History

 माता कोकिला का इतिहास 

 माता कोकिला का इतिहास , मां कोकिला के मंदिर का रहस्य,कोकिला माता का व्रत

माता कोकिला का इतिहास 

देवी भगवती को समर्पित यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है चौकोरी के करीब कोर्टमन्य मार्ग से 17 किलोमीटर की दूरी पर कोटगाड़ी नाम के एक गांव में स्थित है कोटगाड़ी देवी की स्थापना के बारे में माना जाता है कि यहां पर इनकी स्थापना सदियों पूर्व स्थानीय व्यक्ति को स्वपन देवी के द्वारा व्यक्त की गई इच्छा के अनुसार की गई थी मां कोकिला की मूर्ति को ढक कर रखा जाता है

मां के मंदिर से नीचे भूगर्भ से जल निकलता है इस स्त्रोत का जल कभी भी नहीं घटता है इस जल को गंगाजल जैसी मान्यता मिली है लोग इस धारा से जल अपने घरों को ले जाते हैं पिथौरागढ़ में स्थित मां कोकिला के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है लोग आपसी विवाद लड़ाई झगड़े के मामले में न्यायालय में जाने के बजाय मां के दरबार में ले जाना पसंद करते हैं मंदिर में सादे कागज में चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई जाती है

यहां का जंगल लोग पांच ,10 वर्षों के लिए मां कोकिला को चढ़ा देते हैं कोटगाड़ी गांव ब्राह्मणों का गांव है एक समय माता कोटगाड़ी यहां स्वयंव प्रकट हुई थी और यही रहती थी तथा न्याय भी देती थी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो फैसला कोर्ट में नहीं हो पाता वह माता के दरबार में बिना वकील के हो जाता है विरोधी दोषी हुआ तो उसे बेहद कड़ी सजा दी जाती है |माता कोकिला का इतिहास

 मां कोकिला के मंदिर का रहस्य 

उत्तराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में असमर्थ मानते हैं और उनकी अधिकार परिधि शिव तत्व में विलीन हो जाती है तब कोटगाड़ी देवी की पूरे ब्रह्मांड में स्तुति होती है संसार में भटका मानव जब है निराशा से गिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है तो संकल्प पूर्वक कोर्ट गाड़ी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से समरण करता है वहीं से उसके निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं

उसकी मान्यता के संकल्प पूरा होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है इस मंदिर में श्री यादव के असंख्य पत्थर न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं दूर-दराज से श्रद्धालु जन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर अपनी मन्नतें मांगते हैं माता के बारे में मान्यता है कि वह यहां आए बिना भी पुकार सुन लेती है और कड़ा न्याय करती है इसी कारण माता पर न केवल लोगों का अटूट विश्वास वरुण उनसे डर भी रहता है

कुमाऊं मंडल में अनेक गांवों के लोगों ने कोकिला माता के नाम पर इस भय मिश्रित श्रद्धा का सदुपयोग वनों और पर्यावरण को बचाने के लिए भी किया है गांवो के पास के वनों को माता को चढ़ा दिया गया जिसके बाद से कोई भी इन वनों से एक पौधा भी काटने हिम्मत नहीं करता है कोटगारी मंदिर के पास अनेक जल धाराएं हैं जिनसे सर्दियों में गर्म और गर्मियों में गर्म पानी आता है और हर मौसम में इनसे बिना परेशान हुए स्नान किया जा सकता है कहा जाता है कि प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में माता कोकिला इन्हीं जल धाराओं में स्नान करने आती है अनेक सच्चे श्रद्धालुओं को अक्सर इस समय माता के वाहन शेर के दर्शन होते हैं कुंड में अनेक बार नागों के दर्शन भी होते हैं 

पौराणिक मान्यता

शाम ढलने के बाद कोटगाड़ी गांव के आमने-सामने की पहाड़ियां फन उठाए नागों की तरह नजर आती है प्राचीन काल में यह नागो की भूमि बताई जाती है एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन करने के उपरांत कालिया व उसकी पत्नीयों की अनुनय विनय पर उन्हें कोकिला माता की शरण में भेजकर अभयदान प्रदान किया था कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाड़ी से थोड़ी दूर पर पर्वत की चोटी पर स्थित है

बताया जाता है कि इस मंदिर की चोटी से कभी भी गरुड़ आर पार पर नहीं जा सकते हैं इस मंदिर की शक्ति पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निशान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है एक गाय इस शक्ति लिंग पर आकर अपना दूध खुद चढ़ा कर चली जाती थी गाय की मालकिन गाय के दूध न देने से परेशान थी एक दिन वह गाय के पीछे यहां पहुंची और अपनी गाय को अपना दूध वहां दूहाते देखकर उसने एक हथियार से उस शक्ति पर वार कर डाला इससे पाताल, स्वर्ग व पृथ्वी की ओर खून की तीन धाराएं बह निकली

पृथ्वी पर खून की धारा प्रतीक स्वरूप आज भी यहां दिखती है कहा जाता है कि यहां स्थित शक्ति लिंग पर स्थानीय श्रद्धालु दिन भर दूध दही चढ़ाकर भर देते हैं लेकिन सारा दूध दही शीघ्र ही गायब हो जाता है नाग पंचमी के दिन हर वर्ष यहां अवश्य ही वर्षा होती है महिलाओं को इन नाग मंदिरों में एक सीमा से आगे जाना वर्जित होता है 

कोकिला माता का व्रत 

कोकिला व्रत आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है कोकिला व्रत पार्वती और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है यह व्रत ईश्वर के प्रति समर्पण व्यक्त करने का एक उचित साधन है इस व्रत में कोयल को आदि शक्ति का स्वरुप बताया गया है इस दिन कोयल की पूजा करने का विशेष महत्व है कोकिला व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है इसमें महिलाएं अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती है

यह महत्वपूर्ण व्रत में से एक है जो कि मां पार्वती से जुड़ा है इसमें मां पार्वती को कोकिला के रूप में पूजा जाता है कोकिला व्रत मुख्य रूप से उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है कोकिला व्रत में गाय की पूजा का विशेष महत्व है हिंदू धर्म में गाय ही एक ऐसा विशेष जानवर है जिसे पवित्र माना गया है कहा गया है कि गाय में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है

गाय में समस्त देवी देवता निवास करते हैं इसलिए कोकिला व्रत के दौरान गाय की पूजा करना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है शास्त्रों के अनुसार कोकिला वर्ष की शुरुआत मां पार्वती से हुई थी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने यह व्रत रखा था मां पार्वती करीब 10000 सालों तक कोयल बनकर नंदनवन में भटकती रही इस श्राप से मुक्त होने के बाद मां पार्वती ने कोयल की पूजा की थी उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया था | माता कोकिला का इतिहास |

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