History

सारागढ़ी युद्ध का इतिहास

सारागढ़ी युद्ध का इतिहास, सारागढ़ी पर आक्रमण, अफगानी सेना के साथ युद्ध, सिख सैनिकों की वीरता

सारागढ़ी युद्ध का इतिहास

 सारागढ़ी का युद्ध 120 वर्ष पहले लड़ा गया था जब मात्र 21 सिखों ने 10,000 अफ़गानों को धूल चटा दी इस लड़ाई को दुनिया की 8 सबसे बेहतरीन लड़ाईयो में से एक माना जाता है इस युद्ध पर एक फिल्म भी बन चुकी है जब 1897 का दौर था उस समय भारत भूमि पर अंग्रेजों का दबदबा बढ़ता जा रहा था अंग्रेज भारत से बाहर के इलाकों में भी अपना कब्जा जमाना चाहते थे इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने अफगानिस्तान की सरहदों पर हमले करने शुरू कर दिए

उस समय भारत और अफगान की सीमा पर दो किले हुआ करते थे सारागढ़ी का किला और लॉकहार्ट का किला इनमें से लॉकहार्ट  का किला बड़े अंग्रेज अधिकारियों के लिए था जहां पर बड़ी अंग्रेजी फौज तैनात रहती थी जबकि सारागढ़ी का किला अंग्रेज सेना के भारतीय सिपाहियों के लिए था जहां पर सिर्फ 21 सिख सैनिकों को तैनात किया गया था यह दोनों किले भारत और अफगानिस्तान की सीमा तय करते थे

उस समय अफगान हमलावर हर दिन अखंड भारत की सीमाओं पर हमला करते रहे थे जिसके जवाब में अंग्रेज भी अफगानिस्तान पर हमला बोल देते इस कारण अफगानी कबीले अंग्रेजो के खिलाफ खड़े हो गए और वक्त के साथ यह कबीले एक बड़ी सेना में तब्दील हो गए इस वक्त अफगानी कबीले बदला लेने की सोच रहे थे अफगानी सेना धार्मिक नारों से गूंज रही थी अफगान सेना भारत पर हमला करने की तैयारी में थी | सारागढ़ी युद्ध का इतिहास |

सारागढ़ी पर आक्रमण

उस समय सारागढ़ी का माहौल गर्म था अंग्रेजों ने यहां तैनात हिंद के योद्धाओं को सतर्क रहने को कहा 12 सितंबर सन 1897 सुबह का समय था जब सभी सीख सोए हुए थे सूरज की पहली किरण के साथ जब उनकी आंख खुली तो सामने का नजारा चौंकाने वाला था हजारों अफगानी सिपाही उनकी तरफ तेजी से बढ़ रहे थे दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देखकर सब हैरान थे

उस समय किसी को समझ नहीं आया कि वह क्या करे इसके बाद उन 21 सिखों ने तुरंत अपनी अपनी बंदूक उठाई उनके पास बंदूकें तो थी पर इतनी गोलियां नहीं थी कि वे ज्यादा देर तक दुश्मन का मुकाबला कर पाते ऐसी विकट स्थिति में उन्होंने तुरंत बड़े अंग्रेज अधिकारी को संपर्क करना उचित समझा कुछ मील दूर लॉकहार्ट किले पर अंग्रेजी अफसर बड़ी फौज के साथ रहते थे सिखों ने उन्हें संदेश भेजकर बताया कि बड़ी संख्या में अफगान फौज ने हम पर चढ़ाई कर दी

उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है अंग्रेज अधिकारी ने कहा इतने कम समय में सेना नहीं भेजी जा सकती उन्हें अकेले ही मोर्चा संभालना होगा किले में मात्र 21 सिख थे जबकि किले के बाहर 10000 अफ़गानों का विशाल लश्कर था इसके बाद वाहेगुरु का नाम लेकर सभी 21 सिख  अपनी अपनी जगह पर मजबूती से तैनात हो गए | सारागढ़ी युद्ध का इतिहास |

अफगानी सेना के साथ युद्ध  

अफगानी सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी अफगानी सेना को आगे बढ़ता देख सभी सिख सैनिक अपनी अपनी बंदूकें लेकर किले के ऊपरी इलाके पर खड़े हो गए चारों तरफ भयंकर सन्नाटा था सिर्फ आगे बढ़ते अफगान सेना के घोड़ों की आवाज और उनके नारे सुनाई पड़ रहे थे थोड़ी ही देर में एक गोली की आवाज के साथ जंग शुरू हो गई दोनों तरफ से अंधाधुंध गोलियां चलने लगी सिख किले के ऊपर थे और अफगानी नीचे सिखों की अंधाधुंध गोलियों के आगे अफगान आगे नहीं बढ़ पा रहे थे कुछ ही समय में अफगानी समझ गए थे कि यह जंग आसान नहीं होने वाली वह किले के अंदर जाए बिना सिखों को नहीं हरा पाएंगे

जिसके बाद उन्होंने एकजुट होकर सामूहिक रूप से सिखों पर हमला बोल दिया किले को चारों तरफ से घेर लिया गया और सिखों पर चारों तरफ से हमला बोला गया लेकिन सिखों ने अपना हौसला नहीं थोड़ा वह लगातार अफ़गानों से लोहा लेते रहे वह 21 सिख  गोलियां बरसा रहे थे पर सामने 10,000 आफ गानों का लश्कर था जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था कि तभी अफगानी सैनिकों की एक टुकड़ी ने किले के दरवाजे पर हमला करने की कोशिश की पर सिखों ने उनको सफल नहीं होने दिया

इसके बाद  अफगानी सेना की एक टुकड़ी ने किले की दीवारों को तोड़ना शुरू कर दिया और वह किले की दीवार तोड़ने में सफल भी हो गए अब किले की दीवार टूट चुकी थी अफगानी सैनिक तेजी से किले के अंदर घुसते जा रहे थे अफगानीयो के किले में आते ही बंदूकों की लड़ाई हाथों और तलवारों की लड़ाई में तब्दील हो गई अफगानी लश्कर से लड़ना इतना आसान नहीं था वह बहुत भारी संख्या में थे इन सब के बावजूद सिख सैनिक लड़ते रहे कई सिख सैनिकों को गहरी चोटें लग चुकी थी उन 21 सिख सैनिकों में से कुछ सैनिक ऐसे भी थे जो पूरी तरह से सिपाही नहीं थे

उनमें से कुछ रसोइए थे, तो कुछ डाकिए लेकिन फिर भी वह अपने साथियों के साथ जंग में कूद पड़े थे अचानक से अफगानयो का पूरा लश्कर किले में उतर गया 21 सिखों में से कुछ एक सिख वीरगति पा चुके थे इसके बाद धीरे-धीरे सिख  योद्धाओं का मनोबल टूटने लगा कि तभी हवलदार ईश्वर सिंह द्वारा दी गई “जो बोले सो निहाल” की आवाज ने सिखो में जोश भर दिया यह आवाज सुनकर सिखों ने फिर से तलवारों को थामा और अफ़गानों को अपनी तलवारों से काटना शुरू कर दिया इसके बाद वह सभी सीख, जो बोले सो निहाल’ नारे के साथ आगे बढ़ते गए और अफगानीयो को मौत के घाट उतारते गए | सारागढ़ी युद्ध का इतिहास |

सिख सैनिकों की वीरता 

आखिरकार एक एक कर सभी सिख सैनिक मारे गए वे सभी शहादत को प्राप्त हो गए लेकिन मरते मरते भी वह लगभग 600  अफगानीयो को मार चुके थे 21 सिखों ने सारागढ़ी के मैदान को अफ़गानों की लाशों से भर दिया आखिरकार दुश्मन भी बुरी तरह थक गया औरअपने लश्कर पीछे खींच लिए जब अफगान लश्कर पीछे लौटा तो अगले ही दिन एक बड़ी अंग्रेज फौज वाले भारतीय सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया और सब को मौत के घाट उतार दिया इस तरह सिर्फ 21 सिखों ने मरना कबूल किया पर हिंद की सरहद को दुश्मन के कब्जे में जाने से रोक दिया | सारागढ़ी युद्ध का इतिहास |

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