भारद्वाज ऋषि का इतिहास भारद्वाज ऋषि का जन्म तीन जन्मों का वरदान भारद्वाज ऋषि का विवाह विमान शास्त्र की रचना
भारद्वाज ऋषि का इतिहास
लोक कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना है उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य रहा था वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इन्होंने सौ- सौ वर्ष के तीन जन्म लिए थे भारद्वाज ऐसे ऋषि थे जो मंत्र दृष्टा होने के साथ-साथ आयुर्वेद के भी बड़े आचार्य थे वह बहुत अच्छे शाम गायक भी थे इसलिए चार प्रमुख शाम गायकों में इनका नाम है लोगों के कल्याण के लिए उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की उनका जीवन दर्शन हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है उन्होंने ज्ञान अर्जित किया और उसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया यही कारण है कि वेदों और पुराणों में भी इनकी महिमा गाई गई है भारद्वाज ऋषि राजा भरत के कुल पुरोहित थे दुष्यंत पुत्र राजा भरत ने अपना राजपाट इन्हीं भारद्वाज को सौंपा तथा खुद जंगल में जाकर रहने लगे
भारद्वाज ऋषि का जन्म
भारद्वाज बृहस्पति और ममता के पुत्र थे लेकिन कालांतर में यह राजा भरत के दत्तक पुत्र हुए थे इसके बाद कश्यप और अदिति के पुत्रों ने इनका पालन-पोषण किया था जब भरत का वंश खत्म होने लगा तब उन्हें दत्तक रूप में प्रदान किया शास्त्रों में भी इसका वर्णन है कहते हैं जब सम्राट भरत का वंश खत्म होने लगा तब उन्होंने संतान पाने के लिए मरुथम नामक यज्ञ किया इससे मरुद गणों ने प्रसन्न होकर भरत को भारद्वाज नाम का पुत्र दिया था आगी वंश में हुआ था इनके पिता बृहस्पतिऔर माता का नाम ममता था लेकिन पैदा होते ही माता-पिता में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि इनका पालन-पोषण कौन करें दोनों ने एक दूसरे से कहा था तुम इसे संभालो उसी समय से इनका नाम भारद्वाज पड़ा था इसके बाद इन्होंने अपनी तपस्या के बलबूते पर इस नाम को अमर कर दिया
बाद में वैशाली नरेश ने मरुत्त देवता ने इनका पालन पोषण किया | भारद्वाज ऋषि का इतिहास |
तीन जन्मों का वरदान
राज ऋषि ने अपनी तपस्या से इंद्र देव को प्रसन्न कर उनसे 100 -100 वर्षों के तीन जन्मों का वरदान मांगा था दरअसल भारद्वाज वेदों का अध्ययन करना चाहते थे पर समय की कमी के कारण ना हो सका भारद्वाज ऋषि 3 जन्मों के बाद भी वेदों का पूरी तरह से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके इसके बाद इन्होंने इंद्रदेव से चौथा जन्म मांगा तो उन्होंने इन्हें एक उपाय बताया और कहा कि तुम “सबित्र अग्नि जयन” यज्ञ करो इन्होंने ऐसा ही किया और तब जाकर इनकी जिज्ञासा पूर्ण हुई थी
भारद्वाज ऋषि का विवाह
भारद्वाज ऋषि का विवाह सुशीला से हुआ था और उनका एक पुत्र था गर्ग और एक पुत्री देववर्षिनी थी | भारद्वाज ऋषि का इतिहास |
विमान शास्त्र की रचना
ऋषि भारद्वाज ने विमान शास्त्र की रचना की थी इसका अर्थ होता है- पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे विमान कहते इस ग्रंथ में विमान चालक के लिए कई रहस्यों की जानकारी बताई गई है इन राशियों को जान लेने के बाद ही पायलट विमान चलाने का अधिकारी हो सकता है
श्री राम से मिलन
भारद्वाज ऋषि का श्री राम के साथ अनन्य अनुराग था वनवास के समय श्री राम इनके आश्रम में गए थे भारद्वाज ने श्री राम का बड़े प्रेम से सत्कार किया था श्रीराम ने इनसे रहने के लिए स्थान भी मांगा था तब इन्होंने अपना आश्रम ही लेने का अनुरोध किया था श्रीराम ने इनका आश्रम लेने के लिए मना कर दिया था श्रीराम द्वारा इस प्रस्ताव को नहीं मानने पर चित्रकूट में उनके लिए व्यवस्था की थी रावण का वध करने के बाद भी श्रीराम इनके पास आए थे श्रीराम ने प्रसन्न होकर इन को वरदान दिया था कि जिस मार्ग से गुजरोगे उस मार्ग से वृक्षों के फल फूल बसंत के मौसम की तरह खिल उठेंगे ऐसा कहते हैं जो द्वापरयुग में श्रीकृष्ण से भी इन की भेंट हुई थी
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