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संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी

संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी में कंप्लीट जानकारी

संत रविदास जी का जन्म 

संत रविदास 15 वीं शताब्दी में एक बहुत बड़े विद्वान, दार्शनिक, कवि और एक समाज सुधारक थे इनका जन्म भारत के यूपी के वाराणसी में 1377 ईसवी में हुआ था इनका जन्म माघ पूर्णिमा दिन रविवार को हुआ था इनके माता जी का नाम कलसा देवी था और पिताजी का नाम संतोख दास था इनके पिता जी मल साम्राज्य के राजा नगर के सरपंच थे वह खुद जूतों का व्यापार और उनकी मरम्मत का कार्य करते थे रविदास जी बचपन से ही बहुत बहादुर थे  संत रविदास को बचपन से ही भक्ति भाव में रुचि थी रविदास के दादाजी का नाम कालूराम और दादी जी का नाम लखपति था  वह रविदास से बहुत ही प्रेम करते थे  रविदास ने साधु संतों की संगति से पर्याप्त व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया था यह जूते बनाने का काम किया करते थे और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ही ध्यान देते थे ऊंची जाति के लोगों के भेदभाव के कारण इन्हें बहुत ही संघर्ष करना पड़ा था जिसका उन्होंने सम्मान किया और अपने लेखन के द्वारा लोगों को जीवन के तथ्य से अवगत कराया उन्होंने लोगों को सिखाया कि वह अपने पड़ोसियों को बिना भेदभाव के प्यार करो संत रविदास को रैदास नाम से भी जाना जाता है | संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी

रविदास के गुरु का नाम 

संत रविदास काशी के रहने वाले थे इन्हें रामानंद का शिष्य माना जाता है लेकिन ये रामानंद के शिष्य थे या नहीं इसका कोई मौलिक साक्ष्य नहीं है इनकी भेंट कबीर से भी हुई थी और इसकी अनेक कथाएं प्रसिद्ध है परंतु इसकी प्रमाणिकता भी संदिग्ध है इनकी शिष्य महाराणा सांगा की पत्नी झाला रानी को माना जाता है इस दृष्टि से रैदास का समय सन 1482-1527 ईसवी तक माना जाता है कुछ लोगों का अनुमान है कि चित्तौड़ की रानी मीराबाई ही थी जिन्होंने रैदास का शिष्यत्व तो ग्रहण किया था मीरा ने अपने अनेक पदों में रविदास का गुरु रूप में समरण किया है जैसे –

गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, दूर से कलम  बीड़ी

संत गुरु सेन दईजब आकर ज्योति रली.

रविदास ने अपने भजनों और दोहो मैं पूर्ववर्ती भक्तों के संबंध में लिखा है कबीर की मृत्यु उनके सामने ही हो गई थी रविदास की अवस्था 120 वर्ष की मानी जाती है 

रविदास जी का विवाह

संत रविदास जी का विवाह 16 वर्ष की आयु में लोना के साथ कर दिया गया था इनके पिता जी ने इनका ध्यान गृहस्थी की ओर लगाने के लिए विवाह किया था परंतु रविदास जी अपने भक्ति में लगे रहते थे विवाह के कुछ समय बाद इन्हें पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम विजय दास था | संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी

रविदास का माता-पिता से अलग होना 

संत रविदास मधुर व्यवहार के कारण उनके संपर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे शुरू से ही संत रविदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था साधु संतों की सहायता करने में उनको विशेष आनंद मिलता था वह उन्हें मूल्य लिए बिना जूते उपहार में दे दिया करते थे जिसके कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे और कुछ समय के बाद उन्होंने रविदास और उनकी पत्नी को अपने घर से भगा दिया था रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर अपने व्यवसाय का काम करते थे और बाकी समय ईश्वर भजन तथा साधु संतों के सत्संग में व्यतीत करते थे | संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी

रविदास का व्यक्तित्व

रविदास के समय में स्वामी रामानंद काशी के बहुत प्रसिद्ध संत थे रविदास उनकी शिष्य मंडली के महत्वपूर्ण सदस्य थे रविदास अनपढ़ थे परंतु संत साहित्य के ग्रंथों और गुरु ग्रंथ साहब में इनके पद पाए जाते हैं इन ग्रंथों में उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं का वचन के पालन संबंधी उनके गुणों का ज्ञान मिलता है एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वह बोले गंगा स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किसी व्यक्ति को आज ही जूते बनाकर देने का मैंने वचन दे रखा है यदि आज मैं जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होगा गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहां लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा मन जो काम करने के लिए अंतः कारण से तैयार हो वही काम करना उचित है मन सही है तो इस कटौती के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है कहा जाता है कि इस प्रकार व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गई कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा” रविदास अपने दिए हुए वचन को पक्का पूरा करते थे 

संत रविदास की भावना 

संत रैदास ने ऊंच-नीच की भावना तथा ईश्वर भक्ति के नाम पर किए जाने वाले विवाद को निरर्थक बताया है और सबको मिल-जुलकर प्रेम पूर्वक रहने का उपदेश दिया है वह खुद मधुर तथा भक्ति पूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव विभोर होकर सुनाते थे उनका विश्वास है कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रंथों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है

 रविदास का विश्वास था कि ईश्वर भक्ति के लिए सदाचार की भावना का पालन करना आवश्यक है अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने और शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत ही बल दिया रविदास कहते थे कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से मिलती है अभीमान में रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि-

विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पीपलीका इन कणों को सरलता पूर्वक चून लेती है इसी प्रकार अभिमान का भाव त्याग कर विनम्रता पूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ईश्वर का भगत हो सकता है 

संत रविदास की सत्संग की भावना

संत रविदास शैशवावस्था से ही सत्संग के प्रति रुचि रखते थे वह बचपन में राम जानकी की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा किया करते थे उनके पिताजी ने किसी कारणवश ने अपने से अलग कर दिया तो वे घर के पिछवाड़े में छप्पर डालकर रहने लगे इससे पता चलता है कि वह कितने संतोषी और उदार व्यक्ति थे

एक बार किसी महात्मा ने उन्हें पारस पत्थर दिया जिसका उपयोग भी उन्होंने बता दिया पहले तो संत रविदास ने उसे लेना ही उचित नहीं समझा परंतु बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने ग्रहण कर लिया और अपने छप्पर में रख देने के लिए कहा 13 दिन के बाद लौट कर उस साधु ने जब पारस पत्थर के बारे में पूछा तो संत रविदास का उत्तर था कि जहां रखा होगा, वहीं से उठा लो और सच में वह पारस पत्थर वहीं पड़ा मिला 

संत रविदास का लक्ष्य 

संत रविदास मध्ययुग इतिहास के संक्रमण काल में पैदा हुए थे उस समय ब्राह्मणों की मनोवृति से दलित और उपेक्षित पशु वक्त जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थी संत रविदास यह सब देखकर बहुत ही दुखी होते थे उनकी समन्वय वादी चेतना इसी का परिणाम है संत रविदास का लक्ष्य था कि भारतीय समाज में फैली हुई छुआछूत और धर्म को लेकर जो आपस में टकराव है उसे दूर करना है वह ब्राह्मणवाद की प्रभुता के सामने साहस पूर्वक अपने अस्तित्व की घोषणा करने में सक्षम हो गए संत रविदास ने मानवता की सेवा में अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था

संत रविदास सभी धर्मों को एक समान मानते थे उनका मानना था कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई यह सब एक समान है सभी धर्मों में एक ईश्वर निवास करता है उस समय ब्राह्मणों को ऊंचा माना जाता था और चमार जाति को नीचा माना जाता था और उनका अपमान किया जाता था इन सभी चीजों को समाज से दूर करने के लिए रविदास ने अपने भजनों के माध्यम से लोगों को जागृत करना शुरू कर दिया था परंतु ब्राह्मण नहीं चाहते थे कि वह भजन कीर्तन करें क्योंकि उनका मानना था कि यह सब काम ब्राह्मणों का होता है संत रविदास मानव धर्म के संस्थापक थे उन्होंने कुल और जाति की श्रेष्ठता को मिथ्या बताया | संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी

संत रविदास का समाज पर प्रभाव 

रविदास की वाणी, भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना और मानव प्रेम से ओतप्रोत विचारधारा और शिक्षा का श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का समाधान हो जाता था और लोग उनके अनुयाई बन जाते थे उनकी वाणी का इतना प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके प्रति श्रद्धालु बन गए थे मीराबाई उनकी भक्ति भावना से बहुत ही प्रभावित हुई और उनकी शिष्या बन गई थी 

आज भी संत रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है उन्होंने अपने व्यवहार से सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म के आधार पर महान नहीं होता बल्कि अपने विचारों की श्रेष्ठ समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य अच्छा व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य का महान बनाने में सहायक होते हैं | संत रविदास का जीवन परिचय हिंदी

रविदास की मृत्यु

रविदास की मृत्यु 1540 ईस्वी में वाराणसी में हुई थी रविदास का 120 वर्ष की आयु में निधन हो गया था रविदास के अनमोल वचन थे कि कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्म के कारण होता है

व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य है .जिस प्रकार तेज हवा के कारण सागर में बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और फिर सागर में समा जाती है उनका अलग अस्तित्व नहीं होता इसी प्रकार परमात्मा के बिना मानव का भी कोई अस्तित्व नहीं है. मोह माया में फंसा जीव भटकता रहता है इस माया को बनाने वाला ही मुक्तिदाता है 

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