History

हड़प्पा सभ्यता का इतिहास 

हड़प्पा सभ्यता का इतिहास, हड़प्पा सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा सभ्यता से मिली वस्तुएं , हड़प्पा सभ्यता की खोज , हड़प्पा सभ्यता का समाज , हड़प्पा सभ्यता का पतन 

हड़प्पा सभ्यता का नामकरण 

हड़प्पा सभ्यता का नाम, जहां यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी उसी के नाम पर किया गया है इस का काल निर्धारण लगभग 2600 से 1900ईसा पूर्व के बीच किया गया है हड़प्पा सभ्यता की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है इसलिए इस सभ्यता के धार्मिक सामाजिक और राजनीतिक पक्ष पर स्पष्ट रूप से कोई प्रकाश नहीं डाला जा सकता

हड़प्पा सभ्यता से मिले पुरातात्विक स्रोतों से इस सभ्यता की धार्मिक और सामाजिक पक्ष कुछ उजागर होते हैं लेकिन हमें ध्यान रखना आवश्यक है कि इस संबंध में विद्वानों ने जो भी मत दिए वे सब अनुमान पर आधारित है, सर्वमान्य नहीं है हड़प्पा सभ्यता की खोज से पहले माना जाता है कि भारतीय धर्म और संस्कृति का आरंभ वैदिक संस्कृत से हुआ है लेकिन अब यह पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया गया है कि हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति का भारतीय धर्म और संस्कृति में एक बड़ा योगदान है लिंग, योनि, देवी, शिव, अग्नि, वृक्ष, पशु, नाग, अमानवीय देवता की पूजा, योग क्रिया, ताबीज आदि हिंदू धर्म को हड़प्पा संस्कृति की ही देन है| हड़प्पा सभ्यता का इतिहास |

हड़प्पा सभ्यता से मिली वस्तुएं 

हड़प्पा में मातृदेवी कही जाने वाली मूर्तियां बड़ी संख्या में मिली है जो टेराकोटा कहलाती है एक  मूर्ति पर एक नग्न स्त्री सिर झुकाए दोनों पैर फैलाए हैं और एक पौधा उसके योनि से बाहर निकल रहा है इसकी व्याख्या धरती माता के रूप में की गई है इसका संबंध पौधे के जन्म और वृद्धि से रहा होगा इसलिए मालूम होता है कि हड़प्पा लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे

हड़प्पा से एक पुरुष देवता की चित्रित मुहूर मिली है वह एक योगी की ध्यान मुद्रा में एक टांग पर दूसरी टांग डाले बैठा दिखाया गया है इन्होंने भैंस के सिंह पर मुकुट पहना है वह 4 पशुओं से गिरा है हाथी, गैंडा, भैंस और बाघ इन के नीचे एक भैसा है और पांव पर दो हिरण जॉन मार्शल ने इन्हें पशुपति महादेव बतलाया है इन्हें हिंदू धर्म के शिव देवता जैसी समानता दी है जो ‘पशुपति’ के नाम से जाने जाते हैं

हड़प्पा के लोग लिंग और योनि की पूजा भी करते थे क्योंकि हड़प्पा में पत्थर पर बने इनके अनेकों प्रतीक मिले हैं यह पुरुष और स्त्री प्रजनन ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है यह पूजा के लिए बने थे लिंग पूजा हड़प्पा काल में शुरू हुई और आगे चलकर हिंदू समाज में की जाने लगी ऋग्वेद में लिंग पूजा की चर्चा मिलती है हड़प्पा काल में पशु पूजा का प्रचलन भी था कई पशु मोहरों पर अंकित मिले हैं

इनमें सबसे महत्वपूर्ण एक सिंग वाला जानवर है जो गैंडा हो सकता है इसी प्रकार सींग वाले देवता का प्रतीक भी मिला है हड़प्पा से मिले शील ताबीज और ताम्र पर वृक्ष छोटे वनस्पति और पशुओं के चित्रण में से कुछ का निश्चित रूप से धार्मिक उद्देश्य रहा होगा इन पर अंकित पीपल के वृक्ष को आज भी पूजा जाता है कई बार वृक्षों के भीतर से जागते हुए चेहरों को दिखाया गया है जो वृक्ष के देवता को चित्रित करने का प्रयास था हड़प्पा से ताबीज बड़ी तादाद में मिले हैं शायद हड़प्पा के लोग भूत-प्रेत में विश्वास करते थे इसलिए उनसे बचने के लिए ताबीज पहनते थे

अर्थवेद में अनेक तंत्र मंत्र और जादू टोने दिए गए हैं और भूत प्रेतों को भगाने के लिए ताबीज बताए गए हैं कालीबंगा के एक शिल्प पर सींग वाले देवता के सामने एक पशु को खींचकर ले जाते हुए दिखाया गया है कुछ लोगों ने इसे पशु बलि प्रथम माना है कालीबंगा से ही प्राप्त एक अन्य शिल्प पर एक ही स्त्री को दो पुरुष बलपूर्वक खींच रहे हैं और उनके हाथों में तलवार है कुछ लोगों का मानना है कि यह नर बलि की प्रथा हो सकती है | हड़प्पा सभ्यता का इतिहास |

हड़प्पा सभ्यता की खोज 

1826 ईसवी में सर्वप्रथम हड़प्पा टीले का उल्लेख चार्ल्स मेसन ने किया था इसके बाद 1856 ईसवी में जॉन बर्टन एवं विलियम बर्टन ने कराची से लाहौर तक रेल लाइन बिछाने के दौरान हुई खुदाई में पुरातात्विक अवशेष प्राप्त किए इसके बाद 1873 ईसवी में कनिंघम को भी पुरा वस्तुएं प्राप्त हुई इसके बाद 1912 ईस्वी में जे.एफ. फ्लीट ने यहां से प्राप्त वस्तु के आधार पर लेख लिखा

इसके बाद 1921 ईस्वी में दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के तट पर स्थित हड़प्पा नामक स्थल पर पुरातात्विक उत्खनन कर हड़प्पा मोहरे प्राप्त की थी इसके बाद 1922 में राखल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की थी 1924 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समस्त विश्व के समस्त सिंधु घाटी सभ्यता की खोज की घोषणा की है | हड़प्पा सभ्यता का इतिहास |

हड़प्पा सभ्यता का समाज 

हड़प्पा सभ्यता में ग्रामीण और नगरीय दोनों प्रकार के जीवन व्यतीत करने वाले लोग रहते थे हड़प्पा समाज में कृषक, गडरिया, मछुआरे ,नाविक, शिल्पकार, व्यापारी, शासक, प्रशासनिक अधिकारी या पुरोहित वर्ग,ईटों का काम करने वाले, कुएं खोदने वाले, नाव बनाने वाले, शिल्पमूर्ति कार, बाजार के विक्रेता सभी प्रकार के लोग रहते थे

कुछ कृषक,नगरो में रहते थे जो निकटवर्ती खेतों पर खेती करते थे और मोहनजोदड़ो के शहरों में संग्राहक और मछुआरे वर्ग के निवास के प्रमाण मिले हैं हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थानों से प्राप्त मकानों के आकार, आभूषणों के संग्रह से संकेत मिलता है कि इनकी संपत्ति तथा सामाजिक स्तर में काफी विभिनता रही होगी इसलिए विभाजन या सामाजिक विभिन्नता जो व्यवसाय संपत्ति के आधार पर रही होगी जैसे मोहरे और प्रतिमा  दक्षता के साथ बनाई गई है,

वही स्त्री मूर्तियों को बहुत ही सरल तरीके से बनाया गया है प्रथम कोटि की कलाकृतियों का उपयोग उच्च वर्ग के लोगों में होता था और द्वितीय कोटि का अंश मान्य में हड़प्पा की स्त्रियां छोटे लेंगे पहनती थी जो सूत और उन के बने होते थे वह बहुत प्रकार की शैलियों की चोटियां गूंथती थी और जुड़े बनाती थी हड़प्पा काल के बच्चे अपना समय खिलौनों से खेलने में व्यतीत करते थे

हड़प्पा के स्थलों से बहुत सारे खिलौने पाए गए हैं टेराकोटा के बने कुत्तों से पता चलता है कि हड़प्पा वासी कुत्तों को पालते थे मोहनजोदड़ो हड़प्पा जैसे स्थानों से कुछ चक्की पीसते हुए औरतों को दिखलाया गया है इससे स्पष्ट होता है कि औरतों का खाद्य पान में महत्वपूर्ण योगदान रहता होगा हड़प्पा का समाज काफी अनुशासित था

रप्पा के लोग राजा की वजह परिषद द्वारा शासित होते थे हड़प्पा के लोग कृषि किया करते थे हड़प्पा के लोग बहुत सारे पशु पालते थे बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर भी रखते थे वे गधे और ऊंट भी पालते थे और इन पर बोझा ढोते थे घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो से मिलता है हड़प्पा के लोग पत्थर के बहुत सारे औजार और उपकरणों का प्रयोग करते थे 

हड़प्पा सभ्यता का पतन 

हड़प्पा सभ्यता का पतन 1750 ईसा पूर्व के आसपास हुआ था इस के पतन के अनेक कारण बताए जाते हैं कुछ विद्वानों का मानना है कि अचानक सिंधु नदी में बाढ़ आई होगी और इस सभ्यता का पतन हो गया होगा दूसरा मत यह है कि आर्यों के आक्रमण के कारण हड़प्पा सभ्यता का अंत हो गया तीसरी मान्यता यह है कि प्राकृतिक आपदा के कारण इस सभ्यता का पतन हो गया | हड़प्पा सभ्यता का इतिहास |

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