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माता वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास

माता वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास, मां वैष्णो देवी मंदिर कि ऊंचाई , मंदिर की खोज

माता वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास 

वैष्णो देवी को माता रानी त्रिकुटा और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है वैष्णो देवी को हिंदू धर्म में देवी महालक्ष्मी का ही रूप माना जाता है और भारत में मां यह माता शब्द का उपयोग जन्म देने वाली मां के लिए किया जाता है और  इसका उपयोग वैष्णो देवी के नाम से पहले भी किया जाता है वैष्णो देवी का मंदिर हिंदू देवियों को समर्पित एक मंदिर है जो जम्मू और कश्मीर राज्य के “ त्रिकुटा पर्वत श्रृंखला के कटरा ” में स्थित है वैष्णो देवी का मंदिर कटरा से 13.5 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है

 कटरा से मंदिर जाने के लिए परिवहन की सुविधा भी की गई है श्रद्धालु पालकी और इलेक्ट्रिक गाड़ी के जरिए मंदिर जा सकते हैं जिसमें 2 से 4 लोग आसानी से बैठ सकते हैं कटरा से सांझी छत तक हेलीकॉप्टर की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है जो कटरा से 9.5 किलोमीटर दूर है श्री माता वैष्णो देवी जी को जाने वाले तीर्थयात्री सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ यात्रा है जिसमें लाखों तीर्थयात्री पैदल यात्रा करते हैं वैष्णो देवी माता का मंदिर दुनिया भर में “मुंह मांगी मुरादें ” पूरी करने वाली माता के नाम से प्रसिद्ध है

यह मंदिर त्रिकुटा की पहाड़ियों की गुफा में बना हुआ है लाखों लोग इस पवित्र गुफा के दर्शन के लिए हर साल आते हैं इतना ही नहीं बल्कि हर साल यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या तो अब एक करोड़ से ऊपर जा चुकी है श्रद्धालुओं का मां वैष्णो देवी पर अटूट विश्वास होने की वजह से यह मंदिर केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है

मां वैष्णो देवी मंदिर कि ऊंचाई  

माता की पवित्र गुफा सतह से 5200 फीट की ऊंचाई पर बनी है यात्रियों को कटरा के बेस कैंप के 13 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है कहा जाता है कि तीर्थ यात्रा करते समय मां वैष्णो देवी का आशीर्वाद हमेशा उनके साथ बना रहता है और इसलिए बूढ़े से बूढ़े यात्री भी उस चढ़ाई को आसानी से पार कर जाते हैं मां वैष्णो देवी के दर्शन 3 प्राकृतिक पत्थरों के रूप में किए जाते हैं गुफा के अंदर मां वैष्णो देवी की कोई स्थापित प्रतिमा नहीं है 

मां वैष्णो देवी के दर्शन साल भर श्रद्धालु कर सकते हैं वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना 

 माता वैष्णो देवी मंदिर सामान्यतः मंदिर बोड के नाम से जाना जाता है इस मंदिर की स्थापना सन् 1986 में की गई थी तभी से मंदिर और यात्रा के व्यवस्थापन की जिम्मेदारी बोड की है बोड  ने तब से लेकर आज तक यात्रियों की सुविधाओं के लिए काफी अच्छा काम किया और जगह-जगह यात्रियों के रूकने एवं आराम करने के लिए अब छोटे-छोटे कैंप भी लगाए गए हैं  बोड लगातार यात्रियों की सुविधाओं को विकसित करने में लगा हुआ है और हर साल करोड़ों यात्रियों को वे जितनी सुविधा  हो सके उतनी सुविधाएं प्रदान करते हैं

मंदिर की खोज

वैष्णो देवी मंदिर की खोज 700 वर्ष पहले पंडित श्रीधर द्वारा की गई थी श्रीधर माता वैष्णो देवी का परम भक्त था पंडित श्रीधर के भंडारे के आयोजन में माताजी ने अपनी सहायता की थी जब माता ने पंडित श्रीधर के भंडारे को बीच में ही छोड़कर चली गई तो वह काफी दुखी हो गया और बिना खाए पिए उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और माता से पुनः प्रकट होने के लिए निवेदन करने लगा पंडित श्रीधर के निवेदन से माता वैष्णो देवी श्रीधर के सपने में प्रकट हुई और

उनसे अपना व्रत खोलने का आग्रह किया तथा साथ ही साथ उन्होंने त्रिकूट पर्वत की तलहटी में उपस्थित इस पवित्र गुफा को ढूंढने के लिए भी कहा था माता की बात मानकर श्रीधर ने पर्वत में स्थित उस पवित्र गुफा को ढूंढ निकाला गुफा में उन्हें 3 सिरों में उठी हुई शीला मिली उसी क्षण माता वैष्णो देवी प्रकट हुई और उन्होंने इस जगह की पूजा करने का आदेश दिया ऐसा उसके बाद श्रीधर ने अपना संपूर्ण जीवन माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा में उनकी सेवा और भक्ति करते हुए बिताया 

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