सामान्य ज्ञान

मकर सक्रांति क्यों मनाई जाती है इसका महत्व

मकर सक्रांति क्यों मनाई जाती है इसका महत्व 

जब माघ मास में सूर्य मकर राशि पर आए तब उस दिन तथा उस समय को सक्रांति प्रवेश काल और मकर सक्रांति कहते हैं मकर संक्रांति हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल तो वही उत्तर भारत में इसे खिचड़ी ,उत्तरायण ,मागी  तथा पतंग उत्सव आदि के नाम से जाना जाता है मध्य भारत में इसे सक्रांति कहा जाता है मकर संक्रांति पर गंगा यमुना आदि तीर्थों पर स्नान किया जाता है इस दिन किए गए जप, तप दान स्नान आदि धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए दान का फल मनुष्य को 100 गुना होकर मिलता है इस दिन शुद्ध घी, खिचड़ी, गर्म वस्त्रों का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है मकर सक्रांति क्यों मनाई जाती है 

मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके लोक को जाते हैं शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है एक अन्य मान्यता के अनुसार मकर सक्रांति के दिन ही भगीरथ के पीछे-पीछे मां गंगा कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली थी इससे पहले गंगा ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के कमंडल में वास कर रही थी गंगाजल भगवान विष्णु के पसीने से उत्पन्न हुआ जल है ब्रह्मा जी ने गंगा को सर्वप्रथम भगवान शंकर की जटा में छोड़ा था जहां से भागीरथ की पीछे पीछे चलती हुई गंगा कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंची थी जो की बंगाल की खाड़ी के करीब स्थित था

मकर सक्रांति के दिन ही गंगा के वहां पहुंचने पर भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण करके उन्हें मुक्ति दिलाई थी बाणों की शैया पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने प्राणों को त्यागने के लिए आज ही के दिन को चुना था ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में शरीर का त्याग करने वाला व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है मकर सक्रांति पर विशेष रूप से खिचड़ी, रेवड़ी, गजक आदि का दान किया जाता है इस दिन दाल चावल मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है  इस दिन  खिचड़ी खाना मौसम में होने वाले बदलाव को भी दर्शाता है जब मौसम बदलता है तो पाचन शक्ति निर्बल हो जाती है ऐसे में वही आहार खाया जाता है जो आसानी से पच जाए 

| मकर सक्रांति क्यों मनाई जाती है इसका महत्व |

मकर सक्रांति का महत्व 

मकर सक्रांति के दिन स्नान, दान और सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व इस दिन सूर्य देव को लाल वस्त्र, गुड, गेहूं, चावल, लाल फूल, नारियल, दक्षिणा आदि अर्पित किया जाता है मकर सक्रांति के दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और सूर्य मंत्र का जाप किया जाता है इस दिन सूरज ढलने के बाद भोजन नहीं किया जाता इस दिन कीसी नदि या गंगा में जाकर स्नान करना शुभ माना जाता है इस दिन स्नान करने से पहले कुछ भी नहीं खाया जाता ऐसा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है | मकर सक्रांति क्यों मनाई जाती है इसका महत्व |

मकर सक्रांति की कहानी 

सूर्य देव महर्षि कश्यप के पुत्र है  पुराणों के अनुसार सूर्य देव महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए थे उनकी माता का नाम अदिति होने के कारण सूर्य देव का एक नाम आदित्य है यजुर्वेद ने सूर्य जायत कहकर सूर्य देव को भगवान का नेत्र भी माना है  सूर्य देव का वर्णन वेदों में है पुराणों में और भी कई स्थानों पर किया गया है कई ग्रंथों में किया गया है सूर्य देव को हनुमान जी का गुरु भी माना जाता है और सूर्य देव न्याय के देवता शनि देव के पिता है ना केवल शनिदेव के बल्कि धर्मराज यमराज जो की मृत्यु के देवता है वह भी सूर्य देव के पुत्र हैं तो सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता है संपूर्ण जगत के नेत्र है इन्हें के द्वारा दिन और रात का सृजन होता है इन्हीं से धरती पर जीवन है बिना सूर्य के जीवन की कल्पना किया जाना संभव नहीं है और अधिक निरंतर साथ रहने वाला और कोई देवता नहीं है जो रोजाना आपके साथ ही है जब चाहो जब देख लो  सूर्य देव के होने पर संपूर्ण जगत का उदय होता है और इन्हीं के अस्त होने पर समस्त जगत सो जाता है तो सूर्य देव साक्षात देव है सूर्य देव नगरों का राजा है  सूर्य देव का एक रूप ग्रह के रूप में भी है और जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता हैसूर्यदेव का दक्षिण से उत्तरायण की ओर आना एक सुख घटना मानी गई है

सूर्य देव शनि देव को पसंद नहीं करते थे इस कारण से सूर्य देव ने शनिदेव और उनकी माता छाया को 1 दिन अपने से अलग कर दिया था सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा होता है वह सूर्य देव के ताप को सहन नहीं कर पाती इसलिए वह छाया को सूर्य देव के पास छोड़ देती है जिसके बाद शनिदेव पैदा होते हैं 1 दिन सूर्य देव को सच्चाई का पता चल जाता है और वह छाया और शनिदेव को अलग कर देते हैं इसके बाद क्रोधित होकर शनिदेव और उनकी माता छाया ने सूर्य देव को श्राप दिया कि वह कुष्ठ रोग हो जाए इसके बाद जब यमराज ने अपने पिता को कुष्ठ रोग से पीड़ित होते देखा तो उन्होंने घोर तपस्या की इसके बाद यमराज की कठोर तपस्या के बाद सूर्य देव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए इसके बाद एक दिन सूर्य देव शनि देव के घर पर गए और  शनि देव ने अपने पिता का अतिथि सत्कार काले तिलों से किया था शनि देव को काले तिलों की वजह से ही अपने पिता का प्यार, घर और सुख की प्राप्ति हुई थीउसी समय से सूर्य देव के साथ तिल की पूजा का बड़ा महत्व माना जाता है 

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