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कामधेनु गाय का रहस्य

कामधेनु गाय का रहस्य कामधेनु गाय से संबंधित कथा कामधेनु गाय का चमत्कार

कामधेनु गाय का रहस्य 

हिंदू धर्म में हमेशा से ही गाय को एक पवित्र पशु माना गया है ना केवल एक जीव बल्कि हिंदू मान्यताओं ने गाय को मां की उपाधि दी है गाय को मनुष्य का पालनहार माना गया है और इससे मिलने वाले दूध को अमृत के समान माना जाता है कामधेनु गाय की बेटी का नाम नंदिनी है लेकिन यह मान्यता कुछ महीनों वर्षों जब दर्शकों की नहीं युगो से ही गायकी पूजनीय माना गया है अगर आप हिंदू धर्म को समझते हैं या फिर हिंदू मान्यताओं की जानकारी रखते हैं तो शायद आपने कामधेनु गाय के बारे में भी सुना होगा हिंदू धर्म के अनेक धार्मिक ग्रंथों में कामधेनु गाय का जिक्र किया गया है और कहते हैं कि कामधेनु गाय में दैवीय शक्तियां थी जिसके बल पर वह अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती थी

यह गाय जिसके भी पास होती थी उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था लेकिन इस गाय के दर्शन मात्र से भी मनुष्य के हर कार्य सफल हो जाते थे दिव्य शक्तियां प्राप्त कर चुकी कामधेनु गाय का दूध भी अमृतम चमत्कारी शक्तियों से भरपूर माना जाता था और यही कारण है कि कामधेनु गाय को मात्र एक पशु मानने की बजाय माता की उपाधि दी गई है एक ऐसी मां जो अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करती है उन्हें पेट भरने के लिए आहार देती है और उनका पालन पोषण करती है लेकिन क्या आप जानते हैं

कामधेनु गाय की उत्पत्ति कहां से हुई एक पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय देवताओं और दैत्यों को समुंदर में से कई वस्तुएं प्राप्त हुई जैसे कि मूल्यवान रत्न ,अप्सराएं ,शंख वृक्ष ,चंद्रमा ,पवित्र ,अमृत कुछ अन्य देवी देवताओं और “हलाहल नामक अत्यंत घातक विष ”  भी इसी “ समुद्र मंथन के दौरान कामधेनु गाय की उत्पत्ति ”हुई थी पुराणों में कामधेनु गाय को नंदा, सुनंदा ,सुरभि, सुशीला और सुमन भी कहा गया है  कामधेनु गाय में 33 प्रकार के देवी देवता  होते हैं कामधेनु गाय से संबंधित पुराणों में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं कृष्ण कथा में अंकित सभी पात्र किसी ना किसी कारणवश  श्राप ग्रस्त होकर जन्मे थे कश्यप ने वरूण से कामधेनु मांगी थी लेकिन बाद में उनको नहीं लौटई इसलिए वरुण के श्राप से ग्वाले हुए | कामधेनु गाय का रहस्य |

कामधेनु गाय से संबंधित एक और कथा

 विष्णु के मानव रूपी अवतार भगवान परशुराम से जुड़ी है जिसके अनुसार एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों को पार करता हुआ यानी कि भगवान परशुराम के पिता के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंच गया महर्षि ने राजा को अपने आश्रम का मेहमान समझ कर स्वागत सत्कार किया और उन्हें आसरा दिया उन्होंने सहस्त्रार्जुन की सेवा में किसी भी प्रकार की कोई कसर नहीं छोड़ी यह बात तब की है जब ऋषि जमदग्नि के पास देवराज इंद्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नाम की अद्भुत गाय थी राजा नहीं जानते थे यह गाय कोई साधारण पशु नहीं बल्कि दैवीय गुणों वाली कामधेनु गाय हैं | कामधेनु गाय का रहस्य |

कामधेनु गाय का चमत्कार  

लेकिन कुछ समय के पश्चात जब राजा ने गाय के चमत्कार को देखें तो वह दंग रह गए महर्षि का आश्रम काफी साधारण था ना अधिक सुविधाएं थी और ना ही काम में हाथ बटाने लायक कोई सेवक लेकिन महर्षि ने कामधेनु की मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते राजा और उनकी पूरी सेना के लिए भोजन का प्रबंध कर दिया कामधेनु के ऐसे  गुणों को देखकर शास्त्र आज उनको ऋषि के आगे अपना राज्य सुख कम लगने लगा अब उनके मन में महर्षि से उस गाय को ले जाने की तरकीब भी बनने लगी लेकिन सबसे पहले राजा ने सीधे ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा लेकिन जब ऋषि जमदग्नि ने आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर उसे देने से इंकार कर दिया तो राजा ने बुराई का मार्ग चुनना सही समझा और राजा ने गुस्सा होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया 

सब कुछ सत्यानाश हो गया लेकिन यह सब करने के बाद जैसे ही राजा सहस्त्रार्जुन अपने साथ कामधेनु को ले जाने लगे तभी वह गाय उसके हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई और आखिरकार दुष्ट राजा को वह गाय नसीब नहीं हुई लेकिन वहीं दूसरी ओर महर्षि जमदग्नि दोहरे नुकसान को झेल रहे थे एक और वह अपनी कामधेनु गाय को खो चुके थे और दूसरी और आश्रम भी नहीं रहा था उनके पास कुछ समय के पश्चात महर्षि के पुत्र भगवान परशुराम आश्रम लौटे और जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो हैरान रह गए इस हालात का कारण पूछने पर उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बातें विस्तार पूर्वक बताएं परशुराम माता के अपमान और आश्रम को तहस-नहस देखकर आवेश में आ गए पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया

परशुराम और सहस्त्रार्जुन के बीच युद्ध 

 परशुराम अपने परसों अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर  मेंसमती पहुंचे वहां पहुंचने पर सहस्त्रार्जुन  और उनके बीच भयंकर युद्ध हुआ लेकिन परशुराम के प्रचंड के आगे अर्जुन हार गया लेकिन भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन के हजारों भुजाएं और धड़ परसों से काट कर उसका वध कर दिया सहस्त्रार्जुन के वध के बाद जैसे ही परशुराम अपने पिता के पास वापस आश्रम पहुंचे तो उनके पिता ने उन्हेंआदेश दिया कि इस वध का प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जाए  इसके बाद ही राजा की मृत्यु का पाप खत्म होगा 

कामधेनु गाय की प्रतिमा के फायदे

हम कामधेनु गाय की मूर्ति रख कर पूजा अर्चना कर सकते हैं रोजाना कामधेनु के दर्शन कर सकते हैं कामधेनु गाय को घर में रखने से माता लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां दुर्गा का आशीर्वाद तो मिलता ही है और साथ ही साथ सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद भी मिलने लगता है जिस घर में कामधेनु होती है वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है सभी मनोकामना की पूर्ति होने लगती है कामधेनु गाय भाग्य को जगाने वाली सफलताओं को लाने वाली और शुद्धता को प्रदान करने वाली होती है इससे घर परिवार में सकारात्मकता बनी रहती है 

कामधेनु गाय की स्थापना करने से पहले आपको एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कामधेनु गाय के साथ में उसकी पुत्री नंदिनी भी हो इस बात का आपको विशेष रुप से ध्यान देना है तभी इसकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है कामधेनु गाय को स्थापित करना चाहते हैं तो इससे आपको दक्षिण पश्चिम दिशा में रखना चाहिए क्योंकि कामधेनु गाय की स्थापना के लिए दक्षिण पश्चिम दिशा सबसे उपयुक्त दिशा मानी गई है इसके लिए आपको सफेद मार्बल की मूर्ति लगानी चाहिए और इसके साफ-सफाई का आप को विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए 

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