लाल किले का इतिहास, लाल किले का नक्शा, लाल किले का निर्माण, लाल किले का उद्घाटन , लाल किले की विशेषता, लाल किले पर कब्जा
लाल किले का इतिहास
दिल्ली का यह किला इतिहास की हजारों घटनाओं का साक्षी रहा है न जाने कितने रहस्य हैं जो खुद में संजोए हुए आज भी शान से खड़ा है देश-विदेश के लाखों लोग इस इमारत को देखने के लिए दिल्ली आते हैं इसके अंदर बने कुछ महलों को बिल्कुल पहले की तरह सजा के रखा गया है ताकि यहां आने वाले सभी लोग हमारी पुरानी संस्कृति को करीब से जान सके यहां बनी हुई कुछ मस्जिदों को आम जनता के लिए बंद किया हुआ है
इस किले की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा पुख्ता इंतजाम किए गए हैं इस लाल किले ने कई राजाओं का शासन देखा है महसूस किया है इस किले ने किसी राजा की खुशी तो किसी का गम देखा है मुगलों की शान और शौकत रंगों के साथ अंग्रेजों के जुल्मों सितम भी देखें हैं शाहजहां जिस समय मुगल साम्राज्य का बादशाह बना वह समय मुगल शासन काल का सबसे सुनहरा दौर था
इस समय एक दूसरे राज्य आपस में नहीं लड़ते थे और ना ही कोई बाहरी आक्रमण हो रहा था इसके बाद शाहजहां ने आगरा से अपनी राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित करने की सोची थी इसके बाद शाहजहां ने दिल्ली में किले के निर्माण के लिए फरमान जारी किया जिसके बाद में दिल्ली में यमुना नदी के किनारे1638 मे किले का का निर्माण शुरू हो गया
| लाल किले का इतिहास |
लाल किले का नक्शा
शाहजहां को लाल व सफेद रंग बहुत ही पसंद था इसलिए उन्होंने आगरा के किले की तरह इस किले के निर्माण के लिए लाल पत्थर का चुनाव किया इसके बाद शाहजहां ने कारीगरों की एक टीम बनाई और इस किले का नक्शा उस्ताद अहमद लाहौरी ने तैयार किया था शाहजहां चाहता था कि सुरक्षा की दृष्टि से यह किला इतना मजबूत होना चाहिए कि दुश्मनों के लिए इसकी तरफ देखना भी असंभव हो और शाहजहां की सभी बातों को ध्यान में रखकर इस किले का निर्माण किया गया
इसके बाद शाहजहां मुगल वंश के पांचवे बादशाह के रूप में 1627 ईस्वी में राजगद्दी पर आसीन हुए और कई छोटे-बड़े राज्यों को मुगल सल्तनत का हिस्सा बनाया और अपने शासनकाल के दौरान देश के कई हिस्सों में भव्य इमारतों का निर्माण कराया था बादशाह शाहजहां स्थापत्य कला के प्रेमी थे इसलिए उन्हें बड़ी-बड़ी इमारतें बनवाने का शौक था शाहजहां के शासनकाल को मुगल काल का स्वर्ण युग कहा जाता है | लाल किले का इतिहास |
लाल किले का निर्माण
बादशाह शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज की मृत्यु के बाद मानसिक रूप से टूट गए थे क्योंकि शाहजहां मुमताज से बेपनाह प्यार करते थे वह मुमताज को भुला ही नहीं पा रहे थे इसलिए उन्होंने मुमताज की याद में आगरा में यमुना नदी के किनारे एक ऐसी इमारत बनाने की सोची जो किसी जन्नत से कम ना हो इसलिए उन्होंने ताजमहल के निर्माण का फैसला लिया इसके बाद 1632 में ताजमहल बनना शुरू हो गया था
ताजमहल का निर्माण जारी रहा शाहजहां ने दिल्ली में1638 में लाल किले का निर्माण शुरू करवा दिया इसके बाद 1648 ईस्वी में दिल्ली में लाल किला बनकर तैयार हो चुका था लेकिन ताजमहल बनने में 22 साल लग गए सफेद संगमरमर और दुनिया भर से लाए गए बेश कीमती रत्नों को मिलाकर बनाया गया ताज को देखकर पूरी दुनिया हैरान रह गई थी क्योंकि इससे पहले किसी ने ऐसी इमारत नहीं देखी थी इसके बाद1653 में ताजमहल के निर्माण के बाद मुमताज को ताज के अंदर दफना दिया गया
लाल किले का उद्घाटन
दिल्ली में बादशाह शाहजहां के अनुसार किले का निर्माण पूरा हो चुका था अब राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित होने जा रही थी बादशाह ने दिल्ली को एक नया नाम दिया शाहजहानाबाद और इस किले को “किला- ए -मुबारक” की उपाधि दी थी इसके बाद लाल किला के दरबार में बैठने के लिए आगरा से शाहजहां द्वारा बनवाया गया तख्ते ताऊस सिहासन भी लाया गया तख्ते ताऊस का भी एक अनोखा इतिहास रहा है जिसके बारे में आज ज्यादा लोग नहीं जानते हैं
तख्ते ताऊस हीरे जवाहरातो से जड़ा हुआ एक सोने का सिंहासन था इसमें सोने के मजबूत 6 पाए थे और हीरे जवाहरात एवं बहुमूल्य रत्नों से जड़े दो मोर लगे थे ताऊस “अरबी” भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है मोर इसलिए इसे “मयूर सिंहासन” की कहा जाता था इसमें दुनिया का सबसे बेशकीमती हीरा कोहिनूर भी लगा था तख्ते ताऊस की कीमत 17 वी सदी में करोड़ों में आंकी गई थी और इसे बनाने में 7 साल लग गए थे इतिहास में ऐसा सिहासन किसी राजा ने बनवाया था
ईरान के बादशाह नादिरशाह ने जब दिल्ली पर आक्रमण किया तब वह अपने साथ सारी धन दौलत और इस सिहासन को भी ले गया था 1747 में नादिर शाह कि मृत्यु के बाद अचानक यह सिहासन गायब हो गया तब से लेकर आज तक इसका कोई अता पता नहीं है सरकार इसे समय-समय पर का पता लगाने की कोशिश करती रही हैं | लाल किले का इतिहास |
लाल किले की विशेषता
यह किला लगभग डेढ़ मील के दायरे में अष्टभुजा कार में बना हुआ है इस किले में मुगल वास्तुकला से समृद्ध कई इमारतें हैं इसमें दीवाने आम ,दीवाने खास के अतिरिक्त हीरा महल, रंग महल जैसे कई भवन बने हुए हैं पहले दिन जब शाहजहां इस महल में आ रहे थे उस दिन महल को नई नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया था जश्न की तैयारी की गई थी सजावट की छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखा गया था दीवाने खास को विशेष रूप से सजाया गया था
दीवाने खास के बीचोंबीच एक बड़ा सा झूमर लगाया गया था इसे खासतौर पर अहमदाबाद में बनवाया गया था बादशाह शाहजहां की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का अगला बादशाह औरंगजेब बना सभी मुगल बादशाहों में सिर्फ औरंगजेब ही अकेला ऐसा शासक था जो अपने इस्लामिक नियमों के चलते शराब नहीं पीता था लेकिन साथ ही उसे इतिहास में मुगल काल का सबसे क्रूर राजा माना जाता है औरंगजेब ने अपने भाइयों को सत्ता के लिए मार दिया था | लाल किले का इतिहास |
लाल किले पर कब्जा
18वीं सदी आते-आते मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा था औरंगजेब के सत्ता से हटने के बाद लाल किला 30 सालों तक अपने योग्य शासक का इंतजार करता रहा सन 1712 में रुखसार को बादशाह बनाया गया बाद में इन्हें मार दिया गया और इनकी जगह सन 1719 में मोहम्मद रंगीला ने ले ली और उन्होंने 1739 तक अपना शासन किया इसके बाद 1739 के बाद लाल किले पर नादिरशाह का कब्जा हो गया 3 महीने तक नादिरशाह इसी किले में रहा वह सारी कीमती चीजों को लूट कर इरान पहुंचाता रहा ना दे रहा इसके बाद 1752 में दिल्ली मराठों के हाथ में आ गई थी लेकिन 1761 मे मराठा पानीपत की तीसरी लड़ाई हार गए थे
जिसके बाद दिल्ली पर अहमद शाह का कब्जा हो गया था इसके बाद 1803 में दिल्ली का लाल किला “ब्रिटिश ईस्ट इंडिया” कंपनी के अधीन हो गया आखिरी मुगल बादशाह “बहादुर शाह जफर” थे जिन्होंने 1857 की लड़ाई में अंग्रेजों को हरा दिया था और लाल किले को अपने अधीन कर लिया था हालांकि ज्यादा दिनों तक वह राज नहीं कर पाए अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को बंदी बनाकर रेमून भेज दिया और फिर से दिल्ली के लाल किले पर अपना अधिकार कर लिया
एक विशाल किले का निर्माण
लाल किला शाहजहां के जन्म से सैकड़ों साल पहले ही बन चुका था महाराजा पृथ्वीराज चौहान के नाना अनंगपाल तोमर ने1060 ईस्वी में दिल्ली को बसाया था और उसी समय यमुना नदी के किनारे एक विशाल किले का निर्माण करवाया था जिसे लाल कोट कहा जाता था जब शाहजहां ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करनी चाही तो सबसे पहले इसी लाल कोट किले का इस्तेमाल किया इस किले में शाहजहां ने कई भवन बनवाएं और किले की मरम्मत करवाकर इसे इस्लामिक रूप दे दिया सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वह लाल किले की ओर बढ़ा और उसने वहां सैनिकों के साथ आराम किया अर्थात लाल किला उस जगह 1296 में मौजूद था | लाल किले का इतिहास |