History

राव चंद्रसेन राठौड़ का इतिहास 

राव चंद्रसेन राठौड़ का इतिहास, राव चंद्रसेन राठौड़ का जन्म, अकबर और चंद्रसेन के बीच युद्ध , चंद्रसेन राठौड़ की मृत्यु

राव चंद्रसेन राठौड़ का जन्म 

राव चंद्रसेन राठौड़ का जन्म 30 जुलाई 1541 ईस्वी को मारवाड़ के राव मालदेव के घर हुआ था चंद्रसेन मालदेव के सबसे छोटे पुत्र थे लेकिन वह बचपन से ही काफी पराक्रमी और साहसी थे उनके इसी पराक्रम और साहस को देखकर मालदेव ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी मान लिया था

राव चंद्रसेन महाराणा प्रताप के समकालीन थे मतलब उनका शासन, उनका जीवनकाल समान ही स्तर पर चला था और सिर्फ वह समकालीन ही नहीं बल्कि स्वभाव और वीरता पराक्रम में भी दोनों एक समान थे और दोनों का स्वभाव भी एक था कि वह मुगलों के आगे कभी नहीं झुकेंगे इसलिए चंद्रसेन को महाराणा प्रताप का “अग्रगामी” कहा जाता है लेकिन इतिहासकारों की इसे में गद्दारी कहूं पता नहीं क्या वजह थी

उन्होंने चंद्रसेन का उल्लेख बहुत ही कम किया है इतिहास में इस वजह से इसे इतिहास का भूला बिसरा योद्धा भी कहा जाता है लेकिन आजकल के अनुसंधान से यह बात सामने आ गई है कि चंद्र सेन एक ऐसा महान योद्धा था जिसने महाराणा प्रताप के समान ही अपना रास्ता अपनाया और अकबर को नानी याद दिला दी मालदेव ने अपनी मृत्यु से पहले ही छोटा बेटा होने के बावजूद चंद्रसेन को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया

इससे उसके बड़े बेटे उदय सिंह और राम सिंह चंद्रसेन से ईर्ष्या रखने लगे और जैसे ही चंद्रसेन राज गद्दी पर बैठे उन दोनों भाइयों ने विद्रोह कर दिया लेकिन चंद्रसेन एक वीर और साहसी योद्धा थे उसने दोनों भाइयों के विद्रोह का दमन कर दिया लेकिन दोनों भाई मन में ईर्ष्या लेकर उससे बदला लेने का अवसर खोजने लगे और ऐसा सोचकर वह अकबर के दरबार में पेश हुए और अपने भाई के खिलाफ अकबर से सहायता मांगी और अकबर तो इसी ताक में था कि कब राजपूतों में फूट पड़े और कब उसका फायदा हो

उसने उन दोनों को सहायता करने के उद्देश्य से और अपना ही राजनीतिक स्वार्थ देखते हुए एक सेना जोधपुर को भेजी और उस सेना में उसके दोनों भाई भी साथ में थे चंद्रसेन अपने भाइयों से युद्ध करके उन्हें हराना नहीं चाहता था इसलिए चंद्रसेन को बहुत दुख हुआ जब वह अकबर के साथ मिल गए थे इसके बाद चंद्र सेन ने जोधपुर का किला खाली कर दिया और भाद्राजून चला गया | राव चंद्रसेन राठौड़ का इतिहास |

अकबर और चंद्रसेन के बीच युद्ध 

जोधपुर से चले जाने के बाद चंद्रसेन की आर्थिक स्थिति निरंतर बिगड़ती गई क्योंकि उसके पास पर्याप्त साधन नहीं थे और न ही बड़ी सेना और जो सेना थी उसका भी भरण पोषण नहीं हो रहा था अपनी स्थिति से दुखी होकर सेन ने निश्चय किया कि वह अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेगा और ऐसा सोचकर वह अकबर के दरबार में पेश हुआ

जब अकबर नागौर आया हुआ था और वहां बहुत से राजा उसके आगे जा रहे थे तो चंद्रसेन भी गया लेकिन जब दरबार में उसने देखा कि वहां झुक कर अकबर को सलाम करना पड़ रहा है तभी मन में वही राजपूत का असली खून दौड़ा चंद्रसेन ने सोचा कि मैं मर जाऊंगा लेकिन इस मुगल के सामने नहीं झूकूंगा और फिर उसने अकबर की फूट डालो नीति भी देखी और उसका मन बहुत विचलित हो गया वह बीच दरबार से ही वापस चला आया

कुछ समय पश्चात मुगलों को पता चला कि चंद्रसेन “भद्राजून” में है और उसकी आर्थिक स्थिति भी काफी खराब है और उसके पास सैन्य बल भी ज्यादा नहीं है यह मौके का फायदा उठाकर मुगलों ने भद्राजून पर आक्रमण कर दिया इसके बाद चंद्रसेन वहां से सिवाना चले गए “सिवाना” पहुंचकर चंद्र सेन ने सोचा कि वह सीधे मुगलों को नहीं हरा सकते क्योंकि उसके पास सैन्य बल ज्यादा नहीं है तो उसने वही तरीका अपनाया जो महाराणा प्रताप ने अपनाया था

‘छापेमारी युद्ध’ इसके बाद चंद्रसेन ने जितने भी राज्य मुगलों के क्षेत्र में आते थे वहां पर छापेमारी युद्ध शुरू कर दिए चंद्र सेन ने अपने कुछ साथियों को किले में छोड़ा और खुद पिपलोद चले गए  वह छिपकर मुगल सेना पर आक्रमण करते और उनकी रसल सामग्री को लूट लेते अकबर अपनी सेना के हो रहे इस नुकसान से बौखला उठा

उसने बहुत बड़ी सेना भेजनी शुरू कर दी लेकिन चंद्रसेन के पास बहुत ही कम सेना होने के बावजूद अकबर की सेनाओं पर भारी पड़ रहे थे क्योंकि वह छापेमारी युद्ध की नीति से सेना को इस तरीके से मार रहे थे कि सेना को पता ही नहीं चल रहा था कि कहां से सैनिक कहां गायब हो रहे हैं यह युद्ध तकरीबन 2 वर्षों तक चला इन 2 वर्षों में राठौड़ ने इतना पराक्रम दिखाया कि अकबर की सेना अब न के बराबर रह गई थी और अकबर को आगरा से दूसरी बड़ी सेना भेजनी पड़ी लेकिन इसका भी वही हाल हुआ जो पहले वाली सेनाओं का हुआ था

अकबर बहुत आग बबूला हो गया और उसने जलाल खान के नेतृत्व में एक और बड़ी सेना भेजी लेकिन चंद्रसेन के हाथों जलाल खा भी मारा गया इसके बाद अकबर की स्थिति ऐसे हो गई थी जैसे अब कुछ रहा ही नहीं हो अकबर फ़िक्र में पड़ गया कि चंद्रसेन कहीं उससे दिल्ली का राज ना छीन ले और उसने शहबाज खान के नेतृत्व में अपनी इतनी बड़ी सेना भेजी जितनी उसने कभी सोचा नहीं था कि चंद्रसेन के लिए भेजनी पड़ेगी और उस सेना का नेतृत्व शहबाज खान कर रहे थे और उसने सिवाना पर अधिकार कर लिया लेकिन चंद्रसेन मुगलों के हाथ नहीं आ रहे थे मुगल उनका पीछा कर रहे थे लेकिन वह नहीं मिल रहे थे | राव चंद्रसेन राठौड़ का इतिहास |

चंद्रसेन राठौड़ की मृत्यु

इसके बाद चंद्रसेन वहां से सीधा सोजत के सरवडा क्षेत्र में गए और वहां से मुगलों को खदेड़ दिया और सारण पहाड़ क्षेत्र में रहने लगे और इसी क्षेत्र के “सचियाव” गांव में 1580 को चंद्रसेन जी का देहांत हो गया

वाह रे वीर तूने सारे कष्ट अपना लिए लेकिन मुगलों के आगे सर न झुकाया और तेरे इसी न झुकाने की वजह से आज हम पूरे हिंदुस्तानियों का सर तूने फिर से ऊंचा कर दिया उदय सिंह के साथ दिल्ली का सम्राट अकबर था लेकिन फिर भी उदय सिंह मारवाड़ पर एकछत्र राज नहीं कर सका

यह केवल हो सका है तो इस वीर की वजह से हो सका है अकबर ने बहुत कोशिश की कि चंद्रसेन उसकी अधीनता स्वीकार कर ले लेकिन साधनों की बिल्कुल कमी होने के बावजूद भी उसने अकबर के आगे सर न झुकाया महाराणा प्रताप और चंद्र सेन को आज साथ में याद किया जाता है | राव चंद्रसेन राठौड़ का इतिहास |

Back to top button