History

तानाजी मालुसरे का इतिहास

तानाजी मालुसरे का इतिहास, तानाजी का जन्म कब हुआ, तानाजी के पिता का नाम क्या था, तानाजी कौन सी समाज के थे, तानाजी की मौत कैसे हुई

तानाजी मालुसरे का जन्म 

तानाजी मालुसरे मावलों में एक पराक्रमी योद्धा थे तानाजी मालुसरे वीर शिवाजी के सेनापति और मराठों के सरदार थे उनकी वीरता के कारण शिवाजी महाराज उन्हें सिंह कहां करते थे तानाजी मलूसरे 1600ईस्वी में जन्मे थे उनके पिताजी का नाम सरदार “कोहला जी” और उनकी माता जी का नाम पार्वती था के भाई का नाम सरदार सूर्या जी था जब शिवाजी महाराज कोडाना किले को जीतने की योजना बना रहे थे तब तानाजी अपने पुत्र की शादी में व्यस्त थे 

सिंहगढ़ को जीतने की योजना 

केवल 16 वर्ष की आयु में ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने साम्राज्य स्थापित करने की प्रतिज्ञा की थी गिने-चुने मावलों में धर्म प्रेम की जागृति कर उन्हें लड़ना सिखाया और स्वराज की संकल्पना से उन्हें अवगत कराया था हिंदू स्वराज्य के लिए गिने-चुने मावलों ने प्राणों की चिंता किए बिना अपने आप को झोंक दिया पांच मुसलमानी सल्तनत के विरोध में लड़ते-लड़ते 1-1 भू प्रदेश को जीत लिया था तहसील भोरके सहयाद्री पर्वत के एक शिखर पर विराजित रायरेश्वर के स्वयंभू शिवालय में छत्रपति शिवाजी महाराज ने 26 अप्रैल 1635 में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की शपथ ली थी

12 मावल प्रांतों से सभी लोग भोरके पहाड़ों से परिचित थे इन सिहसमान महा पराक्रमी मावलों को साथ लेकर शिवाजी महाराज ने स्वयंभू रायरेश्वर के समक्ष स्वराज की प्रतिज्ञा ली थी जून 1665 के पुरंदर समझौते के अनुसार शिवाजी महाराज को मुगलों के हाथों सिंहगढ़ समेत 23 किले सौंपने पड़े थे इस समझौते ने मराठों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी परंतु इस समझौते से शिवाजी की माता जीजाबाई को बहुत ही पीड़ा हुई थी शिवाजी महाराज अपनी माता जी को बहुत ही चाहते थे किंतु उनकी इच्छा पूरी नहीं कर सके क्योंकि सिंह गढ़ जीतना असंभव था राजपूत, अरब एवं पठान उसकी रक्षा कर रहे थे | तानाजी मालुसरे का इतिहास |

माता जीजाबाई की प्रतिज्ञा 

शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक सिंहगढ़ का किला वापस नहीं मिल जाता तब तक वह अन्न जल ग्रहण नहीं करेगी शिवाजी महाराज के सरदार उनकी बात से सहमत है किंतु जीजाबाई उनकी बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं थी कहते हैं एक बार तो औरत कोई बात ठान लेती है तो उसमें चमत्कारी शक्ति आ जाती ,है तथा शिवाजी महाराज की माताजी जीजाबाई इसका उत्तम उदाहरण है एक सवेरा जब वह प्रतापगढ़ की खिड़की से देख रही थी उस समय कुछ दूरी पर उन्हें सिंहगढ़ दिखाई दिया यह किला मुगलों के आधिपत्य में है,यह सोच कर उन्हें बहुत क्रोध आया इसके बाद उन्होंने तुरंत एक घुड़सवार को शिवाजी महाराज के पास रायगढ़ भेजा तथा उसके साथ संदेशा भेजा कि वे तुरंत प्रतापगढ़ उपस्थित हो

शिवाजी महाराज बुलाने का कारण जाने बिना, अपने माता के संदेशानुसार तुरंत उपस्थित हुए जिजाबाई उनसे क्या चाहती थी यह जानते ही उनका दिल बैठ गया उन्होंने जी जान से जीजाबाई को समझाने का प्रयास किया पर जोर प्रयास के पश्चात भी सिंह गढ़ जीतना असंभव था इसके बाद शिवाजी महाराज ने कहा उसे जीतने के लिए बहुत से जन गए, किंतु वापस एक भी नहीं आया ‘आम के बीच बहुत बोय किंतु एक भी पेड़ नहीं उगा’ अपनी माता के दुखी होने के डर से उन्होंने एक व्यक्ति का नाम सोचा जिस पर यह भयंकर उत्तरदायित्व सौंपा जा सकता था उसका नाम था “तानाजी मालुसरे” इसके अतिरिक्त शिवाजी महाराज किसी और का नाम सोच भी नहीं सकते थे | तानाजी मालुसरे का इतिहास |

कोंढाणा किले पर चलाएं 

तानाजी उनके बचपन के अमूल्य मित्र थे वह बड़ी ही हिम्मत वाले थे तथा हर मुहिम पर शिवाजी महाराज के साथ थे जब शिवाजी महाराज से रायगढ़ पर मिलने का संदेश प्राप्त हुआ तब तानाजी मालुसरे अपने गांव में अपने बेटे की विवाह की योजनाओं में व्यस्त थे महाराज का संदेश मिलने पर तानाजी ने कहा कि शादी के नगाड़े बंद कीजिए और युद्ध के नगाड़े बजाने शुरू कीजिए यदि मैं जिंदा रहा तो अपने बेटे का विवाह विधि पूर्वक करूंगा यदि वीरगति को प्राप्त हुआ तो मेरे बेटे का विवाह महाराज शिवाजी ही करेंगे इसके बाद तानाजी मालुसरेअपने भाई सूर्या जी तथा मामा शेलार के साथ महाराज शिवाजी से मिलने के लिए प्रतापगढ़ पहुंचे

शिवाजी ने तानाजी को मुहिम के विषय में जानने के लिए जीजाबाई के पास भेजा जीजाबाई ने तानाजी को कहा कि सिंह गढ़ के किले से हरा ध्वज हटाकर वहां पर केसरिया ध्वज फराओ यह मेरी प्रतिज्ञा है मुहिम की परवाह न करते हुए शेर दिल तानाजी ने मरने और मारने की प्रतिज्ञा की इसके बाद तानाजी ने रात को मुहिम का आरंभ किया तथा “कोकण” की ओर से छुपकर वर्ष 1670 में फरवरी की ठंडी अंधेरी रात में अपने साथियों को लेकर किले की ओर प्रस्थान किया भर अपने साथ शिवाजी महाराज की प्रिय गोह ले गए थे जिससे किले पर चढ़ने में आसानी हो इस प्राणी की कमर में रस्सी बांधकर उसके सहारे किले पर पहुंचने का प्रयास किया किंतु वह बड़ी छिपकली ऊपर चढ़ना नहीं चाहती थी जैसे वह आगे आने वाले संकट के विषय में तानाजी को आगाह कराना चाहती थी

तानाजी को उनके सभी सेनापतियों ने भी उन्हें किले पर चढ़ाई करने से इंकार कर दिया था इसके बाद तानाजी बड़े क्रोधित हुए और गोह उनका संकेत समझ गई तथा तट बंदी से चिपक गई जिससे मराठा सैनिकों को किले पर चढ़ने में मदद मिली लगभग 300 लोग ही अब तक ऊपर तक चढ़ पाए थे की पहरेदारो को उनके आने की भनक हो गई मराठा सैनिकों ने पहरेदारो को तुरंत काट डाला, किंतु शास्त्रों की खनखनहाट से गढ़ की रक्षा करने वाली सेना जाग गई थी तानाजी के सामने बड़ी गंभीर समस्या खड़ी हुई ,उनके 100 सैनिक अभी नीचे ही खड़े थे तथा उन्हें अपने से कहीं अधिक संख्या में सामने खड़े शत्रु से दो-दो हाथ करने पड़े उन्होंने मन ही मन निश्चय किया तथा अपने सैनिकों को चढ़ाई करने की आज्ञा दी | तानाजी मालुसरे का इतिहास |

तानाजी का मुगलों के साथ युद्ध 

इसके बाद लड़ाई आरंभ हो गई तानाजी के कई लोग मारे गए किंतु उन्होंने भी मुगलों के बहुत सैनिकों को मार गिराया था अपने सैनिकों की हिम्मत बढ़ाने के लिए तानाजी जोर-जोर से गा रहे थे थोड़े समय के पश्चात मुगलों का सरदार उदय भान तानाजी से लड़ने लगा इस युद्ध में मराठों को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था रात की लंबी दौड़, मुहिम की चिंता, किले की दुर्ग चढ़कर आना, तथा घमासान युद्ध करना इन सारी बातों पर तानाजी पूर्व में ही कड़ा परिश्रम कर चुके थे

इस पर उदय भान ने युद्ध कर उन्हें पूरा ही थका दिया इसके बाद लंबी लड़ाई के पश्चात तानाजी गिर गए अपने नेता की मृत्यु सम्राटों के पांव तले से भूमि खिसक गई तानाजी ने जितना हो सके, उतने समय युद्ध जारी रखा जिससे नीचे खड़े 100 सैनिक पहरा तोड़कर अंदर घुसने में सफल हो वे तानाजी के बंधु सूर्या जी के नेतृत्व में लड़ रहे थे सूर्या जी बिल्कुल समय पर पहुंच गए तथा उनकी प्रेरणा से मराठों को अंत तक लड़ने की हिम्मत प्राप्त हुई मुगल सरदार की हत्या हुई तथा पूरे किले की सुरक्षा तहस-नहस हो गई सैकड़ों मुगल सिपाही खुद को बचाने का प्रयास में किले से कूद पड़े तथा उसमें मारे गए थे

मराठों को बड़ी विजय प्राप्त हुई थी किंतु उनकी छावनी में खुशी नहीं थी जीत का समाचार शिवाजी महाराज को भेजा गया था जो तानाजी का अभिनंदन करने तुरंत कोंढाणा की ओर निकल पड़े किंतु बड़े दुख के साथ उन्हें उस शूरवीर की मृत्यु देह देखनी पड़ी कान्हा जी के पति महाराज के मन में जो प्रेम था उस कारण में 12 दिनों तक रोते रहे जीजाबाई ने विलाप करते हुए शमशेर निकाली और कहा शिवाजी महाराज जो एक राजा तथा बेटा भी है आज उसकी देह से एक महत्वपूर्ण हिस्सा कट चुका है शिवाजी महाराज को अपने मित्र की मृत्यु की सूचना प्राप्त होता ही उन्होंने कहा “हमने गढ़ जीत लिया है, किंतु एक सिंह को खो दिया है” इसके बाद शिवाजी महाराज ने अपने परम मित्र तानाजी की याद में कोंढाणा किले का नाम “सिंह गढ़” रख दिया था | तानाजी मालुसरे का इतिहास |

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