History

हुमायूं का इतिहास

हुमायूं का इतिहास, हुमायूं का जन्म, हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच युद्ध, चौसा का युद्ध, हुमायूं का विवाह, हुमायूं का हिंदुस्तान पर कब्जा, हुमायूं की मृत्यु 

हुमायूं का इतिहास

हुमायूं को पुस्तकें पढ़ने का बहुत ही शौक था हुमायूं की एक आत्मकथा है जिसका नाम हुमायूंनामा है जो कि उनकी बहन गुलबदन बेगम ने लिखी थी इसमें हुमायूं की हर छोटी-बड़ी घटना के बारे में बताया गया है किस प्रकार से हुमायूं का जीवन व्यतीत हुआ इस सब का वर्णन हुमायूंनामा में वर्णित किया गया है

हुमायूं का जन्म

हुमायूं का जन्म 1508 ईसवी में काबुल में हुआ था इनके पिता जी का नाम बाबर और उनकी माता जी का नाम महा महम बेगम था हुमायूं का पूरा नाम नासीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं था हुमायूं बाबर का सबसे बड़ा बेटा था जब हुमायूं बीमार पड़ा तो बाबा ने भगवान से प्रार्थना की कि है भगवान मेरे बेटे की बीमारी मुझे दे दीजिए और मेरे बेटे को स्वस्थ कर दीजिए

इसके बाद ऐसा ही हुआ लोगों का मानना है कि यह भगवान का चमत्कार था इसके बाद बाबर बीमार हो गया और 1530 में उनकी मृत्यु हो गई  बाबर की मृत्यु के बाद 23 वर्ष की आयु में हुमायूं राजगद्दी पर बैठा हुमायूं ने अपने भाइयों से भी उदारता से व्यवहार करते हुए उन्हें काबुल, कंधार, पंजाब और अलवर की सुबेदारी दे दी उन्होंने अपने चारों भाइयों को अलग अलग जागिरे सौंप दी थी सन 1532 में हुमायूं और मोहम्मद लोधी के बीच दोहरिया का युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद लोधी की पराजय हुई थी | हुमायूं का इतिहास | 

हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच युद्ध

सन 1532 में हुमायूं ने शेरशाह के कब्जे वाले चुनारगढ़ के किले पर आक्रमण कर दिया हुमायूं ने शेरशाह के किले को चारों तरफ से घेर लिया था शेरशाह चारों तरफ से गिर जाने पर हुमायूं से समझौता कर लिया और अपने पुत्र कुतुब खा को एक सेना टुकड़ी के साथ हुमायूं की सेना में भेजना स्वीकार कर लिया बदले में हुमायूं ने चुनार का किला छोड़ दिया था यह माना जाता है कि शेर शाह को छोड़ना हुमायूं की सबसे बड़ी भूल थी

इसके बाद 1535 में हुमायूं और गुजरात के शासक बहादुर शाह से सारंगपुर में युद्ध हुआ जिसमें बहादुर शाह की पराजय हुई और वे मांडू भाग गया परंतु 1 वर्ष बाद 1536 में बहादुर शाह गुजरात पर अधिकार पाने में सफल रहा इसके बाद 1536 ईसवी में बहादुर शाह की मृत्यु हो गई थी

 चौसा का युद्ध

26 जनवरी 1539 ईसवी में गंगा नदी के तट पर हुमायूं और शेर शाह सुरी के बीच चौसा का युद्ध हुआ जिसमें हुमायूं की पराजय हुई इस युद्ध में हुमायूं ने एक भीस्ती का सहारा लेकर गंगा नदी पार कर अपनी जान बचाई थी जब हुमायूं फिर से सुल्तान बना तो उसने उसकी जान बचाने वाले व्यक्ति को दिल्ली की जागीर सौंपी थी चौसा का युद्ध जीतने के बाद शेरखान ने अपने आप को शेरशाह की उपाधि से अलंकृत किया था इसके बाद 17 मई 1540  को हुमायूं और शेर शाह सुरी के बीच बिलग्राम का युद्ध हुआ इस युद्ध में भी हुमायूं की पराजय हुई और शेर खान ने आगरा और दिल्ली पर अधिकार कर लिया था

इस युद्ध को हारने के बाद हुमायूं सिंध भाग गया और 15 साल जंगलों में घुमक्कड़ो जैसा जीवन व्यतीत किया था इस दौरान हुमायूं ने सिंध के शासक राजपूत छत्रसाल के पास अपनी शरण ली उसी दौरान हुमायूं की बेगम ने अकबर को जन्म दिया था उस समय हुमायूं के पास अपने बेटे की जन्म की खुशी मनाने के लिए कुछ भी नहीं था इसके बाद हुमायूं राजा छत्रसाल से कुछ सहायता लेकर ईरान चला जाता है ईरान के शासक ने हुमायूं को कुछ सैन्य सहायता प्रदान की थी

हुमायूं का विवाह

जब हुमायूं जंगलों में अपना जीवन व्यतीत कर रहा था तो इसी दौरान हुमायूं ने अपने अध्यात्मिक गुरु अमीर अली की पुत्री हमीदा बेगम से 29 अगस्त 1541 ईसवी में निकाह कर लिया जिनसे उन्हें अकबर पुत्र की प्राप्ति हुई थी इसके बाद 1545 ईसवी में हुमायूं ने काबुल और  कंधार पर अधिकार कर लिया हिंदुस्तान पर पुनःअधिकार करने के लिए हुमायूं 4 दिसंबर 1554 ईस्वी को पेशावर पहुंचा | हुमायूं का इतिहास | 

हुमायूं का हिंदुस्तान पर कब्जा

1 फरवरी 1555 को शेरशाह की मृत्यु के बाद हुमायूं ने फिर से हिंदुस्तान में आकर लाहौर पर कब्जा कर लिया था 15 मई 1555 हुमायूं और अफ़गानों के बीच मछीवाड़ा का युद्ध हुआ जिसमें हुमायूं की जीत हुई थी 22 जून 1555 को बैरम खां के नेतृत्व में मुगलों का अफगान सेना के सुल्तान सिकंदर से युद्ध हुआ जिसमें अफ़गानों की हार हुई थी इस प्रकार हुमायूं ने धीरे-धीरे अपना राज्य फिर से हिंदुस्तान में स्थापित कर लिया था इस प्रकार 23 जुलाई 1555 ईसवी को हुमायूं एक बार फिर से दिल्ली के तख्त पर बैठा किंतु वह बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सका

हुमायूं की मृत्यु

1 जनवरी 1556 को दिनपनाह पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की मृत्यु हो गई थी हुमायूं का मकबरा दिल्ली में स्थित है

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