History

ग्वालियर का इतिहास

ग्वालियर का इतिहास, तोमर वंश की स्थापना, स्वतंत्रता संग्राम, ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल, ग्वालियर के पर्यटन स्थल

ग्वालियर का इतिहास

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर मध्य प्रदेश राज्य के उत्तर में स्थित है यह शहर और इसका प्रसिद्ध दुर्ग उत्तर भारत के प्राचीन शहरों के केंद्र रहे हैं यह शहर गुर्जर प्रतिहार राजवंश तोमर तथा बघेल कछवाओं की राजधानी रहा है इनके द्वारा छोड़े गए प्राचीन चिन्ह स्मारक हमें किलो व महलों के रूप में मिल जाएंगे सहेज कर रखे गए अतीत के भव्य स्मृति चिन्ह इस शहर को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं आज ग्वालियर एक आधुनिक शहर है और एक जाना माना औद्योगिक केंद्र ग्वालियर को गालव ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है | ग्वालियर का इतिहास |

तोमर वंश की स्थापना

ग्वालियर किले में चतुर्भुज मंदिर एक लिखित संख्या के रूप में शुन्य की दुनिया की पहली घटना का दावा करता है 1231 में इल्तुतमिश ने 11 महीने के लंबे प्रयास के बाद ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और तब से 13 वीं शताब्दी तक ग्वालियर मुसलमान शासन के अधीन रहा 1375 में राजा वीर सिंह को ग्वालियर का शासक बनाया गया और उन्होंने तोमर वंश की स्थापना की थी

इसी तोमर वंश के शासन के दौरान ग्वालियर किले में जैन मूर्तियां बनाई गई राजा मानसिंह तोमर ने अपने सपनों का महल मानसिंह पैलेस बनाया जो अब ग्वालियर किले में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है पांचवी शताब्दी तक, शहर में एक प्रसिद्ध गायन स्कूल था जिसमें तानसेन ने भाग लिया था ग्वालियर पर मुगलों ने लंबे समय तक शासन किया और फिर मराठों ने शासन किया था | ग्वालियर का इतिहास |

स्वतंत्रता संग्राम

1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया था बल्कि यहां के सिंधिया शासक ने अंग्रेजों का साथ दिया जब झांसी पर अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया तब रानी लक्ष्मी बाई ग्वालियर आ पहुंची और वहां के शासक से उन्होंने मदद मांगी अंग्रेजों के सहयोगी होने के कारण सिंधिया ने पनाह देने से इनकार कर दिया किंतु उनके सैनिकों ने बगावत कर दी और किले को अपने कब्जे में ले लिया कुछ ही समय में अंग्रेज भी वहां पहुंच गए और भीषण युद्ध हुआ महाराजा सिंधिया के समर्थन के साथ अंग्रेज 1600 थे

जबकि हिंदुस्तानी 20000 फिर भी बेहतर तकनीक और प्रशिक्षण के चलते अंग्रेज हिंदुस्तानी ऊपर हावी हो गए मार्च 1858 में रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेजों से लड़ते हुए ग्वालियर में वीरगति को प्राप्त हो गई वहीं तात्या टोपे और नानासाहेब वहां से फरार होने में कामयाब रहे रानी लक्ष्मी बाई का बलिदान आज भी पूरे भारत में याद किया जाता है ग्वालियर पर आजादी से पहले सिंधिया वंश का राज था जो मराठा समूह में से एक थे | ग्वालियर का इतिहास |

ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल

मोरार– पहले यह सैन्य क्षेत्र हुआ करता था जिसे मिलिट्री ऑफिसर रेजिडेंशियल एरिया रिजर्व मोरार कहा जाता था और संक्षेप में मुरार
थाटीपुर– रियासत काल में यहां सेना के सरकारी आवास थे जिसका नाम था थटीपुर लानसर था आजादी के बाद यह आवास मध्यप्रदेश शासन के अधीन आ गया जिसे थाटीपुर कहा जाने लगा
सास बहू–  ग्वालियर दुर्ग पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह सहस्त्रबाहु अर्थात हजार भुजाओं वाले भगवान विष्णु को समर्पित है बाद में धीरे-धीरे सास बहू का मंदिर कहा जाने लगा
गोरखी –  पुराने रजिस्ट्रार ऑफिस से गजराराजा स्कूल तक सिंधिया वंश ने रहने का स्थान बनाया था यही उनकी कुलदेवी ‘गोराक्षी’ का मंदिर बनाया गया बाद में यह गोरखी बन गई
पान पत्ते की गोठ– पुणे की मराठा सेना जब पानीपत युद्ध में पराजित होकर लौट रही थी तब उसने यही अपना डेरा डाल लिया इससे पानीपत की गोठ कहा जाता था बाद में यह पान पत्ते की गोट के नाम से जाना जाने लगा | ग्वालियर का इतिहास |

ग्वालियर के पर्यटन स्थल

राजा मानसिंह किला’- सेंड स्टोन से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता है और शहर का प्रमुख स्मारक है एक ऊंचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिए एक बेहद ऊंची चढ़ाई वाली पतली सड़क से होकर जाना होता है इस सड़क के आसपास की बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जैन तीर्थ कारों की विशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती से बारीकी से बनाई गई हैं किले की 300 फीट ऊंची इस किले की अभिजीत होने की गवाह है इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं

पंद्रहवीं शताब्दी में निर्मित गुजरी महल इसमें से एक है जो राजा मानसिंह और गुर्जर रानी मृगनैनी के गहन प्रेम का प्रतीक है इस महल के बाहरी भाग को इनके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सब प्रयास सुरक्षित रखा है किंतु आंतरिक हिस्सों को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया यहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं यह दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं ग्वालियर किले से आगरा 120 किलोमीटर दूर स्थित है इसे भारत का ‘जिब्राल्टर’ भी कहा जाता है

मान मंदिर महल– इसे 1486 -1517 के बीच ग्वालियर के राजा मान सिंह द्वारा बनाया गया था सुंदर रंगीन टाइलों से सजे इस किले की समय ने भव्यता छीनी जरूर है किंतु इसके कुछ आंतरिक वह बाहरी हिस्सों में इन नीली, पीली, हरी, सफेद टाइल्स द्वारा बनाई उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेष अब भी इस किले के भव्य अतीत को दर्शाते हैं राजा मानसिंह पराक्रमी योद्धा होने के साथ ही ललित कला प्रेमी, व स्थापत्य शैली के जानकार भी थे

उनके शासनकाल को ग्वालियर का स्वर्ण युग कहा जाता है इस किले के विशाल कक्षों में अतीत आज भी संपादित है यहां जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है जिसके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेती और संगीत सीखती थी इस महल के तहखानो में एक कैदखाना है औरंगजेब ने यहां अपने भाई मुराद को कैद रखा था और बाद में उसे समाप्त करवा दिया “जौहर कुंड” भी

यहां स्थित है इसके अतिरिक्त किले में इस शहर के प्रथम शासक के नाम एक कुंड है सूरजकुंड विष्णु जी का एक मंदिर है सास बहू मंदिर इसके अलावा यहां एक सुंदर गुरुद्वारा भी है जो सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद जी की स्मृति में निर्मित हुआ जिन्हें जहांगीर ने 2 वर्ष तक यहां बंदी बनाए रखा था

गोपाचल पर्वत– गोपाचल पर्वत ग्वालियर के किले के अचल में, प्राचीन कलात्मक जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय यहां पर हजारों विशाल जैन मूर्तियां सन 1398-1536 के मध्य पर्वत को तराश कर बनाई गई है इन विशाल मूर्तियों का निर्माण तोमर वंश “राजा वीरमदेव डूंगर सिंह” के काल में हुआ था | ग्वालियर का इतिहास |

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