History

राणा कुंभा का इतिहास हिंदी

राणा कुंभा का इतिहास और जीवन परिचय हिंदी

राणा कुंभा का जन्म

14 वी शताब्दी की शुरुआत में  मेवाड़ में  राणा लाखा का शासन था जिनकी शादी मारवाड़ की राजकुमारी हनसा राठौड़ से हुई थी शादी के कुछ समय बाद ही राणा लाखा की मृत्यु हो गई थी पिता की मृत्यु के बाद 1421 में राणा मोकल का राज तिलक कर दिया गया था राणा मोकल उस समय बच्चे थे इसलिए हनसा देवी ने मेवाड़ के शासन को संभालने के लिए अपने भाई रणमल को मारवाड़ से बुलाया इसके बाद रणमल मारवाड़ से चलकर मेवाड़ में आया यहां आने के बाद उसने पुराने मेवाड़ के सरदारों को हटाकर राठौड़ सरदार नियुक्त कर दिए 1433 में राणा मोकल हिंदू राज साही की स्थापना करने के लिए निकले इसके बाद इनके चाचा ने राणा मोकल की हत्या कर दी थी इस हत्या का समाचार जब मेवाड़ पहुंचा तो सरदारों ने अपने हाथों में तलवार तान ली 

उसी समय 1433 ईस्वी में राज महल में एक वीर बालक का जन्म हुआ और उसने राजगद्दी पर अपनी तलवार रख दी और कहा कि आज से मैं ही  मेवाड़ का राजा हूं मेरी मोहर के नीचे से ही सरकारी काम होंगे यदि किसी को इस बात से कोई आपत्ति हो तो मेरी तलवार को राजगद्दी से हटा दें परंतु इतना साहस किसी में भी नहीं था कि वह राणा कुंभा की तलवार को हटा सके | राणा कुंभा का इतिहास हिंदी

राणा कुंभा का राज्याभिषेक

सन 1433 ईसवी में पिता की मृत्यु के बाद राणा कुंभा का राज्य शासन पर राजतिलक किया गया उस समय उनकी आयु 16 वर्ष थी राणा कुंभा अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए  युद्ध के लिए निकले  इसके बाद राणा कुंभा ने अपने पिता के कातिलों को सारंग के मैदान में टुकड़ों टुकड़ों में काट डाला इसके बाद मेवाड़ पर कब्जा करने की नियत रखने वाले रणमल को मार डाला और संपूर्ण मारवाड़ पर अपना अधिकार कर लिया इसके बाद मालवा के सुल्तान को 5 बार युद्ध में हरा कर उसे बंदी बनाकर चित्तौड़ में कैद कर दिया इसके बाद गुजरात की सेना को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया राणा कुंभा ने कई किले जीते और उन पर अपना अधिकार जमा लिया था | राणा कुंभा का इतिहास हिंदी

राणा कुंभा की शिक्षा 

राणा कुंभा वेद पुराण और उपनिषद के बहुत बड़े विद्वान थे  वह संगीत, नाटक और सभाओं का आयोजन करवाता था उन्होंने अपने समय में अनेकों ग्रंथ लिखे थे राणा कुंभा शिव भगत थे उन्होंने कई शिवलिंगो का निर्माण करवाया था राणा कुंभा के समय में मेवाड़ में 32 दुर्गों का निर्माण करवाया गया था इसके बाद मालवा के शासक हुसंग शाह को हरा  कर सन 1448 में चित्तौड़ में एक ‘“ कीर्ति स्तंभ”  की स्थापना की थी | राणा कुंभा का इतिहास हिंदी

राणा कुंभा द्वारा खिलजी को  पत्र

अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए जब उसने अपने चाचा जी को मारा तो उनके एक सेनापति ने उन्हें उनके बेटों को मारने के लिए भी कहा परंतु  उसके दोनों बेटे युद्ध से भागकर मोहम्मद खिलजी के पास चले गए थे इसके बाद राणा कुंभा ने मोहम्मद खिलजी को पत्र भेजा की मेवाड़ के शत्रुओं को मेवाड़ के हवाले कर दो इसके बाद जवाब में सुल्तान ने कहा कि हम मेवाड़ के सेवक नहीं है जो कि तुम्हारे आदेश का पालन करें यदि मेवाड़ की सेना में ताकत है तो ले जाए इनको, 

इसके बाद सारंगपुर के मैदानों में राणा सांगा और मोहम्मद खिलजी के बीच युद्ध छिड़ गया था राणा सांगा ने मालवा की सेना को 6 घंटों में ढेर कर दिया था इसके बाद सुल्तान की हार को देखकर एका और महका पवार ने अपनी पगड़ी उतारकर राणा कुंभा के चरणों में रख दि और माफी मांग ली इसके बाद राणा कुंभा ने उन दोनों को माफ कर दिया इसके बाद मोहम्मद खिलजी को कद कर चित्तौड़ ले जाया गया जहां पर उसे 6 महीने की कैद के बाद हर्जाना लेकर छोड़ दिया गया था इसके बाद राणा कुंभा ने सहारनपुर के किलो को जीतकर अपने सरदारों को किलो में बिठा दिया था 

मालवा पर विजय प्राप्त करने के बाद राणा कुंभा ने चित्तौड़ में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया 

राणा कुंभा और राहु जोधा के बीच युद्ध 

रणमल की मृत्यु के बाद इनका बेटा राहु जोधा अपनी मारवाड़ी सेना को लेकर मेवाड़ की ओर बढ़ने लगा तभी राणा कुंभा के चाचा जी चुंडा सिसोदिया ने इनका पीछा किया मेवाड़ से लेकर मारवाड़ तक राणा कुंभा की सेना तीरे बरसाती गई और अंत में मेवाड़ की सेना ने मंडोर पर अधिकार कर लिया अब संपूर्ण  मारवाड़ राणा कुंभा के अधीन था कुछ समय बीत जाने के बाद राणा कुंभा की दादी हनसा देवी ने राणा कुंभा और राहु जोधा के बीच संधि करवा दी थी और राहु जोधा को मारवाड़ का कुछ हिस्सा भी दिया गया था | राणा कुंभा का इतिहास हिंदी

राणा कुंभा द्वारा दिग्विजय संघ की स्थापना 

राणा कुंभा ने दिग्विजय संघ की स्थापना करके अपनी पूरी सेना को तैयार करके बूंदी राज्य को घेर लिया जहां जाजपुर के मैदानों में दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ राणा की विशाल सेना को देखकर बूंदी के शासक हाड़ा ने अपना आधिपत्य स्वीकार कर लिया था इस जीत के बाद राणा कुंभा का 1437 ईसवी मै पूर्वी पठारो पर अधिकार हो गया था इतने विशाल इलाके को जीतने के बाद राणा कुंभा ने अपने सेनापति डोडिया नरसिंह के नेतृत्व में एक भारी टुकड़ी सिरोही पर अधिकार करने के लिए भेजी क्योंकि सिरोही के शासक राजा शेषमल ने राणा रणमल की मृत्यु के बाद मेवाड़ पर कई किलो को अपने अधीन कर लिया था इसके बाद नरसिंह डोडिया ने सिरोही और दक्षिण के बड़े भाग को जीत लिया था इसके बाद राणा कुंभा ने उन राज्यों को वापस जीत लिया जो इनके परदादा  राज राणा हमीर सिसोदिया के अधिकार में हुआ करते थे 

राणा कुंभा को हिंदू सूरतान की उपाधि

राणा द्वारा जीते गए इन सभी राज्यों ने राणा कुंभा को हिंदू सुल्तान की उपाधि दी थी जब राणा कुंभा दिग्विजय अभियान मैं व्यस्त थे तब मोहम्मद खिलजी ने एक बार फिर से गागरोन पर आक्रमण कर दिया था  उस समय गागरोन में राणा कुंभा का भांजा पालन सिंह था इस युद्ध में मोहम्मद खिलजी ने गागरोन पर अपना अधिकार जमा लिया इसके बाद पालन सिंह ने  इस  हार का समाचार अपने मामा राणा कुंभा को भेजा इसके बाद राणा कुंभा ने अपनी एक विशाल सेना को लेकर गागरोन पर अपना अधिकार कर लिया था और  खिलजी को यहां से भगा दिया था इसके बाद मोहम्मद  खिलजी राणा कुंभा से परेशान हो चुका था वह भी किले पर अधिकार करता राणा कुंभा उसे खदेड़ देते थे 

चंपानेर की संधि 

इसके बाद मोहम्मद खिलजी ने गुजरात के सुल्तान के साथ मिलकर राणा कुंभा को घेरने की योजना बनाई उसमें गुजरात में सुल्तान कुतुब शाह का शासन था इसके बाद मोहम्मद खिलजी ने गुजरात के सुल्तान को पत्र लिखा कि मेवाड़ की सत्ता पर एक ऐसा राणा बैठा है जिसने हमारे साम्राज्य को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है अगर जल्दी उनको काबू नहीं किया गया तो यह एक दिन मालवा को जीतकर आपके संपूर्ण  साम्राज्य को तहस-नहस कर डालेगा  इसके बाद सुल्तान ने खिलजी द्वारा भेजा गया पत्र स्वीकार कर लिया और उन्होंने तय किया कि हम मेवाड़ को 2 दिशाओं से घेर कर हमला करेंगे और मेवाड़ पर अपना अधिकार कायम करेंगे इस संधि को चंपानेर की संधि कहा जाता है 

बदनोर का युद्ध 

चंपानेर की संधि के बाद गुजरात के सुल्तान कुतुब शाह मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़े उस समय नागौर और सिरोही की सेना भी उसके साथ थी दूसरी तरफ से मोहम्मद खिलजी मालवा से गागरोन पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा जब यह समाचार राणा कुंभा को मिला तो वह बहुत ही क्रोधित हुए और युद्ध के लिए तुरंत तैयार हो गए और बदनोर के मैदानों में एक भयानक युद्ध हुआ इस युद्ध में 4 राज्यों की विशाल सेना ने मेवाड़ के ध्वज को उठाकर आसमान में फेंक दिया यह देख कर कुंभा की सेना आग बबूला हो गई और वह दुश्मनों पर टूट पड़ी हर हर महादेव के नारे के साथ राणा कुंभा शत्रुओ पर टूट पड़े थे इसके बाद इस युद्ध में राणा कुंभा की विजय हुई और उनकी विजय का डंका पूरे राजपूताने में गूंजने लगा राणा कुंभा सदी के सबसे बलवान योद्धा सिद्ध हो  गए थे इस युद्ध के बाद राणा कुंभा ने नागौर और अजमेर पर भी अपना अधिकार कर लिया राणा कुंभा ने अपने समय में जैन मंदिरों का भी निर्माण करवाया था 

राणा कुंभा की मृत्यु

सन 1473 ईसवी में जब राणा कुंभा शिव की पूजा कर रहे थे तब उनके पुत्र उदय सिंह ने राणा कुंभा की गर्दन काट दी जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी राजपूत सरदारों के विरोध के कारण उदय सिंह अधिक दिनों तक सत्ता सुख नहीं ले सका कुछ समय बाद में उदय सिंह की मौत हो गई थी इसके बाद उसका छोटा भाई राजमल राजगद्दी पर बैठा था

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