले गए

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इनकी शिक्षा सुचारू रूप से संपन्न नहीं हो सकी स्वाध्याय से ही इन्होंने संस्कृत, बांग्ला, मराठी, फारसी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया प्रारंभ में इन्होंने रेलवे के तार विभाग में नौकरी की परंतु 1930 में नौकरी छोड़कर पूरी तरह साहित्य सेवा में जुट गए और सरस्वती पत्रिका के संपादक का पदभार संभाला और हिंदी भाषा की सेवा के लिए अपना शेष जीवन अर्पित कर दिया इनकी हिंदी सेवा से प्रभावित होकर इनको सन 1931 ईस्वी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा में आचार्य की उपाधि से सम्मानित किया

 साहित्यिक योगदान 

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक साहित्यकार थे उनकी साहित्य साधना का विधिवत शुभारंभ सरस्वती पत्रिका के संपादन से ही होता है सरस्वती का सफलतापूर्वक संपादन करते हुए इन्होंने भारतेंदु युग की हिंदी गद्य में फैला अनियमितताओं व्याकरण संबंधी अशुद्धियों, विराम चिन्ह प्रयोग की त्रुटियों को दूर कर हिंदी गद्य को व्याकरण के अनुशासन में बांधा और नव जीवन प्रदान किया द्विवेदी जी हिंदी गद्य की उन निर्माताओं में से हैं जिनकी प्रेरणा प्रयत्नों से हिंदी भाषा का स्थान प्राप्त हुआ है इन्होंने और इनकी सरस्वती पत्रिका ने अपने युग में साहित्यकारों का मार्गदर्शन कर अपनी प्रतिभा से पूरे युग को प्रभावित किया | महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय |

महावीर प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली 

 द्विवेदी जी के निबंधों की भाषा विषय अनुकूल है आलोचनात्मक निबंधों में शुद्ध  परिनिष्ठित संस्कृत तत्सम शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग है तो भावनात्मक निबंधों में काव्यात्मक भाषा दिखाई पड़ती है द्विवेदी जी ने स्थान स्थान पर संस्कृत की सूक्तियां के प्रयोग में भाषा को प्रभावशाली बनाने में सफलता प्राप्त की है द्विवेदी जी मुहावरेदार भाषा का प्रयोग करने में सिद्धहस्त थे

द्विवेदी जी की भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुलता है तथापि उर्दू एवं अंग्रेजी के प्रचलित शब्द भी उनकी भाषा में प्रयुक्त हुए हैं उनकी भाषा में बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हुआ है वास्तव में व्यवहारिक भाषा के पक्षधर थे और ऐसी भाषा का प्रयोग करते थे जो नित्य प्रति के व्यवहार में आती हो तथा जिसे समझने में किसी को भी कठिनाई ना हो भावात्मक शैली का प्रयोग उनके प्रति संबंधी निबंधों में प्रचुरता से हुआ है ‘गवेषणात्मक शैली’ का प्रयोग द्विवेदी जी ने अपने साहित्यिक निबंधों तथा कवि कर्तव्य कालिदास की निरंकुशता आदि में किया है

द्विवेदी की विचारात्मक शैली में लिखे गए निबंध विचार पदाना जिनमें शुद्ध परिनिष्ठित तत्सम शब्द वाली हिंदी का प्रयोग हुआ है द्विवेदी जी के वर्णनात्मक निबंध में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है द्विवेदी जी के निबंधों में हास्य व्यंग्य का समावेश पर किया गया है विशेष रूप से सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों पर वे हास्य-व्यंग्य पूर्ण शैली में प्रहार करते हैं द्विवेदी जी ने 50 से अधिक ग्रंथों की रचना की है जो विविध विषयों से संबंधित है जैसे- काव्य संग्रह, काव्य मंजूषा, कविता कलाप, सुमन, आलोचना, रक्षक, हिंदी नव रन,साहित्य सीकर, नाट्यशास्त्र विचार-विमर्श आदि

द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका का संपादन किया यह एक मासिक पत्रिका थी जिसके संपादक द्विवेदी जी सन1903 में नियुक्त हुए थे उन्होंने संस्कृत के कुछ महाकाव्यों के हिंदी में उपन्यास शैली में रूपांतरण किए संस्कृत और अंग्रेजी से बृज भाषा और हिंदी में अनुवाद किया तथा इसके अलावा समालोचनात्मक लेखन किया उन्होंने अपनी मौलिक गद्य और पद्य रचनाएं भी रची निबंध लेखक के रूप में इन्होंने निबंध साहित्य को नई दिशा और सामर्थ्य प्रदान किया | महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय |

महावीर प्रसाद द्विवेदी की मृत्यु 

सन 1938 को रायबरेली में इनका देहांत हो गया था महावीर प्रसाद द्विवेदी एक ऐसे साहित्यकार थे जो बहु भाषा विद होने के साथ साहित्य के विभिन्न विषयों में भी समान रुचि रखते थे उन्होंने भाषा के स्वरूप संगठन, वाक्य विन्यास, विराम चिन्ह के प्रयोग व व्याकरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य के पाठकों को साहित्य के सीमित संसार से निकलकर समाज विज्ञानों के ज्ञान से जुड़ने के लिए प्रेरित किया

उनके साहित्य ने लोगों में देशभक्ति व स्वदेशी का भाव जगा कर स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना वैचारिक सहयोग दिया “आचार्य रामचंद्र शुक्ल” ने अपने हिंदी साहित्य के ‘इतिहास’ नामक ग्रंथ में आधुनिक काल के द्वितीय चरण को महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही “द्विवेदी युग” की संज्ञा दी है जिसका लगभग सभी विद्वानों ने समर्थन किया है | महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय |

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